इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रिंसु सिंह द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने भारतीय स्टेट बैंक (SBI) में संविदा (करुणामूलक) आधार पर नौकरी की मांग की थी। अदालत ने याचिका को देरी और लापरवाही के आधार पर अस्वीकार किया, लेकिन साथ ही बैंक की निष्क्रियता की कड़ी आलोचना करते हुए उस पर ₹1 लाख का खर्च लगाने का आदेश दिया। यह राशि दो महीने के भीतर याची को दी जानी है।
पृष्ठभूमि
यह मामला याची के पिता से जुड़ा है, जिन्हें वर्ष 2006 में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। 2015 में श्रम न्यायालय ने बर्खास्तगी को रद्द कर पुनर्नियुक्ति और सभी लाभ देने का आदेश दिया। हालांकि, 2016 में हाईकोर्ट ने इस आदेश पर रोक लगा दी, केवल आंशिक राहत देते हुए। इसी बीच दिसंबर 2019 में याची के पिता की सेवा काल में ही मृत्यु हो गई।
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पिता की मृत्यु के बाद जनवरी 2020 में याची की माता ने संविदा नियुक्ति के लिए आवेदन किया, जो कि एसबीआई की योजना के तहत छह माह की समयसीमा में था। इसके बाद अप्रैल 2025 में एक और आवेदन किया गया, जिसने देरी के सवाल खड़े कर दिए।
अदालत की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति अजय भनोट ने संविदा नियुक्ति के उद्देश्य पर विस्तार से विचार किया और कहा कि यह सामान्य भर्ती प्रक्रिया से एक सीमित अपवाद है। बेंच ने टिप्पणी की, “इसका एकमात्र उद्देश्य मृतक कर्मचारी के परिवार को तुरंत वित्तीय सहारा प्रदान करना है।” उन्होंने यह भी कहा कि ऐसी नियुक्ति को वंशानुगत अधिकार की तरह नहीं देखा जा सकता।
अदालत ने नोट किया कि पहला आवेदन समय पर था, लेकिन याची ने मामले को तत्परता से आगे नहीं बढ़ाया। इसके बजाय उन्होंने स्नातक पूरा करने और पारिवारिक मुकदमों में वर्षों बिताए। आदेश में कहा गया, “याची के आचरण से यह निष्कर्ष निकलता है कि 2019 में हुई मृत्यु से उत्पन्न तत्काल आर्थिक संकट लंबे समय पहले समाप्त हो चुका था।”
सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसलों, जिनमें कैनरा बैंक बनाम अजीतकुमार जी.के. शामिल है, का हवाला देते हुए बेंच ने दोहराया कि देर से किए गए दावे संविदा नियुक्ति के उद्देश्य को कमजोर कर देते हैं। कानून यह मानता है कि यदि परिवार वर्षों तक बिना इस लाभ के गुज़ारा कर लेता है, तो अब तात्कालिक आवश्यकता नहीं बची है।
साथ ही अदालत ने उत्तरदायी बैंक को भी नहीं बख्शा और कहा कि उसने याची के आवेदन को समय पर निपटाने में गंभीर लापरवाही की है।
फैसला
अंत में, हाईकोर्ट ने याचिका को देरी और लापरवाही के कारण खारिज कर दिया। हालांकि, अदालत ने बैंक को आदेश दिया कि वह याची को ₹1,00,000 की राशि दो महीने के भीतर अदा करे। बेंच ने साफ कर दिया कि संविदा नियुक्ति के नियमों की गलत सहानुभूति या अत्यधिक उदार व्याख्या “इसकी वैधता को ही खत्म कर देगी।”
Case Title: Prinsu Singh v. Union of India & Others
Case No.: Writ - A No. 5353 of 2025
Date of Order: 25 September 2025