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झारखंड हाईकोर्ट ने हरीश कुमार पाठक की नई अग्रिम जमानत याचिका खारिज की, कहा– दो बार अस्वीकृति के बाद कोई नया आधार नहीं

Vivek G.

झारखंड हाईकोर्ट ने हरीश कुमार पाठक की अग्रिम जमानत याचिका खारिज की, कहा– 2016 के हमले के मामले में कोई नया आधार नहीं।

झारखंड हाईकोर्ट ने हरीश कुमार पाठक की नई अग्रिम जमानत याचिका खारिज की, कहा– दो बार अस्वीकृति के बाद कोई नया आधार नहीं

झारखंड हाईकोर्ट, रांची ने बुधवार को 58 वर्षीय आदित्यपुर निवासी हरीश कुमार पाठक को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया, जो 2016 के एक मामले में गिरफ्तारी से बचना चाहते थे। यह मामला हमले और गैर-इरादतन हत्या जैसे गंभीर आरोपों से जुड़ा है। न्यायमूर्ति संजय कुमार द्विवेदी की पीठ ने कहा कि पहले दो बार अग्रिम जमानत अस्वीकृत होने के बाद बिना किसी नए आधार के दोबारा याचिका दाखिल करना विधिसम्मत नहीं है।

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पृष्ठभूमि

यह मामला नारायणपुर थाना कांड संख्या 154/2016 से जुड़ा है, जिसमें पाठक और अन्य लोगों पर भारतीय दंड संहिता की धाराओं 354 (महिला पर हमला), 323 (साधारण मारपीट), 325 (गंभीर चोट पहुँचाना), 307 (हत्या का प्रयास) और बाद में जोड़ी गई धारा 304 (गैर-इरादतन हत्या) के तहत आरोप लगाए गए थे।

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पाठक ने पहले 2018 और 2019 में अग्रिम जमानत के लिए हाईकोर्ट में दो याचिकाएं दायर की थीं, जिन्हें खारिज कर दिया गया था। 2019 में उन्होंने मुकदमे को रद्द करने के लिए एक याचिका भी दाखिल की थी, जिसे अगस्त 2025 में वापस ले लिया गया।

याचिकाकर्ता के वकील इंद्रजीत सिन्हा ने तर्क दिया कि “नया कारण उत्पन्न हुआ है” क्योंकि विभागीय जांच में पाठक को बरी कर दिया गया है और चिकित्सकीय रिपोर्ट में यह बताया गया है कि मृतक की मौत बीमारी के कारण हुई थी, न कि किसी हमले से।

अदालत की टिप्पणियाँ

हालांकि, न्यायमूर्ति द्विवेदी इस तर्क से सहमत नहीं हुए। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धाराओं का हवाला देते हुए अदालत ने स्पष्ट किया कि एक बार अग्रिम जमानत याचिका खारिज हो जाने के बाद, वही तथ्यों पर पुनः विचार नहीं किया जा सकता।

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अदालत ने कहा, “BNSS की धारा 482 में प्रयुक्त शब्दों और भाषा से यह कहीं नहीं झलकता कि अग्रिम जमानत के लिए पुनः आवेदन किया जा सकता है, क्योंकि जब पहले आवेदन को अस्वीकृत कर दिया गया है तो गिरफ्तारी की आशंका के ‘विश्वास के कारणों’ को फिर से जीवित नहीं किया जा सकता।”

पीठ ने धारा 482 (अग्रिम जमानत) और धारा 483 (सामान्य जमानत) के बीच स्पष्ट अंतर बताया। अदालत ने कहा कि जहाँ हिरासत में व्यक्ति को बार-बार नियमित जमानत मांगने का अधिकार है, वहीं अग्रिम जमानत के मामले में यह सुविधा नहीं दी गई है।

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय महादोलाल बनाम एडमिनिस्ट्रेटर जनरल (AIR 1960 SC 1930) का हवाला देते हुए न्यायमूर्ति द्विवेदी ने याद दिलाया कि “न्यायिक शालीनता और विधिक मर्यादा न्यायिक प्रक्रिया की नींव हैं,” और यदि समान पीठ के न्यायाधीश एक-दूसरे के निर्णयों को पलटने लगें तो “न्यायिक अराजकता और पूर्ण भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाएगी।”

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निर्णय

अदालत ने कहा कि कोई नया आधार या परिस्थिति नहीं दिखती, इसलिए याचिका विचारणीय नहीं है। “इन सभी पहलुओं पर पहले की अग्रिम जमानत याचिकाओं में विचार किया जा चुका है,” न्यायमूर्ति द्विवेदी ने कहा, यह भी जोड़ते हुए कि पुलिस और सीआईडी दोनों की जांच के बाद चार्जशीट पहले ही दाखिल हो चुकी है।

इसलिए, झारखंड हाईकोर्ट ने हरीश कुमार पाठक की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी, जिससे फिलहाल उनकी गिरफ्तारी से पहले राहत पाने की लंबी कानूनी कोशिश पर विराम लग गया।

Case Title: Harish Kumar Pathak vs. State of Jharkhand

Case Number: A.B.A. No. 5595 of 2025

Date of Order: 9 October 2025

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