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दिल्ली हाईकोर्ट ने दो नाइजीरियाई नागरिकों की जमानत खारिज की, एनडीपीएस अधिनियम के गंभीर आरोपों और अवैध प्रवास का दिया हवाला

Shivam Y.

दिल्ली उच्च न्यायालय ने प्रमुख हेरोइन मामले में आरोपी नाइजीरियाई नागरिकों को धारा 37 एनडीपीएस अधिनियम और भारत में उनके अवैध प्रवेश का हवाला देते हुए जमानत देने से इनकार कर दिया। - स्टेनली चिमेइजी अलासोनी @ उका चुक्वु बनाम एनसीटी दिल्ली राज्य सरकार और हेनरी ओकोली बनाम एनसीटी दिल्ली राज्य और अन्य।

दिल्ली हाईकोर्ट ने दो नाइजीरियाई नागरिकों की जमानत खारिज की, एनडीपीएस अधिनियम के गंभीर आरोपों और अवैध प्रवास का दिया हवाला

दिल्ली हाईकोर्ट ने दो नाइजीरियाई नागरिकों - स्टैनली चिमेइज़ी अलासोन्ये और हेनरी ओकोली - की जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि आरोप गंभीर हैं और दोनों की भारत में उपस्थिति अवैध है। न्यायमूर्ति रवींद्र दुदेजा ने 27 अक्टूबर 2025 को फैसला सुनाते हुए कहा कि याचिकाकर्ता एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 के तहत निर्धारित कठोर शर्तों को पूरा नहीं कर पाए हैं, जो वाणिज्यिक मात्रा वाले मादक पदार्थों के मामलों में जमानत से संबंधित है।

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पृष्ठभूमि

मामला अक्टूबर 2021 में मोहन गार्डन, दिल्ली में हुई एक छापेमारी से जुड़ा है। पुलिस को गुप्त सूचना मिली थी कि दो विदेशी नागरिक एक मिठाई की दुकान के पास नशीले पदार्थ बेच रहे हैं। पुलिस के अनुसार, हेनरी ओकोली और एक अन्य आरोपी के पास से 500-500 ग्राम हेरोइन बरामद हुई, जबकि बाद में स्टैनली अलासोन्ये से 300 ग्राम हेरोइन मिलने का दावा किया गया।

उनके घर की तलाशी में 4 किलो रासायनिक पाउडर और मादक पदार्थ तैयार करने के उपकरण भी मिले। जांच के दौरान यह भी सामने आया कि दोनों आरोपियों के पासपोर्ट जाली हैं और वे भारत में बिना वैध दस्तावेजों के रह रहे थे।

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अदालत की टिप्पणियाँ

न्यायालय ने माना कि बरामदगी के समय कोई स्वतंत्र गवाह या वीडियोग्राफी नहीं थी, परंतु केवल इसी आधार पर मामले को कमजोर नहीं कहा जा सकता। न्यायमूर्ति दुदेजा ने कहा, “पुलिस गवाहों की साक्ष्यात्मक वैधता ट्रायल के दौरान परखी जाएगी,” यह उल्लेख करते हुए कि सर्वोच्च न्यायालय ने कई बार कहा है कि पुलिस अधिकारियों की कार्रवाई को तब तक सही माना जाएगा जब तक विपरीत प्रमाण न हों।

बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि गिरफ्तारी के समय आरोपियों को लिखित रूप में गिरफ्तारी के आधार नहीं दिए गए, जिससे संविधान के अनुच्छेद 22(1) और एनडीपीएस अधिनियम की धारा 52 का उल्लंघन हुआ। लेकिन अदालत ने सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसले स्टेट ऑफ कर्नाटक बनाम श्री दर्शन (2025) का हवाला देते हुए कहा कि

“यदि अभियुक्त को कोई वास्तविक हानि नहीं हुई है, तो गिरफ्तारी के आधार न देने जैसी प्रक्रिया संबंधी त्रुटियाँ गिरफ्तारी को स्वतः अवैध नहीं बनातीं।”

न्यायमूर्ति दुदेजा ने कहा,

“याचिकाकर्ता यह नहीं दिखा सके कि उन्हें गिरफ्तारी के आधार न दिए जाने से कोई हानि हुई। इसलिए, इस तर्क पर उन्हें जमानत नहीं दी जा सकती।”

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ट्रायल में हुई देरी - क्योंकि आरोपी लगभग चार साल से हिरासत में हैं - पर अदालत ने चिंता जताई, लेकिन कहा कि अपराध की गंभीरता जमानत के पक्ष में नहीं जाती। न्यायाधीश ने लिखा,

“अदालत को व्यक्तिगत स्वतंत्रता और समाजहित के बीच संतुलन रखना होता है, परंतु एनडीपीएस अधिनियम का उद्देश्य नशे की तस्करी पर कठोर नियंत्रण है - जो सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए खतरा है।”

एफआरआरओ के तर्क

विदेशी क्षेत्रीय पंजीकरण कार्यालय (FRRO) ने जमानत का विरोध करते हुए कहा कि दोनों आरोपी भारत में अवैध रूप से दाखिल हुए और उनके पास कोई आव्रजन रिकॉर्ड नहीं है। उनके पासपोर्ट पर न प्रवेश की मुहर है न निकासी की। जांच में पाया गया कि जिन होटलों में वे ठहरे थे, वहां दिए गए वीजा विवरण भी फर्जी थे।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि दोनों आरोपियों ने झूठी राष्ट्रीयताएँ अपनाकर अधिकारियों को गुमराह करने की कोशिश की - एक ने खुद को यूके नागरिक बताया और दूसरे ने सिंगापुर का।

एफआरआरओ की ओर से कहा गया,

“आरोपी फरार होने का जोखिम रखते हैं और उन्होंने झूठी पहचान के जरिये जांच एजेंसियों को भ्रमित करने की कोशिश की है।”

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अदालत का निर्णय

सभी पक्षों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति दुदेजा ने कहा कि आरोपी एनडीपीएस अधिनियम की धारा 37 में वर्णित दोनों अनिवार्य शर्तों को पूरा नहीं कर पाए - यानी यह विश्वास करने के लिए पर्याप्त कारण नहीं हैं कि वे दोषी नहीं हैं, और यह भी कि वे जमानत पर छूटकर फिर अपराध नहीं करेंगे।

अदालत ने कहा,

“एनडीपीएस अधिनियम के तहत जमानत के लिए जो सीमित दायरा है, वह इस मामले में पूरा नहीं हुआ।” न्यायालय ने यह भी जोड़ा कि दोनों के अवैध प्रवास और जाली दस्तावेजों को देखते हुए उन्हें रिहा करना उचित नहीं होगा।

न्यायमूर्ति दुदेजा ने स्पष्ट शब्दों में कहा,

“आरोपों की गंभीरता, साक्ष्य की मजबूती और विधिक ढाँचा — सभी एक ही दिशा की ओर संकेत करते हैं। इसलिए, निरंतर हिरासत आवश्यक है।”

इस प्रकार, स्टैनली चिमेइज़ी अलासोन्ये और हेनरी ओकोली की जमानत याचिकाएँ खारिज कर दी गईं। अदालत ने आदेश की प्रति जेल अधीक्षक को भेजने का निर्देश दिया ताकि आरोपियों को इसकी जानकारी दी जा सके।

Case Title: Stanley Chimeizi Alasonye @ Uka Chukwu vs State Govt. of NCT of Delhi and Henry Okolie vs State of NCT Delhi & Anr.

Case Numbers: Bail Application No. 3830/2024 & Bail Application No. 3037/2025

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