नागपुर, 9 अक्टूबर: यवतमाल के तीन डॉक्टर्स को गुरुवार को बंबई हाईकोर्ट (नागपुर बेंच) से बड़ी राहत मिली। अदालत ने उनके खिलाफ दर्ज FIR और चार्जशीट को रद्द कर दिया, जो प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेन्सेस एक्ट (POCSO) और भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत दर्ज की गई थी। यह मामला खास इसलिए भी चर्चा में था क्योंकि इसमें यह सवाल उठाया गया था कि क्या डॉक्टरों को तब भी आपराधिक रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सकता है जब उन्हें अपराध की सीधी जानकारी ही न हो।
पृष्ठभूमि
मामला तब शुरू हुआ जब पुसेद, यवतमाल की एक नाबालिग लड़की, जिसकी सगाई 2024 के अंत में अपने चचेरे भाई से हुई थी, बार-बार दबाव में बनाए गए शारीरिक संबंधों के चलते गर्भवती हो गई। अप्रैल 2025 में स्वास्थ्य संबंधी समस्या होने पर उसे इलाज के लिए स्थानीय डॉक्टरों के पास ले जाया गया। डॉ. विद्या राठौड़ ने प्रेग्नेंसी टेस्ट किया, वहीं डॉ. स्नेहा कदम ने सोनोग्राफी कर रिपोर्ट डॉ. अनिल राठौड़ को सौंपी। मेडिकल रिकॉर्ड में गर्भ ठहरने की पुष्टि हुई।
बाद में पुलिस ने इन तीनों डॉक्टरों पर केस दर्ज किया और आरोप लगाया कि उन्होंने POCSO की धारा 19 के तहत अपराध की सूचना पुलिस को नहीं दी। साथ ही, उन्हें नए लागू हुए BNS की धाराओं में भी आरोपी बनाया गया।
अदालत की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति नंदेश एस. देशपांडे और न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी-फाल्के की खंडपीठ ने FIR, चार्जशीट और दोनों पक्षों की दलीलों का बारीकी से अध्ययन किया। डॉक्टरों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता फिरदोस मिर्जा ने कहा कि चिकित्सक सिर्फ अपना पेशेवर दायित्व निभा रहे थे और उन्हें लड़की की उम्र या गर्भधारण की परिस्थितियों की जानकारी नहीं थी। “ऐसे हालात में उनके खिलाफ मुकदमा चलाना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा,” उन्होंने कहा।
राज्य पक्ष और पीड़िता की वकील ने इसका विरोध करते हुए कहा कि डॉक्टरों पर यह कानूनी जिम्मेदारी थी कि जैसे ही उन्हें शक होता, वे पुलिस को सूचना देते। उन्होंने अस्पताल के रजिस्टर और सोनोग्राफी रिपोर्ट को साक्ष्य के तौर पर पेश किया।
लेकिन अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के SR टेसी जोस बनाम स्टेट ऑफ केरल (2018) मामले का हवाला दिया, जिसमें साफ किया गया था कि जब तक डॉक्टरों को अपराध की स्पष्ट “जानकारी” न हो, तब तक उन्हें आपराधिक रूप से जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। हाईकोर्ट ने भी वही दृष्टिकोण अपनाया और कहा:
"ज्ञान की आवश्यकता को इस तरह नहीं खींचा जा सकता कि डॉक्टरों को नाबालिग की उम्र का अनुमान लगाना पड़े या गर्भधारण की परिस्थितियों की जांच करनी पड़े। वे केवल अपना पेशेवर कार्य कर रहे थे।"
Read also:- सुप्रीम कोर्ट ने न्यायिक अधिकारियों को जिला न्यायाधीश सीधी भर्ती परीक्षा में भाग लेने की अनुमति दी
खंडपीठ ने आगे कहा,
"यदि धारा 19 की ऐसी व्याख्या की जाए, तो इसके गंभीर नतीजे होंगे और डॉक्टर अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाने से कतराने लगेंगे।"
निर्णय
अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि कोई ऐसा सबूत नहीं है जिससे यह साबित हो कि डॉक्टरों को अपराध की जानकारी थी या उन्हें विश्वास करने का कारण था कि अपराध हुआ है। इसलिए पुसेद सिटी पुलिस स्टेशन में दर्ज FIR नं. 0259/2025 और चार्जशीट नं. 451/2025 को रद्द कर दिया गया।
इस फैसले से स्पष्ट हो गया कि सिर्फ मरीज का इलाज करने वाले डॉक्टरों को आपराधिक मामलों में नहीं घसीटा जा सकता, जब तक कि उनके पास अपराध की सीधी जानकारी न हो। इसी के साथ डॉ. अनिल राठौड़, डॉ. विद्या राठौड़ और डॉ. स्नेहा कदम की याचिकाएं मंजूर कर ली गईं और उनके खिलाफ सभी कार्यवाही समाप्त कर दी गई।
Case Title: Sneha Nakul Kadam vs State of Maharashtra