एक कड़े शब्दों वाले फैसले में, बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने बलात्कार के मामले में 10 साल की सजा पाए रोशन बंद्रे, 35 वर्षीय मजदूर, की सजा को रद्द कर दिया। न्यायमूर्ति निवेदिता पी. मेहता ने 24 सितंबर 2025 को फैसला सुनाते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष के साक्ष्यों में गंभीर खामियाँ और विरोधाभास हैं - खासकर कथित पीड़िता की उम्र और उसके बदलते बयानों को लेकर।
अदालत ने माना कि अभियोजन पक्ष "पूरी तरह विफल" रहा यह साबित करने में कि लड़की नाबालिग थी या कि यौन संबंध उसकी इच्छा के विरुद्ध थे।
पृष्ठभूमि
यह मामला अक्टूबर 2017 का है, जब नागपुर निवासी वनीता काले ने एमआईडीसी पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराई थी कि उनकी बड़ी बेटी पूजा (17 वर्ष) को उनके पूर्व मकान मालिक रोशन बंद्रे ने अगवा कर लिया है। एफआईआर के अनुसार, पूजा आरोपी के साथ लाल स्कूटी पर घर से निकली और दो दिनों तक वापस नहीं आई। जब वह लौटी, तो उसने बताया कि बंद्रे ने उसे एक अज्ञात जगह पर ले जाकर कई बार दुष्कर्म किया।
इसके बाद आईपीसी की धारा 363 और 376 तथा पोक्सो अधिनियम की धारा 4 के तहत आरोपपत्र दाखिल किया गया। अक्टूबर 2022 में विशेष पोक्सो न्यायालय, नागपुर ने बंद्रे को धारा 376 (बलात्कार) के तहत दोषी ठहराते हुए 10 वर्ष का कठोर कारावास और ₹3,000 का जुर्माना लगाया।
हालाँकि, अदालत ने अपहरण और पोक्सो के आरोपों से उसे बरी कर दिया क्योंकि अभियोजन यह साबित नहीं कर पाया कि लड़की नाबालिग थी।
अदालत की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति मेहता ने 17 पन्नों के अपने निर्णय में साक्ष्यों की बारीकी से जांच की। अदालत ने पाया कि पीड़िता की उम्र को लेकर गंभीर विरोधाभास हैं - उसकी माँ ने जन्मतिथि 4 जून 2002 बताई, जबकि लड़की ने 21 जनवरी 2004 कहा। स्कूल रिकॉर्ड में भी यही तारीख थी, लेकिन जन्म प्रमाणपत्र में अलग माता-पिता के नाम और बच्चे का नाम ही नहीं था, जिससे यह “अविश्वसनीय और प्रमाण के रूप में अस्वीकार्य” ठहराया गया।
“अभियोजन यह स्थापित करने में पूरी तरह असफल रहा कि घटना के समय पीड़िता नाबालिग थी,” अदालत ने कहा।
न्यायमूर्ति मेहता ने आगे यह भी कहा कि पीड़िता की गवाही भरोसेमंद नहीं है, क्योंकि यह हर चरण में बदलती रही - एफआईआर, मजिस्ट्रेट के बयान और अदालत में दिए गए बयान सभी अलग-अलग थे।
पहले उसने कहा कि आरोपी ने उसकी माँ को जान से मारने की धमकी दी, इसलिए वह उसके साथ गई। बाद में उसने कहा कि आरोपी ने उसे कोई पदार्थ मिला हुआ खाना दिया, जिससे वह अचेत हो गई। लेकिन यह विवरण न तो एफआईआर में था और न ही मजिस्ट्रेट के सामने दिए गए बयान में।
“अभियोजन पक्ष की गवाही विभिन्न चरणों में काफी बदल गई है,” न्यायाधीश ने कहा। “ये गंभीर विरोधाभास उसके बयान की विश्वसनीयता पर संदेह पैदा करते हैं।”
दोनों पक्षों के तर्क
आरोपी के वकील अमित बालपांडे ने तर्क दिया कि लड़की आरोपी के साथ अपनी इच्छा से गई थी। उन्होंने गवाह कल्पना भोयर की गवाही का हवाला दिया, जिन्होंने कहा कि लड़की और आरोपी उनके घर दो-तीन दिन रहे और लड़की ने मंगलसूत्र पहन रखा था तथा खुद को बंद्रे की पत्नी बताया था।
“पीड़िता का आचरण स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि वह अपनी इच्छा से आरोपी के साथ गई थी,” बालपांडे ने कहा।
वहीं, अतिरिक्त लोक अभियोजक एस.एस. हुलके ने तर्क दिया कि भले ही सहमति रही हो, लेकिन चूँकि लड़की नाबालिग थी, इसलिए कानूनी रूप से सहमति अप्रासंगिक है। उन्होंने चिकित्सीय साक्ष्यों का हवाला दिया जिसमें जननांगों पर खरोंच और लालिमा पाई गई, और कहा कि इससे बलात्कार सिद्ध होता है।
लेकिन हाईकोर्ट ने माना कि चिकित्सीय रिपोर्ट में “यौन क्रिया के संकेत तो हैं”, परंतु इससे यह निष्कर्ष नहीं निकलता कि यह जबरन था।
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अदालत का विश्लेषण और तर्क
पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के हाल के निर्णयों - स्टेट ऑफ हिमाचल प्रदेश बनाम संजय कुमार (2025) और स्टेट (जीएनसीटी ऑफ दिल्ली) बनाम विपिन @ लल्ला (2025) - का हवाला दिया, जिनमें कहा गया है कि बलात्कार मामलों में पीड़िता की गवाही के आधार पर ही सजा दी जा सकती है, बशर्ते वह गवाही पूरी तरह विश्वसनीय और आत्मविश्वास उत्पन्न करने वाली हो।
“यह विश्वास करना कठिन है कि जब पीड़िता आरोपी को जानती थी और कई दिनों तक उसके साथ रही, तो यदि उसे जबरन ले जाया गया होता, तो उसने कोई शोर क्यों नहीं मचाया,” न्यायमूर्ति मेहता ने टिप्पणी की।
अदालत ने दोहराया कि सबूत का भार अभियोजन पर होता है, और इस तरह के गंभीर अपराधों में दोषसिद्धि केवल निश्चित और विश्वसनीय साक्ष्य पर ही हो सकती है।
अंतिम निर्णय
सभी विरोधाभासों, उम्र से जुड़े अनिश्चित साक्ष्यों और स्वतंत्र गवाहों की अनुपस्थिति को देखते हुए, हाईकोर्ट ने माना कि अभियोजन यह सिद्ध नहीं कर पाया कि यौन संबंध जबरन थे या पीड़िता नाबालिग थी।
न्यायमूर्ति मेहता ने आदेश दिया:
“17 अक्टूबर 2022 को पारित सजा और निर्णय को रद्द किया जाता है। अभियुक्त को धारा 376 आईपीसी के आरोप से बरी किया जाता है और यदि किसी अन्य मामले में आवश्यक न हो, तो तुरंत रिहा किया जाए।”
अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि जुर्माने की राशि वापस की जाए और नियुक्त वकील को निर्धारित नियमों के अनुसार फीस दी जाए।
इसके साथ ही सात साल पुरानी यह कानूनी लड़ाई, जो एक लापता लड़की की शिकायत से शुरू हुई थी, अंततः आरोपी की बरी होने के साथ खत्म हुई - और अदालत ने एक बार फिर याद दिलाया कि यौन अपराधों के मामलों में सजा केवल उसी स्थिति में दी जानी चाहिए जब साक्ष्य विश्वसनीय, सुसंगत और प्रमाणिक हों।
Case Title: Roshan S/o Ruprao Bandre v. State of Maharashtra
Case Number: Criminal Appeal No. 440 of 2023