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बलात्कार और शादी के विवाद में निर्दोष युवक की हत्या करने वाले कर्नाटक के युवक की सजा घटाने से सुप्रीम कोर्ट ने किया इनकार

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के युवक की सजा घटाने से इनकार किया, निर्दोष की हत्या पर 8 साल की सजा बरकरार रखी।

बलात्कार और शादी के विवाद में निर्दोष युवक की हत्या करने वाले कर्नाटक के युवक की सजा घटाने से सुप्रीम कोर्ट ने किया इनकार

शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के एक 20 वर्षीय युवक की अपील खारिज करते हुए उसकी सजा में और कमी करने से इनकार कर दिया। अपीलकर्ता कोट्रेश उर्फ कोट्रप्पा को पारिवारिक झगड़े के दौरान एक निर्दोष व्यक्ति की हत्या करने के अपराध में दोषी ठहराया गया था। न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कर्नाटक हाईकोर्ट के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 304 भाग-II (गैर-इरादतन हत्या) के तहत आठ वर्ष की कठोर कैद की सजा सुनाई गई थी।

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पृष्ठभूमि

यह मामला एक पारिवारिक विवाद से उपजा था। कोट्रेश की चचेरी बहन के साथ ‘वी’ नामक व्यक्ति-जो मृतक ‘एस’ का बड़ा भाई था-ने कथित रूप से बलात्कार किया था। इस घटना के बाद उसने एक बच्चे को जन्म दिया। दोनों परिवारों के बीच इस बात पर तनाव था कि क्या वी को उस युवती से शादी करनी चाहिए ताकि “परिवार की इज्जत बहाल” हो सके। एक दिन पहले सुलह की कोशिश नाकाम रही थी।

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अगले दिन फिर से विवाद भड़क उठा। आरोपी और उसके परिजन वी के घर पहुंचे, जहां कहासुनी झगड़े में बदल गई। एस, जो इस विवाद से कोई लेना-देना नहीं रखता था, बीच-बचाव के लिए आगे आया। उसी वक्त गुस्से में कोट्रेश पास के घर से कुल्हाड़ी उठा लाया और एस की गर्दन पर वार कर दिया। यह एक ही वार उसकी मौत के लिए काफी था।

अदालत की टिप्पणियाँ

सुप्रीम कोर्ट ने घटना पर कड़ा रुख अपनाया। न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा कि भले ही आरोपी अपनी चचेरी बहन की स्थिति से भावनात्मक रूप से विचलित था, लेकिन “घटनास्थल पर कोई ऐसी अचानक उत्तेजना नहीं थी, जिससे उसे इस तरह का कदम उठाने की जरूरत पड़ी हो।”

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अदालत ने माना कि एस केवल सुलह कराने की कोशिश कर रहा था और उसका किसी भी पूर्व विवाद से कोई संबंध नहीं था। उसे “एक निर्दोष पीड़ित” बताते हुए पीठ ने कहा कि आरोपी ने “पूरी तरह अन्यायपूर्ण ढंग से कार्य किया।”

अपीलकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल कौशिक ने दलील दी कि यह कृत्य पूर्वनियोजित नहीं था और युवक पहले ही दो साल छह महीने जेल में बिता चुका है। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में पहले भी अदालतें सजा घटा चुकी हैं, इसलिए नरमी बरती जाए।

हालांकि, अमीकस क्यूरी अशोक गौर ने इस दलील का जोरदार विरोध किया। उन्होंने कहा कि आरोपी को पता था कि कुल्हाड़ी कहां रखी है, जिससे यह साबित होता है कि यह सोची-समझी कार्रवाई थी। “यह न तो आवेश में किया गया काम था और न ही किसी मजबूरी में,” उन्होंने कहा, “यह हत्या पूरी तरह टाली जा सकती थी।”

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पीठ ने राज बाला बनाम राज्य हरियाणा (2016) के अपने पूर्व निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि “सजा तय करते समय अदालत को समाज की सामूहिक आवाज़ को ध्यान में रखना चाहिए” और यह भी कि अत्यधिक नरमी से न्याय व्यवस्था की विश्वसनीयता कमजोर पड़ती है।

निर्णय

सभी साक्ष्यों और पूर्वनिर्णयों की समीक्षा के बाद सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि “सजा में और कमी का कोई आधार नहीं है।” पीठ ने स्पष्ट कहा:

“हाईकोर्ट द्वारा दी गई सजा में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। अपीलकर्ता किसी राहत का पात्र नहीं है।”

हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि कोट्रेश कर्नाटक सरकार की क्षमा नीति (remission policy) के तहत पात्रता मिलने पर समयपूर्व रिहाई के लिए आवेदन कर सकता है।

मामले के अंत में न्यायमूर्ति दत्ता ने शिकायतकर्ता की ओर से नियुक्त अमीकस क्यूरी श्री अशोक गौर और सुश्री शक्शी सिंह की सहायता के लिए आभार व्यक्त किया।

इस प्रकार, अपील खारिज कर दी गई।

Case: Kotresh @ Kotrappa vs State of Karnataka & Anr (2025)

Citation: 2025 INSC 1250

Case Type: Criminal Appeal (arising out of SLP (Crl.) No. 16833 of 2024)

Date of Judgment: October 17, 2025

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