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दिल्ली उच्च न्यायालय ने फेरा मामले में 12.31 लाख रुपये की जब्ती को बरकरार रखा, अवैध विदेशी मुद्रा और सोने के व्यापार को लेकर ईडी के खिलाफ अर्जुन पाटिल की अपील खारिज की

Shivam Y.

दिल्ली उच्च न्यायालय ने अर्जुन पाटिल की अपील खारिज कर दी और फेरा के तहत अवैध विदेशी मुद्रा व्यापार मामले में ईडी द्वारा ₹12.31 लाख की ज़ब्ती को बरकरार रखा। विस्तृत निर्णय की व्याख्या। - अर्जुन पाटिल बनाम भारत संघ एवं अन्य

दिल्ली उच्च न्यायालय ने फेरा मामले में 12.31 लाख रुपये की जब्ती को बरकरार रखा, अवैध विदेशी मुद्रा और सोने के व्यापार को लेकर ईडी के खिलाफ अर्जुन पाटिल की अपील खारिज की

14 अक्टूबर 2025 को दिए गए एक विस्तृत फैसले में दिल्ली हाई कोर्ट ने अर्जुन पाटिल की अपील खारिज कर दी, जिन्होंने प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (FERA) के तहत ₹12.31 लाख की जब्ती और लगाए गए जुर्माने को चुनौती दी थी। न्यायमूर्ति सुब्रमोनियम प्रसाद और न्यायमूर्ति विमल कुमार यादव की खंडपीठ ने कहा कि अधिनिर्णायक प्राधिकारी और अपीलीय अधिकरण के निष्कर्ष “न्यायिक जांच में खरे उतरते हैं” और इसमें दखल की कोई आवश्यकता नहीं है।

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पृष्ठभूमि

यह मामला फरवरी 1997 का है, जब ईडी अधिकारियों ने करोल बाग, नई दिल्ली में पाटिल के व्यावसायिक परिसर पर छापा मारा। उन्हें सूचना मिली थी कि वहां अवैध विदेशी मुद्रा कारोबार चलाया जा रहा है। तलाशी के दौरान जांचकर्ताओं ने ₹12.31 लाख भारतीय मुद्रा, 6,371 अमेरिकी डॉलर, और कई सोने की बिस्किटें बरामद कीं।

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उसी दौरान दो नेपाली नागरिक - दुकल भट्टराई और रामनाथ धुकाल - मौके पर पकड़े गए, जिनके पास भारी मात्रा में अमेरिकी डॉलर थे। एजेंसी के अनुसार, ये दोनों पाटिल द्वारा संचालित अवैध विदेशी मुद्रा और सोने के कारोबार का हिस्सा थे।

पाटिल पर आरोप लगा कि वह नेपाल से लाए गए सोने की खरीद विदेशी मुद्रा से कर रहे थे, जिससे उन्होंने FERA की धारा 8(1), 8(2), और 64(2) का उल्लंघन किया। 2003 में ईडी के उप निदेशक ने उन पर ₹40,000 का जुर्माना लगाया और बरामद राशि को जब्त करने का आदेश दिया।
उनकी अपील विदेशी मुद्रा अपीलीय अधिकरण में 2006 में खारिज कर दी गई।

अदालत की टिप्पणियाँ

हाई कोर्ट में पाटिल ने तर्क दिया कि उनका इकबालिया बयान दबाव और यातना के तहत लिया गया था, और यह भी कि भारतीय मुद्रा की जब्ती कानूनी रूप से गलत थी। उनके वकील का कहना था कि यह पैसा “वैध व्यापारिक लेनदेन” के लिए रखा गया था और किसी अवैध विदेशी मुद्रा खरीद का सबूत नहीं था।

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परंतु खंडपीठ ने इन दलीलों को अस्वीकार कर दिया। न्यायमूर्ति प्रसाद ने कहा कि अधिनिर्णायक प्राधिकारी ने सभी साक्ष्यों की समीक्षा की, जिनमें सह-आरोपियों के बयान, जब्ती रिकॉर्ड और बरामद दस्तावेज शामिल थे, और सही ढंग से यह निष्कर्ष निकाला कि पाटिल अवैध फॉरेक्स गतिविधियों में संलग्न थे।

“अपीलकर्ता यह साबित नहीं कर सके कि उनका बयान दबाव या जोर-जबरदस्ती से लिया गया था,” अदालत ने कहा।

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णयों का हवाला देते हुए अदालत ने स्पष्ट किया कि वापस लिया गया इकबालिया बयान (Retracted Confession) भी स्वीकार्य है यदि वह स्वेच्छा से दिया गया हो और अन्य साक्ष्यों से पुष्ट हो। अदालत ने कहा, “भले ही अपीलकर्ता का बयान न माना जाए, दो नेपाली नागरिकों के बयान और जब्त दस्तावेज अभियोजन के मामले को पूरी तरह पुष्ट करते हैं।”

न्यायाधीशों ने यह भी स्पष्ट किया कि भारतीय मुद्रा ‘संपत्ति’ की परिभाषा में आती है, और FERA की धारा 63 के तहत प्राधिकारी इसे जब्त करने के अधिकारी हैं यदि इसका उपयोग अवैध लेनदेन में हुआ हो।

“ईडी के पास भारतीय मुद्रा जब्त करने का अधिकार नहीं था-यह तर्क निरर्थक है,” खंडपीठ ने कहा।

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निर्णय

रिकॉर्ड की समीक्षा के बाद अदालत ने कहा कि पाटिल की अपील में कोई “कानूनी प्रश्न” (Question of Law) नहीं उठाया गया है, जो विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) की धारा 35 के तहत अपील स्वीकार करने की अनिवार्य शर्त है।

खंडपीठ ने निष्कर्ष निकाला:

“अपीलकर्ता अपने परिसर से बरामद ₹12,31,000 की वैधता साबित नहीं कर सके। यह स्पष्ट है कि यह राशि अवैध विदेशी मुद्रा खरीद के लिए रखी गई थी।”

इस प्रकार, हाई कोर्ट ने अपील खारिज कर दी और अधिनिर्णायक अधिकारी तथा अपीलीय अधिकरण दोनों के आदेशों की पुष्टि की। ₹12.31 लाख की जब्ती और ₹40,000 का जुर्माना बरकरार रहेगा।

इस फैसले के साथ अदालत ने 28 साल पुराने विवाद को समाप्त कर दिया, जो भारत के उदारीकरण-पूर्व विदेशी मुद्रा कानूनों से जुड़ा था - यह दिखाते हुए कि दशकों बाद भी अवैध मुद्रा और सोने के लेनदेन पर अदालतें कठोर दृष्टिकोण रखती हैं।

Case Title: Arjun Patil v. Union of India & Others

Case Number: CRL.A. 407/2007

Date of Judgment: 14th October, 2025

Appellant's Counsel:
Mr. Jaspreet Singh Kapur, Mr. Wasim Ansari, and Ms. Shweta, Advocates

Respondent's Counsel:
Ms. Bharathi Raju (Senior Panel Counsel) with Ms. Divyangi, Advocates for Union of India
Mr. Vivek Gurnani, Panel Counsel with Mr. Kanishk Maurya, Advocate for Enforcement Directorate

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