व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अपनी पसंद से जीवनसाथी चुनने के अधिकार को पुनः स्थापित करते हुए, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को 19 वर्षीय नेहा को नोएडा स्थित सरकारी बालगृह से तत्काल रिहा करने का आदेश दिया। अदालत ने चिकित्सीय साक्ष्य के आधार पर माना कि नेहा बालिग है, और इसलिए उसे जहाँ चाहे वहाँ रहने और जिसके साथ चाहे, उसके साथ रहने की स्वतंत्रता है।
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न्यायमूर्ति जे.जे. मुनीर और न्यायमूर्ति संजीव कुमार की खंडपीठ ने यह आदेश हेबियस कॉर्पस याचिका (संख्या 880/2025) पर सुनाया, जो नेहा और उसके पति गुरजीत प्रताप सिंह द्वारा दायर की गई थी, जिसमें बाल कल्याण समिति के आदेश से उसकी हिरासत को चुनौती दी गई थी।
पृष्ठभूमि
नेहा को स्थानीय प्रशासन ने नाबालिग मानते हुए हिरासत में लेकर नोएडा के सरकारी बालगृह में भेज दिया था। बताया गया कि उसकी शादी गुरजीत प्रताप सिंह से हुई थी, लेकिन परिवार के विरोध के चलते पुलिस हस्तक्षेप हुआ और उसे संरक्षण गृह में रखा गया।
मामले में तब मोड़ आया जब स्कूल अभिलेखों में उसकी जन्मतिथि को लेकर विरोधाभास सामने आया। प्राथमिक विद्यालय, सिरसखास की प्रधानाध्यापिका ने दाखिला रजिस्टर पेश किया, जिसमें नेहा की जन्मतिथि 3 दिसंबर 2008 दर्ज थी, जबकि उसी गांव के उच्च प्राथमिक विद्यालय के रजिस्टर में यह 3 दिसंबर 2009 लिखी गई थी।
जब अदालत ने प्रधानाध्यापिका से पूछा कि यह जन्मतिथि किस आधार पर दर्ज की गई थी, तो उन्होंने साफ कहा कि यह केवल नेहा की मां के बताए अनुसार दर्ज की गई थी - किसी भी नगरपालिका, ग्रामसभा या अस्पताल से जारी जन्म प्रमाणपत्र के आधार पर नहीं।
अदालत ने टिप्पणी की कि ऐसे रिकार्ड "सिर्फ मौखिक बयानों" पर आधारित हैं और उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
अदालत के अवलोकन
न्यायाधीश स्कूल रिकॉर्ड के विरोधाभासों से आश्वस्त नहीं हुए और नेहा की वास्तविक उम्र निर्धारित करने के लिए चिकित्सीय अस्थि-परीक्षण (Ossification Test) का आदेश दिया। मुख्य चिकित्सा अधिकारी, फिरोजाबाद ने 18 अक्टूबर 2025 की तिथि वाला एक रिपोर्ट प्रस्तुत किया, जो डॉक्टरों के बोर्ड द्वारा तैयार किया गया था। इसमें एक रेडियोलॉजिस्ट, एक दंत चिकित्सक और एक अस्थि-विशेषज्ञ शामिल थे।
रिपोर्ट के अनुसार नेहा की उम्र लगभग 19 वर्ष आंकी गई। अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसी चिकित्सीय परीक्षाओं में दो वर्ष का अंतर संभव होता है और संदेह का लाभ व्यक्ति के पक्ष में दिया जाना चाहिए।
पीठ ने कहा,
"चिकित्सीय रिपोर्ट के आधार पर हम मानते हैं कि नेहा बालिग है, लगभग 19 वर्ष की। जब वह बालिग है, तब किसी भी प्रकार की हिरासत में रखने का कोई औचित्य नहीं।"
अदालत में पेशी के दौरान नेहा अपनी गोद में अपने छोटे बच्चे के साथ उपस्थित हुई और उसने स्पष्ट रूप से कहा कि वह अपने पति के साथ रहना चाहती है। उसके संक्षिप्त लेकिन दृढ़ उत्तरों ने न्यायाधीशों को यह विश्वास दिलाया कि वह अपनी स्वतंत्र इच्छा से निर्णय ले रही है।
न्यायमूर्ति मुनीर ने उससे सामान्य लहजे में पूछा,
“तुम किसके साथ रहना चाहती हो?”
नेहा ने हल्के स्वर में उत्तर दिया - “अपने पति के साथ।” यह संवाद सादा था, लेकिन प्रभावशाली - और इसी ने अदालत के निर्णय को दिशा दी।
निर्णय
अदालत ने नेहा की हिरासत को अवैध घोषित करते हुए हेबियस कॉर्पस याचिका स्वीकार कर ली और आदेश दिया कि उसे तत्काल रिहा किया जाए।
पीठ ने कहा,
“वह जहाँ चाहे जा सकती है और जिसके साथ चाहे रह सकती है, जिसमें उसका पति गुरजीत प्रताप सिंह भी शामिल है।”
अदालत ने उन पुलिस अधिकारियों को भी मुक्त कर दिया जिन्होंने नेहा को अदालत में प्रस्तुत किया था, और आदेश दिया कि निर्णय की प्रति वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, फिरोजाबाद, थाना सिरसगंज, तथा सरकारी बालगृह (बालिकाएँ), नोएडा को संबंधित मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के माध्यम से भेजी जाए।
यह फैसला एक बार फिर याद दिलाता है कि जब व्यक्तिगत पसंद और सरकारी संदेह के बीच संघर्ष हो, तो न्यायपालिका अब भी स्वतंत्रता की अंतिम संरक्षक बनी रहती है।
Case Title: Smt. Neha and Another vs. State of Uttar Pradesh and 4 Others
Case Number: Habeas Corpus Writ Petition No. 880 of 2025
Counsel for Petitioners: Rajesh Singh, Sanjeev Kumar Singh
Counsel for Respondents: Ms. Divya Ojha (Additional Government Advocate-I), Mr. Suresh Kumar Maurya (for Basic Shiksha Adhikari)










