एक ऐसे मामले में जहाँ सवाल कागज़ों से ज़्यादा स्वामित्व और कब्ज़े का था, बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने शुक्रवार को एयू स्मॉल फाइनेंस बैंक की याचिका खारिज कर दी। बैंक ने एक बोलेरो पिकअप ट्रक की अंतरिम कस्टडी मांगी थी, जिसे कथित रूप से जाली दस्तावेज़ों के सहारे बेचा गया था। अदालत ने पाया कि निचली अदालतों ने “पूरी सावधानी” के साथ खरीदार को कस्टडी देने का फैसला किया था, जिसने वाहन ईमानदारी से खरीदा था और उस पर खुद का लोन चुका रहा था।
पृष्ठभूमि
यह विवाद तब शुरू हुआ जब बैंक ने ऋण डिफॉल्टर रवि डांगे पर आरोप लगाया कि उसने बैंक से वित्त पोषित वाहन को नकली नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC) और फॉर्म 35 बनाकर सुनील नांधे नामक व्यक्ति को बेच दिया। अमरावती के राजापेठ पुलिस थाने में 2021 में धोखाधड़ी और जालसाज़ी का मामला दर्ज किया गया।
इसके बाद खरीदार सुनील नांधे और एयू स्मॉल फाइनेंस बैंक - दोनों ने अमरावती के मजिस्ट्रेट कोर्ट में धारा 454 (दं.प्र.सं.) के तहत जब्त वाहन की कस्टडी के लिए आवेदन दिए। मजिस्ट्रेट ने नांधे के पक्ष में फैसला सुनाया और बैंक का आवेदन खारिज कर दिया। बैंक ने इस आदेश को सत्र न्यायालय में चुनौती दी, लेकिन वहाँ भी राहत नहीं मिली। इसके बाद बैंक ने संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया।
अदालत की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति एम.एम. नेर्लीकर ने कहा कि “अंतरिम कस्टडी तय करते समय दो बातें अहम हैं- वाहन का मालिक कौन है और वाहन किसके कब्ज़े से जब्त किया गया।” अदालत ने पाया कि वाहन का पंजीकरण प्रमाणपत्र नांधे के नाम पर था और उसने महिंद्रा फाइनेंस से लिए गए ऋण की बीस किस्तें चुका दी थीं।
पीठ ने वैभव जैन बनाम हिंदुस्तान मोटर्स प्रा. लि. (2024) में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि वाहन पर कब्ज़ा और नियंत्रण स्वामित्व तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। न्यायमूर्ति नेर्लीकर ने कहा, “वाहन प्रतिवादी नंबर 2 से जब्त किया गया था, जो विधिसम्मत कब्ज़े में है, और उसका नाम पंजीकरण में दर्ज है - इन तथ्यों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।”
अदालत ने यह भी नोट किया कि आजकल कुछ उधारकर्ता जाली NOC बनाकर वाहन बेचने की प्रवृत्ति अपना रहे हैं। हालांकि अदालत ने यह साफ किया कि ऐसे आरोपों की जांच होना बाकी है और अंतरिम स्तर पर उन पर फैसला नहीं दिया जा सकता।
“जालसाज़ी का सवाल जांच का विषय है। अंतरिम कस्टडी उन्हीं अप्रमाणित आरोपों के आधार पर तय नहीं की जा सकती,” अदालत ने कहा।
निर्णय
न्यायमूर्ति नेर्लीकर ने कहा कि मजिस्ट्रेट और सत्र न्यायालय- दोनों ने अपने आदेशों में कोई गलती नहीं की है, इसलिए हस्तक्षेप की ज़रूरत नहीं है। अदालत ने यह भी कहा, “यदि वाहन की अंतरिम कस्टडी प्रतिवादी नंबर 2 को नहीं दी गई तो उसे अपूरणीय हानि होगी।” न्यायालय ने यह ध्यान में रखा कि नांधे अपनी आजीविका के लिए उसी वाहन पर निर्भर है और उसी से लिए गए लोन की अदायगी करता है।
हाईकोर्ट ने अंततः एयू स्मॉल फाइनेंस बैंक की रिट याचिका खारिज कर दी और बोलेरो पिकअप वाहन की अंतरिम कस्टडी खरीदार सुनील नांधे को देने के निचली अदालतों के आदेश को बरकरार रखा।
यह आदेश 17 अक्टूबर 2025 को पारित किया गया।
Case: M/s AU Small Finance Bank Ltd. vs The State of Maharashtra & Others
Case Type/Number: Criminal Writ Petition No. 657 of 2024
Petitioner: AU Small Finance Bank Ltd. (formerly AU Financiers India Ltd.)
Respondents: State of Maharashtra; Sunil Shrikrishna Nandhe (purchaser); Ravi Pradiprao Dange (borrower)
Date of Judgment: October 17, 2025