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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने ‘अश्लील’ विज्ञापन मामले में दैनिक भास्कर के खिलाफ याचिका खारिज की, कहा-ब्लर की गई छवि शालीनता का उल्लंघन नहीं करती

Shivam Y.

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने कथित अश्लील विज्ञापन को लेकर दैनिक भास्कर के खिलाफ याचिका खारिज कर दी और कहा कि धुंधली नग्नता अश्लीलता या शालीनता कानूनों का उल्लंघन नहीं करती। - नागेंद्र सिंह गहरवार बनाम मनमोहन अग्रवाल

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने ‘अश्लील’ विज्ञापन मामले में दैनिक भास्कर के खिलाफ याचिका खारिज की, कहा-ब्लर की गई छवि शालीनता का उल्लंघन नहीं करती

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट, जबलपुर ने अधिवक्ता नरेंद्र सिंह गहरवार द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने हिंदी दैनिक दैनिक भास्कर पर एक अश्लील विज्ञापन प्रकाशित करने का आरोप लगाया था। न्यायमूर्ति अचल कुमार पालीवाल ने 29 अक्टूबर 2025 को सुनाया गया फैसला सुनाते हुए कहा कि अखबार की सामग्री भारतीय दंड संहिता की धारा 292 और 293 तथा महिला अशोभनीय प्रतिरूपण (निषेध) अधिनियम, 1986 के तहत अश्लीलता की श्रेणी में नहीं आती।

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6 अक्टूबर को आरक्षित यह आदेश इस बात पर महत्वपूर्ण स्पष्टता लाता है कि अदालतें नग्नता और अश्लीलता के बीच अंतर को आधुनिक समाजिक मानकों के अनुरूप कैसे परिभाषित करती हैं।

पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता का आरोप था कि दैनिक भास्कर के रीवा संस्करण में जनवरी 2012 में प्रदर्शित फिल्म प्लेयर्स के एक विज्ञापन में एक “लगभग नग्न” महिला की तस्वीर प्रकाशित की गई थी। उनका कहना था कि ऐसा प्रदर्शन अशोभनीय है और महिलाओं के व्यावसायिक शोषण को बढ़ावा देता है।

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गहरवार ने भारतीय दंड संहिता की धारा 292 और 293-जो अश्लील प्रकाशनों को अपराध बनाती हैं-और 1986 अधिनियम की धारा 3, 4, और 6 के तहत निजी शिकायत दायर की थी। ट्रायल कोर्ट और पुनरीक्षण अदालत दोनों ने उनकी शिकायत खारिज कर दी थी, जिसके बाद उन्होंने धारा 482 दं.प्र.सं. के तहत हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

दूसरी ओर, दैनिक भास्कर के वकील संजय कुमार मिश्रा ने दलील दी कि याचिकाकर्ता का इस मामले में कोई लोकस स्टैंडी नहीं है और संबंधित तस्वीर वैध फिल्म विज्ञापन का हिस्सा थी, जिसमें “संवेदनशील हिस्सों को पूरी तरह ब्लर कर दिया गया था।”

न्यायालय की टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति पालीवाल ने अश्लीलता पर भारतीय और अंतरराष्ट्रीय न्यायिक मिसालों—रंजीत डी. उदेशी बनाम महाराष्ट्र राज्य से लेकर अवीक सरकार बनाम पश्चिम बंगाल राज्य और अजय गोस्वामी बनाम भारत संघ-का विस्तृत विश्लेषण किया। उन्होंने 1868 के हिक्लिन टेस्ट से लेकर कम्युनिटी स्टैंडर्ड टेस्ट तक के विकास पर चर्चा करते हुए कहा कि किसी कलात्मक या व्यावसायिक सामग्री का मूल्यांकन उसके पूर्ण संदर्भ में होना चाहिए, न कि किसी एक हिस्से को अलग करके।

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अवीक सरकार के निर्णय का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि नग्न या अर्ध-नग्न महिला की तस्वीर को तब तक अश्लील नहीं कहा जा सकता जब तक उसमें विकृत मानसिकता को उत्तेजित करने या यौन उत्तेजना पैदा करने की प्रवृत्ति न हो।

इस सिद्धांत को लागू करते हुए न्यायमूर्ति पालीवाल ने देखा कि प्लेयर्स विज्ञापन में महिला के “स्तन और जननांग पूरी तरह ब्लर किए गए थे” और उन पर ‘गेट रेडी टू सिज़ल’ का नारा लिखा था। इसलिए यह चित्र सार्वजनिक नैतिकता को भ्रष्ट करने वाला नहीं कहा जा सकता।

“यदि इस तस्वीर को किसी भी कोण से देखा जाए,” न्यायाधीश ने कहा, “तो यह विकृत मानसिकता का संकेत नहीं देती, न ही यौन उत्तेजना पैदा करने के लिए बनाई गई है। इसका पाठकों के मन को भ्रष्ट करने की कोई प्रवृत्ति नहीं है।”

अदालत ने दोहराया कि मात्र नग्नता अश्लीलता नहीं है और “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और सार्वजनिक शालीनता के बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।”

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निर्णय

निचली अदालतों के निर्णयों की समीक्षा करने के बाद हाईकोर्ट ने पाया कि उनके तर्कों में कोई त्रुटि नहीं थी। अदालत ने माना कि विज्ञापन ने सार्वजनिक नैतिकता की सीमा का उल्लंघन नहीं किया और यह बदलते सामाजिक मूल्यों और कलात्मक अभिव्यक्ति के अनुरूप था।

न्यायमूर्ति पालीवाल ने निष्कर्ष दिया:

“भारतीय दंड संहिता की धारा 292 और 293 तथा महिला अशोभनीय प्रतिरूपण (निषेध) अधिनियम, 1986 की धारा 3, 4 और 6 के तहत अभियोजन चलाने के लिए कोई पर्याप्त साक्ष्य या आधार नहीं हैं। अतः यह याचिका खारिज की जाती है।”

इसके साथ ही अदालत ने पुनः यह सिद्धांत स्थापित किया कि संदर्भ या कलात्मक उद्देश्य के साथ प्रदर्शित नग्नता स्वतः अपराध नहीं बनती, और इस प्रकार एक दशक से लंबित यह मामला समाप्त हो गया।

Case Title:- Nagendra Singh Gaharwar v. Manmohan Agrawal

Case Number: M.Cr.C. No. 4891 of 2014

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