भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में सड़क हादसे में मारे गए एक युवा इंजीनियर के परिवार को मिलने वाला मुआवजा बढ़ा दिया। अदालत ने पटना हाईकोर्ट की आलोचना की, जिसने मुआवजा राशि लगभग आधी कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने वेतन में मिलने वाले भत्तों को गलत तरीके से बाहर रखा और 30% आयकर कटौती मनमाने ढंग से कर दी।
पृष्ठभूमि
यह मामला पावर ग्रिड कॉरपोरेशन के 27 वर्षीय इंजीनियर की दुखद मौत से जुड़ा था। मृतक की मां मनोरमा सिन्हा ने परिवार की ओर से मुजफ्फरपुर स्थित मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण में आवेदन किया था। ट्रिब्यूनल ने मृतक की आय को ध्यान में रखते हुए ₹88.20 लाख का मुआवजा और 6% वार्षिक ब्याज देने का आदेश दिया था।
लेकिन 2022 में पटना हाईकोर्ट ने यह राशि घटाकर ₹38.15 लाख कर दी, यह कहते हुए कि कुछ भत्तों को वेतन में शामिल नहीं किया जा सकता और आय का 30% टैक्स के रूप में काटा जाना चाहिए। इससे असंतुष्ट होकर परिवार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, यह दलील देते हुए कि हाईकोर्ट की गणना न केवल अनुचित थी बल्कि स्थापित कानूनी सिद्धांतों के खिलाफ भी।
न्यायालय के अवलोकन
न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने ट्रिब्यूनल द्वारा अपनाए गए गणना के सिद्धांत को बहाल करते हुए कहा कि “आय में केवल मूल वेतन ही नहीं बल्कि कर्मचारी को मिलने वाले सभी आर्थिक लाभ और भत्ते शामिल होते हैं।”
पीठ ने कहा, “हाईकोर्ट ने आय की गणना से भत्तों को निकालकर गलती की। जैसा कि पहले के निर्णयों में कहा गया है, ‘आय’ शब्द का व्यापक अर्थ लिया जाना चाहिए ताकि परिवार की वास्तविक आर्थिक स्थिति का आकलन हो सके।”
अदालत ने नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड बनाम इंदिरा श्रीवास्तव (2008) और विजय कुमार रस्तोगी बनाम यूपीएसआरटीसी (2018) जैसे फैसलों का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि भत्ते और अन्य लाभ मुआवजा गणना का अभिन्न हिस्सा हैं।
आयकर कटौती के मामले में अदालत ने पाया कि हाईकोर्ट द्वारा किया गया 30% का “सपाट कटौती” “अनुचित और अवास्तविक” था। न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा कि टैक्स की गणना मृत्यु वर्ष (2011) में लागू वास्तविक टैक्स स्लैब के अनुसार होनी चाहिए - जिससे इस मामले में मात्र ₹62,000 के आसपास की कटौती बनती है।
अदालत ने भविष्य की संभावनाओं के लिए 50% वृद्धि को भी बहाल किया, यह कहते हुए कि मृतक एक स्थायी कर्मचारी था और उसकी उम्र 40 वर्ष से कम थी, इसलिए ट्रिब्यूनल द्वारा अपनाई गई दर उचित थी।
Read also:- सुप्रीम कोर्ट ने नासिक भूमि विवाद में भूमि स्वामी को 20 करोड़ मुआवजा बहाल किया, 10 लाख जुर्माना भी किया माफ
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश रद्द करते हुए मुआवजा बढ़ाकर ₹74.43 लाख कर दिया और इसे 6% वार्षिक ब्याज के साथ मूल याचिका की तारीख से भुगतान करने का निर्देश दिया।
अंत में पीठ ने टिप्पणी की कि हाईकोर्ट का दृष्टिकोण स्थापित कानून के अनुरूप नहीं था और इससे पीड़ित परिवार को “अनुचित आर्थिक हानि” हुई।
15 अक्टूबर 2025 को सुनाया गया यह निर्णय एक बार फिर इस बात की याद दिलाता है कि मोटर दुर्घटना मामलों में मुआवजा न्यायसंगत और वास्तविक आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखकर तय किया जाना चाहिए।
Case: Manorma Sinha & Anr. vs The Divisional Manager, Oriental Insurance Co. Ltd. & Anr.
Citation: 2025 INSC 1237
Case Type: Civil Appeal (arising out of SLP (C) No. 19878/2022)
Date of Judgment: October 15, 2025