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उत्तर प्रदेश व्यापार कर अधिनियम के तहत कार्य अनुबंधों में प्रयुक्त मुद्रण सामग्री पर कर देयता स्पष्ट की सुप्रीम कोर्ट ने

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने लॉटरी टिकट मुद्रण में प्रयुक्त स्याही व रसायनों पर कर को सही ठहराया, कार्य अनुबंध कर देयता स्पष्ट की।

उत्तर प्रदेश व्यापार कर अधिनियम के तहत कार्य अनुबंधों में प्रयुक्त मुद्रण सामग्री पर कर देयता स्पष्ट की सुप्रीम कोर्ट ने

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि लॉटरी टिकटों जैसी वस्तुओं के मुद्रण कार्य में प्रयुक्त स्याही, रसायन और प्रसंस्करण सामग्री, उत्तर प्रदेश व्यापार कर अधिनियम, 1948 की धारा 3F के अंतर्गत व्यापार कर के अधीन हैं। यह फैसला एम/एस अरिस्टो प्रिंटर्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर उन अपीलों पर आया जिनमें कंपनी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वर्ष 2010 के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें राज्य के व्यापार कर विभाग द्वारा लगाए गए कर को बहाल किया गया था।

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न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला की अध्यक्षता वाली पीठ ने “कार्य अनुबंध में वस्तुओं के स्वामित्व के हस्तांतरण” की अवधारणा का विस्तार से विश्लेषण किया - जो भारतीय कर कानून में लंबे समय से विवादित विषय रहा है।

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पृष्ठभूमि

गाज़ियाबाद स्थित अरिस्टो प्रिंटर्स लॉटरी टिकटों की छपाई का कार्य करती थी। इसमें उपयोग की जाने वाली स्याही और रसायन कंपनी स्वयं उपलब्ध कराती थी, जबकि कागज ग्राहकों द्वारा दिया जाता था। विवाद तब शुरू हुआ जब आकलन अधिकारी ने इन सामग्रियों के मूल्य पर व्यापार कर लगाया, यह कहते हुए कि ये सामग्रियाँ कार्य अनुबंध के निष्पादन में प्रयुक्त “वस्तुएं” हैं जिनका स्वामित्व अंततः ग्राहक को स्थानांतरित होता है।

शुरुआत में अपीलीय प्राधिकारी और व्यापार कर अधिकरण ने अरिस्टो प्रिंटर्स के पक्ष में फैसला दिया और कहा कि ये सामग्री उपभोज्य (consumables) हैं, जो उपयोग के दौरान समाप्त हो जाती हैं और ग्राहकों को स्थानांतरित नहीं होतीं। लेकिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह निर्णय पलट दिया। न्यायालय ने माना कि स्याही और रसायन, भले ही मिश्रित या पतले रूप में हों, वे छपे हुए टिकटों का दृश्य हिस्सा बन जाते हैं, और इस प्रकार उनका स्वामित्व ग्राहक तक स्थानांतरित होता है।

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न्यायालय की टिप्पणियाँ

सुप्रीम कोर्ट ने पहले यह देखा कि व्यापार कर अधिनियम और 46वें संविधान संशोधन के बाद “कार्य अनुबंध” की अवधारणा क्या है। न्यायालय ने कहा कि धारा 3F(1)(b) के तहत कर अंतिम उत्पाद पर नहीं, बल्कि उस वस्तु पर लगता है जो अनुबंध के निष्पादन में प्रयुक्त होती है - चाहे वह अपने मूल रूप में रहे या किसी अन्य रूप में बदल जाए।

अपीलकर्ता का मुख्य तर्क यह था कि लॉटरी टिकट “वस्तु” नहीं बल्कि “प्रवर्तनीय दावा” (actionable claim) हैं। इस पर न्यायालय ने स्पष्ट किया कि कर लॉटरी टिकटों पर नहीं, बल्कि उन्हें छापने में प्रयुक्त स्याही और रसायनों पर लगाया गया है। “यह कर अनुबंध के निष्पादन में शामिल वस्तुओं पर है, न कि अंतिम उत्पाद पर,” पीठ ने कहा।

न्यायालय ने बिल्डर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया बनाम भारत संघ और लार्सन एंड टुब्रो बनाम कर्नाटक राज्य जैसे पूर्व निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि वस्तु का स्वामित्व तब भी स्थानांतरित हो सकता है जब उसका स्वरूप बदल जाए।

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“पीठ ने कहा, ‘यदि स्याही या रसायन मुद्रित सामग्री का हिस्सा बन जाते हैं, भले ही वे पतले या परिवर्तित रूप में हों, तो उनका स्वामित्व ग्राहक को स्थानांतरित माना जाएगा। ऐसा स्थानांतरण धारा 3F के अंतर्गत कर योग्य है।’”

न्यायालय ने यह भी जोड़ा कि “सिर्फ इसलिए कि कोई वस्तु उपभोज्य है, वह कर से मुक्त नहीं हो जाती।” यह इस बात पर निर्भर करता है कि वह वस्तु अंतिम उत्पाद का हिस्सा बनती है या नहीं। इस मामले में न्यायालय ने पाया कि स्याही और रसायन टिकटों का दृश्य और आवश्यक हिस्सा बनते हैं, अतः उनका स्वामित्व स्थानांतरित हुआ माना जाएगा।

निर्णय

अंततः सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखते हुए यह निर्णय दिया कि लॉटरी टिकटों की छपाई में प्रयुक्त स्याही, रसायन और अन्य सामग्री पर उत्तर प्रदेश व्यापार कर अधिनियम, 1948 की धारा 3F(1)(b) के तहत कर देय है।

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इसके साथ ही न्यायालय ने मुद्रण और प्रसंस्करण उद्योगों के लिए एक महत्वपूर्ण स्पष्टता दी कि किसी कार्य अनुबंध के दौरान यदि कोई सामग्री भौतिक या दृश्य रूप में ग्राहक को हस्तांतरित होती है, तो वह “वस्तु के स्वामित्व का हस्तांतरण” मानी जाएगी और उस पर कर लगाया जा सकेगा।

अरिस्टो प्रिंटर्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर अपीलें खारिज कर दी गईं।

Case: M/s Aristo Printers Pvt. Ltd. vs Commissioner of Trade Tax, Lucknow (U.P.)

Citation: 2025 INSC 1188

Case Type: Civil Appeal Nos. 703 & 705 of 2012 (Arising out of SLP (C) Nos. 15476 & 15478 of 2011)

Decision Date: 2025

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