इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षकों की अनुपस्थिति के बढ़ते मुद्दे पर कड़े शब्दों में आदेश जारी किया है। न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरि ने इंद्रा देवी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि इस तरह की लापरवाही संविधान द्वारा प्रत्येक बच्चे को दिए गए शिक्षा के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है।
यह मामला प्रधानाध्यापिका इंद्रा देवी के निलंबन से उत्पन्न हुआ, जो बांदा जिले के एक संयुक्त विद्यालय में निरीक्षण के दौरान बिना अनुमति के अनुपस्थित पाई गईं।
पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता इंद्रा देवी ने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, बांदा द्वारा 30 अगस्त 2025 को जारी निलंबन आदेश को रद्द करने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने अपनी बहाली और नियमित वेतन भुगतान का भी अनुरोध किया था।
जिला अधिकारियों द्वारा निरीक्षण के दौरान, दोपहर लगभग 1:30 बजे स्कूल खाली पाया गया - कोई भी कर्मचारी या छात्र मौजूद नहीं था। निरीक्षण नोट में दर्ज किया गया था कि उपस्थिति रजिस्टर पर भी उचित हस्ताक्षर नहीं थे, जिससे नियमित कामकाज को लेकर चिंताएँ पैदा हो रही थीं।
न्यायमूर्ति गिरि ने टिप्पणी की कि न्यायालय "प्राथमिक शिक्षण संस्थानों में शिक्षकों की अनुपस्थिति से संबंधित मामलों से अभिभूत" है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
न्यायाधीश ने चिंतनशील लहजे में इस समस्या को शिक्षण पेशे में मूल्यों के क्षरण से जोड़ा। उन्होंने प्राचीन भारतीय ग्रंथों का हवाला देते हुए शिक्षकों को उनके पवित्र कर्तव्य की याद दिलाते हुए कहा, "एक शिक्षक अपने आचरण से न केवल छात्र को, बल्कि समाज के नैतिक ताने-बाने को भी आकार देता है।"
धर्मग्रंथों का हवाला देते हुए, न्यायालय ने कहा,
"गुरु ब्रह्मा हैं, गुरु विष्णु हैं, गुरु महेश्वर हैं... गुरु स्वयं परमात्मा हैं।" न्यायमूर्ति गिरि ने कहा कि यह सम्मान केवल अनुशासन और शिक्षण के प्रति समर्पण से अर्जित होता है, लापरवाही से नहीं।
पीठ ने आगे कहा कि शिक्षकों की अनुपस्थिति सीधे तौर पर बच्चों के निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 को कमजोर करती है और उन गरीब ग्रामीण बच्चों के बीच सीखने की खाई को चौड़ा करती है जो निजी ट्यूटर का खर्च नहीं उठा सकते। पीठ ने कहा कि शिक्षकों की अनुपस्थिति उन बच्चों पर बोझ डालती है जो स्कूल जाते हैं और अंततः छात्रों को सरकारी स्कूलों से दूर कर देती है।
आदेश में कहा गया है,
"स्कूल से शिक्षकों की अनुपस्थिति छात्रों की शिक्षा पर नकारात्मक प्रभाव डालती है और विशेष रूप से वंचित पृष्ठभूमि के बच्चों के लिए असमान अवसर पैदा करती है।"
सरकार की ज़िम्मेदारी
न्यायालय ने कहा कि सरकार की डिजिटल उपस्थिति पहल और ज़िला व ब्लॉक स्तरीय टास्क फ़ोर्स के गठन के बावजूद, ज़मीनी स्तर पर कार्यान्वयन कमज़ोर रहा है।
न्यायमूर्ति गिरि ने कहा,
"एक शिक्षक के रूप में एक आत्म-अनुशासित व्यक्ति को वैधानिक नियंत्रण की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।" उन्होंने आगे कहा कि इस तरह की अनुशासनहीनता ने प्रशासन को कक्षा की गुणवत्ता सुधारने के बजाय शिक्षकों की निगरानी पर ज़्यादा ध्यान केंद्रित करने के लिए मजबूर किया है।
न्यायाधीश ने मुख्य सचिव और वरिष्ठ शिक्षा अधिकारियों को ग्रामीण संस्थानों में शिक्षकों की पूरे दिन उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए ठोस नियम बनाने का निर्देश दिया। न्यायालय ने ज़ोर देकर कहा कि यह केवल एक प्रशासनिक मामला नहीं है, बल्कि ग्रामीण बच्चों के शैक्षिक अधिकारों की रक्षा करना एक संवैधानिक दायित्व है।
निर्णय
न्यायालय ने मुख्य सचिव, बेसिक एवं समाज कल्याण विभागों के अपर मुख्य सचिवों और उत्तर प्रदेश के स्कूली शिक्षा महानिदेशक से शिक्षकों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के तंत्र पर रिपोर्ट मांगी है।
अदालत ने राज्य के वकील को जवाबदेही लागू करने और उपस्थिति की निगरानी के लिए कानूनी ढाँचे पर निर्देश देने का निर्देश दिया। अधिकारियों द्वारा जवाब दाखिल करने के बाद, अब मामले की अगली सुनवाई 30 अक्टूबर 2025 को होगी।
न्यायालय ने निष्कर्ष दिया कि,
"किसी गरीब ग्रामीण के प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चे के मौलिक अधिकार का किसी भी व्यक्ति, यहां तक कि शिक्षक द्वारा भी उल्लंघन नहीं किया जा सकता है।"
Case Title: Indra Devi vs. State of Uttar Pradesh and 2 Others
Case Number: Writ – A No. 14242 of 2025
Date of Order: 16 October 2025
Counsel for Petitioner: Harsh Narayan Singh and Prabhakar Awasthi
Counsel for Respondents: Chief Standing Counsel and Rajesh Khare