प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को एक बड़ा झटका देते हुए, दिल्ली उच्च न्यायालय ने 17 अक्टूबर, 2025 को एजेंसी की उस अपील को खारिज कर दिया, जिसमें विवादास्पद चोटिया कोयला ब्लॉक से जुड़ी 227 करोड़ रुपये की अस्थायी कुर्की को रद्द करने वाले एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती दी गई थी। न्यायमूर्ति अनिल क्षेत्रपाल और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने फैसला सुनाया कि केवल एक कोयला ब्लॉक प्राप्त करना - भले ही गलत बयानी के माध्यम से - धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत स्वतः ही "अपराध की आय" में तब्दील नहीं हो जाता।
पृष्ठभूमि
यह मामला 2000 के दशक की शुरुआत का है, जब प्रकाश इंडस्ट्रीज लिमिटेड (PIL) को छोटिया कोयला ब्लॉक आवंटित किया गया था। यह वही दौर था जब सैकड़ों कोयला ब्लॉकों के आवंटन पर सवाल उठे थे और 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने मनोज लाल शर्मा बनाम भारत संघ मामले में 200 से अधिक आवंटनों को अवैध घोषित कर रद्द कर दिया था।
उस फैसले के बाद, सीबीआई ने दो आरोपपत्र दाखिल किए, जिनमें कहा गया कि प्रकाश इंडस्ट्रीज ने अपनी क्षमता और वित्तीय स्थिति को लेकर झूठे व जाली दस्तावेज जमा कराए थे ताकि ब्लॉक हासिल किया जा सके।
इसके समानांतर, ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग जांच शुरू की और दिसंबर 2021 में ₹227 करोड़ की संपत्तियों को “अपराध की आय” बताते हुए जब्त कर लिया।
हालांकि, दिल्ली हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश ने जुलाई 2022 में यह अटैचमेंट रद्द कर दी। ईडी ने इसके खिलाफ एलपीए 588/2022 और 590/2022 दाखिल किए, जिन्हें अब खंडपीठ ने एक साथ निपटाया है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
मामले का मूल प्रश्न था - क्या कोयला ब्लॉक का आवंटन “संपत्ति” माना जा सकता है और इस प्रकार इसे अपराध की आय के रूप में देखा जा सकता है?
अदालत का जवाब स्पष्ट था - नहीं।
न्यायमूर्ति क्षेतरपाल ने लिखा कि “कोयला ब्लॉक का आवंटन स्वयं में न तो संपत्ति है और न ही संपत्ति में कोई अधिकार प्रदान करता है।” पीठ ने कहा कि ऐसा आवंटन केवल एक अनुमति है जिससे कंपनी संबंधित राज्य सरकार से लीज के लिए आवेदन कर सकती है, यह स्वयं में कोई वित्तीय लाभ नहीं देता जिसे मनी लॉन्ड्रिंग कानून के तहत जब्त किया जा सके।
“यह अधिनियम उन संपत्तियों को जब्त करने के लिए है जो आपराधिक गतिविधियों से अर्जित होती हैं - न कि प्रशासनिक अनुमतियों को,” पीठ ने कहा। “आवंटन को स्वयं अपराध की आय नहीं माना जा सकता।”
अदालत ने ईडी की उस दलील की भी आलोचना की जिसमें उसने धारा 3 के अंतर्गत “प्रक्रिया” (process) शब्द की बहुत व्यापक व्याख्या की थी। न्यायालय ने कहा कि पीएमएलए की कार्यवाही अनुमान पर नहीं टिक सकती; इसमें स्पष्ट और निकट संबंध दिखाना जरूरी है कि कथित अपराध से संपत्ति कैसे जुड़ी है।
महत्वपूर्ण रूप से, अदालत ने पाया कि ईडी का मामला उस दूसरी सीबीआई चार्जशीट पर आधारित था जो खुद केवल आवंटन की तिथि तक (04 सितंबर 2003) की घटनाओं तक सीमित थी। जबकि वास्तविक कोयला उत्खनन और बिक्री - जो आय उत्पन्न कर सकती थी - उस तिथि के बाद हुई थी और वह पहले वाले, अब रद्द किए गए एफआईआर का हिस्सा थी।
“आवंटन के बाद का उपयोग और कथित अपराध की आय का सृजन दूसरी चार्जशीट के दायरे से बाहर है,” अदालत ने कहा, जो एकल न्यायाधीश के तर्क से मेल खाता है।
दलीलें और जवाब
ईडी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ज़ोहेब हुसैन ने दलील दी कि प्रकाश इंडस्ट्रीज ने "अपनी वित्तीय क्षमता को गलत तरीके से पेश किया" और धोखाधड़ी के ज़रिए कोयला ब्लॉक हासिल किया। उन्होंने दावा किया कि इसके बाद हुए अवैध खनन से ₹950 करोड़ से ज़्यादा मूल्य का कोयला निकला, जिससे प्राप्त राशि पीएमएलए की धारा 5 के तहत ज़ब्त की जा सकती है।
वहीं, कपिल सिब्बल, जो PIL की ओर से पेश हुए, ने कहा कि कंपनी पहले ही सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार ₹249 करोड़ अतिरिक्त लेवी के रूप में और ₹186 करोड़ करों व शुल्कों के रूप में चुका चुकी है। “अब जब्त करने लायक कोई अपराध की आय बची ही नहीं है,” उन्होंने कहा और ईडी की ₹951 करोड़ की गणना को “कानूनी व गणितीय रूप से अस्थिर” बताया।
अदालत ने इस तर्क को स्वीकार करते हुए कहा कि ईडी अपनी गणनाओं का कोई ठोस आधार नहीं दिखा सकी और यह भी नहीं बता पाई कि 04 सितंबर 2003 तक कंपनी को कोई “वित्तीय लाभ” प्राप्त हुआ था।
निर्णय
52 पृष्ठों के फैसले में खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश के आदेश को पूरी तरह बरकरार रखा। अदालत ने कहा -
- प्रवर्तन निदेशालय की अपील स्वीकार्य तो है, परंतु निराधार है।
- कोयला ब्लॉक का आवंटन, भले ही अनियमित हो, पीएमएलए की धाराओं 2(1)(u) और 2(1)(v) के तहत संपत्ति या अपराध की आय नहीं माना जा सकता।
- 1 दिसंबर 2021 की अस्थायी अटैचमेंट आदेश तथा उससे जुड़ी सभी कार्यवाहियाँ रद्द की जाती हैं।
इसके साथ ही दोनों अपीलें निपटा दी गईं, जिससे भारत के कोयला आवंटन विवादों से उपजे एक लंबे मुकदमे का फिलहाल पटाक्षेप हुआ।
अदालत से बाहर एक वकील ने कहा,
“यह फैसला दिखाता है कि हर गलत कार्य मनी लॉन्ड्रिंग नहीं होता - कानून को एक साफ सीमा रेखा खींचनी ही होगी।”