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आईपीएस अधिकारी की आत्महत्या मामले में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने पूछे तीखे सवाल, सीबीआई जांच से पहले सबूतों की स्पष्टता मांगी

Shivam Y.

पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने आईपीएस अधिकारी वाई. पूरन कुमार की आत्महत्या के मामले में उकसावे के आरोप पर सवाल उठाए; सीबीआई जांच स्थानांतरण याचिका पर निर्णय लेने से पहले स्पष्टता की मांग की। - नवनीत कुमार बनाम भारत संघ एवं अन्य

आईपीएस अधिकारी की आत्महत्या मामले में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने पूछे तीखे सवाल, सीबीआई जांच से पहले सबूतों की स्पष्टता मांगी

शुक्रवार को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान अदालत ने सवाल उठाया कि आईपीएस अधिकारी वाई. पूरन कुमार की कथित आत्महत्या के मामले में आत्महत्या के लिए उकसाने (अबेटमेंट ऑफ सुसाइड) का आरोप आखिर कैसे बनता है। अदालत की यह टिप्पणी उस जनहित याचिका (PIL) पर आई जिसमें चंडीगढ़ पुलिस से जांच हटाकर केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को सौंपने की मांग की गई थी।

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पृष्ठभूमि

यह याचिका एनजीओ अध्यक्ष नवनीत कुमार ने दायर की थी, जिसमें दावा किया गया कि अधिकारी को “व्यवस्थित भेदभाव और जातिगत उत्पीड़न” का सामना करना पड़ा। हरियाणा कैडर के आईपीएस अधिकारी कुमार ने कथित तौर पर 7 अक्टूबर को चंडीगढ़ स्थित अपने आवास पर खुद को गोली मार ली थी।

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अपने सुसाइड नोट में उन्होंने हरियाणा के डीजीपी शत्रुजीत कपूर और तत्कालीन रोहतक एसपी नरेंद्र बिजारणिया सहित कई वरिष्ठ अधिकारियों पर उत्पीड़न और जातिगत अपमान के आरोप लगाए थे। जनाक्रोश के बाद दोनों अधिकारियों को अस्थायी रूप से पद से हटा दिया गया।

अदालत की टिप्पणियाँ

सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश शील नागू और न्यायमूर्ति संजीव बेरी ने याचिकाकर्ता के वकील से बार-बार पूछा कि वर्तमान आरोपों के आधार पर आईपीसी की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) कैसे लागू हो सकती है।

"आरोपों की गंभीरता को देखते हुए बताइए, क्या 306 बनता है? हमें एक भी सुप्रीम कोर्ट का उदाहरण दिखाइए जहाँ ऐसे आरोपों पर सजा हुई हो,” पीठ ने तीखे शब्दों में कहा।

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मुख्य न्यायाधीश नागू ने व्यावहारिक रूप से कहा,

"सीबीआई पहले से ही काफी बोझिल है। जांच स्थानांतरित करने का आदेश यूं ही नहीं दे सकते… आपको जांच में कोई खामी या कमी दिखानी होगी।"

पीठ ने यह भी टिप्पणी की कि चूंकि जांच चंडीगढ़ पुलिस द्वारा की जा रही है, इसलिए पक्षपात की बात तुरंत नहीं उठती।

"अगर हरियाणा पुलिस कर रही होती, तब बात अलग होती," न्यायमूर्ति नागू ने कहा।

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निर्णय

सभी पक्षों की संक्षिप्त दलीलें सुनने के बाद-जिसमें चंडीगढ़ पुलिस की ओर से यह बताया गया कि एसआईटी में पहले से ही तीन आईपीएस अधिकारी शामिल हैं - अदालत ने मामले की सुनवाई स्थगित कर दी। याचिकाकर्ता के वकील को अपनी दलीलों की तैयारी के लिए अधिक समय दिया गया है।

इसके बाद ही अदालत सीबीआई को जांच सौंपने पर कोई निर्णय लेगी।

Case Title:- Navneet Kumar v UOI & Ors

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