भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक चौंकाने वाले “डिजिटल अरेस्ट” घोटाले पर स्वतः संज्ञान लेते हुए कड़ा रुख अपनाया है। यह मामला तब सामने आया जब एक वरिष्ठ नागरिक दंपति ने शिकायत की कि उन्हें सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) अधिकारियों के रूप में पेश आने वाले ठगों ने धोखा देकर 1 करोड़ रुपये से अधिक की राशि ठग ली। ठगों ने सुप्रीम कोर्ट के जाली आदेश और फर्जी वीडियो कॉल दिखाकर उन्हें डराया और पैसे वसूले।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने 17 अक्टूबर 2025 को इस मामले की सुनवाई की और कहा कि यह न्याय प्रणाली की गरिमा पर सीधा हमला है।
पृष्ठभूमि
यह मामला तब शुरू हुआ जब सुप्रीम कोर्ट को अंबाला के एक बुजुर्ग दंपति की शिकायत प्राप्त हुई। उन्हें 3 से 16 सितंबर 2025 के बीच यह विश्वास दिलाया गया कि वे किसी वित्तीय अपराध में फंसे हुए हैं। ठगों ने उन्हें प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत जारी कथित गिरफ्तारी और बैंक खातों को फ्रीज करने के फर्जी आदेश दिखाए, जिससे भयभीत होकर उन्होंने कुल ₹1.05 करोड़ की राशि कई बैंक लेनदेन के माध्यम से भेज दी।
बाद में जब उन्हें एहसास हुआ कि वे ठगे गए हैं, तो उन्होंने साइबर अपराध शाखा, अंबाला में शिकायत दर्ज कराई। पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता, 2023 की कई धाराओं के तहत दो एफआईआर दर्ज कीं, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि यह एक संगठित अपराध गिरोह का हिस्सा है।
आम तौर पर ऐसे मामलों की जांच राज्य पुलिस करती है, लेकिन अदालत तब स्तब्ध रह गई जब यह पता चला कि ठगों ने सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय के जाली दस्तावेज तैयार किए हैं जिन पर नकली मोहरें और न्यायाधीशों के हस्ताक्षर तक थे और उन्हें व्हाट्सएप और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से भेजा गया था।
अदालत की टिप्पणियाँ
पीठ ने इस मामले को “न्यायिक अधिकार के निर्लज्ज आपराधिक दुरुपयोग” की संज्ञा दी और कहा कि सुप्रीम कोर्ट व उच्च न्यायालय के आदेशों की जालसाजी “जनता के न्यायपालिका पर विश्वास की नींव को हिला देती है।”
अदालत ने कहा, “न्यायाधीशों के जाली हस्ताक्षरों वाले न्यायिक आदेशों का निर्माण इस संस्था की गरिमा और प्रतिष्ठा पर सीधा प्रहार है।”
न्यायालय ने यह भी कहा कि यह कोई एकल मामला नहीं है। “जिम्मेदार मीडिया में कई बार ऐसी घटनाओं की रिपोर्ट आई है कि देश के विभिन्न हिस्सों में इस तरह के फर्जी डिजिटल अरेस्ट घोटाले हो रहे हैं,” पीठ ने कहा और इन घटनाओं पर स्वतः संज्ञान लेने की आवश्यकता बताई।
अदालत ने “साइबर अरेस्ट” शब्द का भी उल्लेख किया—यह शब्द अब उन ऑनलाइन घोटालों के लिए प्रचलित हो गया है, जिनमें लोगों को झूठे वारंट या कानूनी कार्रवाई की धमकी देकर ठगा जाता है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि ऐसे अपराधों में बुजुर्गों को विशेष रूप से निशाना बनाया जा रहा है, जो डर और भ्रम में अपनी जीवन भर की बचत गंवा देते हैं।
निर्णय
अंतरिम आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार (गृह मंत्रालय), केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई), हरियाणा सरकार और अंबाला साइबर अपराध अधीक्षक को नोटिस जारी किए हैं। अदालत ने भारत के अटॉर्नी जनरल से भी इस मामले में सहायता मांगी है, जिससे यह स्पष्ट संकेत मिला कि कोर्ट इसे राष्ट्रीय स्तर के खतरे के रूप में देख रही है।
पीठ ने निर्देश दिया कि पीड़ितों की शिकायत और संबंधित दस्तावेजों की पूरी प्रतिलिपि सभी नोटिसधारकों और अटॉर्नी जनरल के कार्यालय को भेजी जाए। अंबाला साइबर अपराध अधीक्षक को जांच की प्रगति पर विस्तृत स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया गया है।
मामले की अगली सुनवाई 27 अक्टूबर 2025 को होगी।
न्यायमूर्ति बागची ने सुनवाई समाप्त होने से पहले टिप्पणी की, “यह सिर्फ साइबर अपराध का मामला नहीं है। जब अदालत के नाम और मुहर की जालसाजी की जाती है, तब यह संस्थागत गरिमा का प्रश्न बन जाता है। प्रतिक्रिया सख्त और समन्वित होनी चाहिए।”
Case: In Re: Victims of Digital Arrest Related to Forged Documents
Type of Case: Suo Motu Writ Petition (Criminal) No. 3 of 2025
Date of Hearing: 17 October 2025