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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पत्नी को भरण-पोषण से वंचित करने का चंदौली फैमिली कोर्ट का आदेश किया खारिज, पूर्व विवाह छुपाने का तर्क अस्वीकार

Shivam Y.

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पत्नी को गुजारा भत्ता देने से इनकार करने वाले चंदौली परिवार न्यायालय के आदेश को पलट दिया, पति की पिछली शादी को छुपाने के दावे को खारिज करने का कोई आधार नहीं है। - श्वेता जयसवाल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य। और दूसरा

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पत्नी को भरण-पोषण से वंचित करने का चंदौली फैमिली कोर्ट का आदेश किया खारिज, पूर्व विवाह छुपाने का तर्क अस्वीकार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चंदौली फैमिली कोर्ट का वह आदेश पलट दिया है, जिसमें महिला, स्वेता जायसवाल, को उसके पति के पहले विवाह को छिपाने के आधार पर भरण-पोषण देने से इंकार कर दिया गया था। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि जब तक विवाह को कानूनी रूप से रद्द नहीं किया जाता, पत्नी का भरण-पोषण पाने का अधिकार केवल धारणाओं के आधार पर नकारा नहीं जा सकता।

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पृष्ठभूमि

विवाद उत्पन्न हुआ था भरण-पोषण याचिका संख्या 332/2015 से, जो स्वेता जायसवाल ने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के तहत दायर की थी। उन्होंने पति संतोष जायसवाल पर क्रूरता और दहेज मांगने के आरोप लगाए और आर्थिक सहायता मांगी। लेकिन चंदौली फैमिली कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश ने नवंबर 2017 में उनका दावा खारिज कर दिया, जबकि उनकी नाबालिग बेटी के लिए ₹2,000 प्रतिमाह का भरण-पोषण मंजूर कर दिया।

फैमिली कोर्ट ने CrPC की धारा 125(4) का सहारा लिया, जिसके अनुसार यदि पत्नी बिना उचित कारण पति के साथ रहने से इंकार करती है, तो वह भरण-पोषण की हकदार नहीं होती। अदालत ने माना कि पति के पहले विवाह और तलाक छिपाने का स्वेता का उल्लेख यह दर्शाता है कि वह बिना वजह अलग रह रही है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति राजीव लोचन शुक्ला ने इस निष्कर्ष से असहमति जताई। अदालत ने कहा -

"पूर्व विवाह और तलाक छुपाने का केवल एक सरसरी उल्लेख यह साबित नहीं करता कि पुनरीक्षणकर्ता पत्नी जानबूझकर वैवाहिक कर्तव्यों से बच रही है।"

हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट को इस बात पर भी फटकार लगाई कि उसने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 12(1)(c) पर भरोसा किया, जो शून्य योग्य विवाह (voidable marriages) से संबंधित है। न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि जब तक विवाह को शून्य घोषित करने का डिक्री पारित नहीं होता, पत्नी वैधानिक पत्नी बनी रहती है और उसके सभी अधिकार बने रहते हैं, जिसमें भरण-पोषण भी शामिल है।

कोर्ट ने कहा—

"केवल यह मान लेना कि विवाह रद्द हो सकता है और इस आधार पर पत्नी का भरण-पोषण का अधिकार खत्म हो गया, यह गलत और अवैध है।"

न्यायमूर्ति शुक्ला ने उच्चतम न्यायालय के हालिया निर्णय सुखदेव सिंह बनाम सुखबीर कौर (2025 SCC OnLine SC 299) का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि शून्य या शून्य योग्य विवाहों में भी परिस्थितियों के अनुसार अदालत भरण-पोषण या अंतरिम सहायता दे सकती है।

फैसला

चंदौली फैमिली कोर्ट का आदेश खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने पुनरीक्षण याचिका स्वीकार कर ली। मामला अब फिर से चंदौली फैमिली कोर्ट को भेज दिया गया है, ताकि स्वेता जायसवाल के भरण-पोषण दावे पर नए सिरे से फैसला लिया जाए, जबकि बेटी को पहले से दिया जा रहा ₹2,000 प्रतिमाह का भरण-पोषण जस-का-तस रहेगा।

हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि फैमिली कोर्ट तीन महीने के भीतर दोनों पक्षों को सुनकर निर्णय दे।

इस आदेश के साथ हाईकोर्ट ने दोहराया कि जब तक विवाह कानूनी रूप से रद्द न हो, महिला के भरण-पोषण के अधिकार को हल्के में नहीं छीना जा सकता।

Case Title: Sweta Jaiswal vs. State of U.P. and Another

Case No.: Criminal Revision No. 3893 of 2017

Date of Decision: 24 September 2025

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