उड़ीसा हाईकोर्ट में हुई एक भावनात्मक और मानवीय सुनवाई में जस्टिस एस.के. मिश्रा ने उस फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया जिसमें एक पिता को अपने सात वर्षीय बेटे से मिलने का अधिकार नहीं दिया गया था। यह फैसला संजय शर्मा बनाम डॉली @ साखी शर्मा एवं अन्य मामले में आया, जहाँ याचिकाकर्ता ने लंबे समय से बेटे से संपर्क न होने के बाद मुलाक़ात का अधिकार मांगा था।
“प्राकृतिक पिता को मुलाक़ात का अधिकार न देना अन्यायपूर्ण और स्थापित कानून के विपरीत प्रतीत होता है,” बेंच ने कहा, जबकि बेटे से सीमित मुलाक़ात का अधिकार बहाल किया गया।
पृष्ठभूमि
संजय शर्मा और डॉली का विवाह वर्ष 2011 में हुआ था, लेकिन पांच वर्षों बाद दोनों में मतभेद उत्पन्न हो गए और वे अलग हो गए। बाद में बारगढ़ फैमिली कोर्ट ने विवाह को एक्स-पार्टी (एकतरफा) रूप से समाप्त कर दिया। तलाक के बाद डॉली ने 56 वर्षीय व्यवसायी अशोक लोधा से विवाह कर लिया, जिनके पहले से तीन बच्चे हैं।
दोनों के बीच यह सहमति बनी थी कि उनकी बेटी, शान्वी, माँ के साथ रहेगी और बेटा, शिवाय, पिता के पास रहेगा। लेकिन यह समझौता ज़्यादा दिन नहीं चला। 5 फरवरी 2024 को जब संजय ने अपने बेटे को कैम्ब्रिज स्कूल, कटक में छोड़ा, तब डॉली उसे “बीमार होने” के बहाने लेकर गईं और फिर कभी वापस नहीं लौटीं।
संजय ने कई बार पुलिस में शिकायत की, यहाँ तक कि डीसीपी कटक को प्रतिनिधित्व भी दिया, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। अंततः उन्होंने फैमिली कोर्ट में अपने बेटे की कस्टडी (हिरासत) और कम से कम मुलाक़ात का अधिकार माँगते हुए याचिका दाखिल की।
परंतु मार्च 2025 में फैमिली कोर्ट ने उनकी याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि “कोई उपयुक्त स्थान नहीं है” और “अप्रिय घटना की संभावना है।"
अदालत की टिप्पणियाँ
सुनवाई के दौरान जस्टिस मिश्रा ने फैमिली कोर्ट के तर्कों की गहराई से समीक्षा की और उन्हें त्रुटिपूर्ण पाया।
“बच्चा केवल माँ या पिता का नहीं होता,” न्यायाधीश ने कहा, “बल्कि दोनों का होता है। बच्चे के कल्याण को केवल एक अभिभावक की दृष्टि से नहीं देखा जा सकता।”
हाईकोर्ट ने कहा कि निचली अदालत को दोनों पक्षों से परामर्श लेकर मुलाक़ात के लिए उपयुक्त स्थान और समय तय करना चाहिए था, न कि याचिका को सीधे अस्वीकार करना।
एक संवेदनशील क्षण में, न्यायाधीश मिश्रा ने चैंबर में स्वयं बच्चे शिवाय से बातचीत की। शुरुआत में शिवाय भयभीत दिखा और जब उससे पिता के बारे में पूछा गया तो उसने कहा, "बाहर जो अंकल खड़े हुए हैं उनसे डर लगता है।”
आदेश के अनुसार, इस वक्तव्य ने अदालत को चिंतित कर दिया कि बच्चे को अपने जैविक पिता से डरने के लिए सिखाया गया होगा।
कानूनी आधार
अदालत ने मंजूषा सिंघानिया बनाम निमिष सिंघानिया (2025) और यशिता साहू बनाम राजस्थान राज्य (2020) जैसे पूर्व फैसलों का हवाला दिया, जिनमें यह कहा गया था कि बच्चे के कल्याण में दोनों माता-पिता का स्नेह और साथ आवश्यक है।
जस्टिस मिश्रा ने स्पष्ट कहा:
“कम उम्र का बच्चा दोनों माता-पिता के प्रेम, स्नेह और साथ का हकदार है। यह केवल एक विशेषाधिकार नहीं बल्कि उसका मौलिक मानव अधिकार है।”
उन्होंने यह भी कहा कि फैमिली कोर्ट ने “तकनीकी दृष्टिकोण” अपनाया, जबकि केवल प्रशासनिक कठिनाइयाँ किसी अभिभावक के अपने बच्चे से मिलने के मौलिक अधिकार को खत्म नहीं कर सकतीं।
अदालत का निर्णय
उड़ीसा हाईकोर्ट ने 24 मार्च 2025 को पारित फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए मामला वापस भेज दिया, ताकि दोनों पक्षों और उनके वकीलों की सलाह से मुलाक़ात का समय, स्थान और अवधि तय की जा सके।
जब तक फैमिली कोर्ट नया आदेश पारित नहीं करती, हाईकोर्ट ने निर्देश दिया कि संजय को अपने बेटे से फोन या व्हाट्सएप के माध्यम से बात करने की अनुमति जारी रहे।
फैसले का समापन इस चेतावनी के साथ हुआ कि अभिरक्षा के झगड़े “अभिभावकों के अहंकार का युद्ध” न बनें।
“बच्चा कोई वस्तु नहीं है जिसे माता-पिता के बीच उछाला जाए। हर बिछड़ाव और हर मिलन उसके मन पर निशान छोड़ता है - अदालत का दायित्व है उस पीड़ा को कम करना।”
इन टिप्पणियों के साथ याचिका को स्वीकार किया गया और निस्तारित कर दिया गया, जिससे उस पिता को राहत मिली जो महीनों से अपने बेटे से बात करने के लिए तरस रहा था।
Case Details: Sanjay Sharma vs. Dolly @ Sakhi Sharma & Another
Case Number: W.P.(C) No. 10091 of 2025
Date of Judgment: 10 October 2025