जून 12 को अहमदाबाद में हुए एयर इंडिया विमान हादसे में अपने बेटे कैप्टन सुमीत सभरवाल को खो चुके 91 वर्षीय पिता पुष्कराज सभरवाल ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है। उन्होंने इस भीषण दुर्घटना की न्यायिक निगरानी में जांच की मांग की है, जिसमें 260 लोगों की जान गई थी। यह याचिका फेडरेशन ऑफ इंडियन पायलट्स (FIP) के साथ मिलकर दायर की गई है।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि डीजीसीए (नागरिक उड्डयन महानिदेशालय) और नागरिक उड्डयन मंत्रालय द्वारा की जा रही जांच “पक्षपाती, अधूरी और तकनीकी रूप से त्रुटिपूर्ण” है।
“जांच उस व्यक्ति को दोषी ठहराकर खत्म नहीं हो सकती जो अब अपना बचाव भी नहीं कर सकता,” कोर्ट परिसर के बाहर मौजूद एक पायलट ने कहा, जो पायलट समुदाय की सामूहिक भावना को दर्शाता है।
पृष्ठभूमि
एयर इंडिया का बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर विमान अहमदाबाद से उड़ान भरते ही दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जो भारत के हाल के वर्षों का सबसे भयावह विमान हादसा बन गया।
डीजीसीए की प्रारंभिक रिपोर्ट, जो 15 जून को सौंपी गई थी, ने दुर्घटना का कारण “पायलट की गलती” बताया था।
हालांकि, सभरवाल की याचिका इस निष्कर्ष को चुनौती देती है और दावा करती है कि रिपोर्ट ने प्रणालीगत और तकनीकी खामियों को नजरअंदाज कर दिया, जिनकी स्वतंत्र जांच की जानी चाहिए।
याचिकाकर्ताओं ने कई तकनीकी बिंदुओं का उल्लेख किया - जैसे आरएटी (रैम एयर टरबाइन) का अनजाना सक्रिय होना, विद्युत तंत्र की विफलता, और फ्यूल सिस्टम में असामान्यताएं - जिन पर जांच एजेंसियों ने या तो ध्यान नहीं दिया या सतही तरीके से जांच की।
उन्होंने यह भी कहा कि अन्य देशों में बोइंग 787 के साथ हुई समान घटनाओं की अनदेखी की गई है, जिससे तकनीकी खामी की आशंका और गहरी होती है।
याचिका में यह भी आरोप है कि “चयनात्मक जानकारी साझा कर” जांच को भटका दिया गया है, जिससे मृत चालक दल के सदस्यों की प्रतिष्ठा को नुकसान हुआ और सच्चाई दबा दी गई।
अदालत की टिप्पणियाँ
जब यह मामला प्रारंभिक रूप से सुप्रीम कोर्ट में उल्लेखित हुआ, तो पीठ ने सतर्क लेकिन गंभीर रुख अपनाया। अदालत ने यह संकेत दिया कि विमानन सुरक्षा को प्रशासनिक गोपनीयता के पीछे छिपाया नहीं जा सकता।
“पीठ ने टिप्पणी की, ‘विमान दुर्घटनाओं की जांच में पारदर्शिता आवश्यक है, खासकर जब वही एजेंसियां नियामक और जांचकर्ता दोनों हों। न्याय होता दिखना भी जरूरी है।’” एक वकील ने बताया जो कार्यवाही से परिचित थे।
कोर्ट ने यह भी ध्यान दिया कि सेफ्टी मैटर्स फाउंडेशन, एक गैर-सरकारी संगठन, की इसी विषय पर दायर एक और याचिका पहले से लंबित है। संभव है कि दोनों मामलों को एक साथ सुना जाए ताकि पूरी तस्वीर सामने आ सके।
दिल्ली के कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह याचिका भारत में विमानन जवाबदेही ढांचे पर व्यापक बहस की शुरुआत कर सकती है, खासकर डीजीसीए की दोहरी भूमिका को लेकर - जो नियम भी बनाता है और जांच भी करता है।
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने अभी कोई औपचारिक आदेश नहीं दिया है, लेकिन अदालत ने “आरोपों की गंभीरता” को स्वीकार किया। उम्मीद है कि रजिस्ट्री जल्द ही सुनवाई की तारीख तय करेगी, संभवतः एनजीओ की लंबित याचिका के साथ।
फिलहाल, वृद्ध पिता की मांग साफ है - सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट जज की अध्यक्षता में एक निष्पक्ष जांच जिसमें स्वतंत्र विमानन विशेषज्ञ शामिल हों।
जैसा कि याचिका में कहा गया है, “अधूरी और पक्षपाती जांच मृतकों के प्रति अन्याय ही नहीं, बल्कि आने वाले हर यात्री की सुरक्षा को भी खतरे में डालती है।”
अब देखना यह है कि क्या सुप्रीम कोर्ट भारत में पहली बार किसी न्यायिक निगरानी में विमान दुर्घटना जांच के आदेश देता है या नहीं - एक ऐसा फैसला जो देश की हवाई सुरक्षा व्यवस्था को हमेशा के लिए बदल सकता है।
Case: Pushkaraj Sabharwal & Federation of Indian Pilots v. Union of India & Ors.
Petitioners: Pushkaraj Sabharwal (father of deceased pilot Capt. Sumeet Sabharwal) & Federation of Indian Pilots (FIP)
Respondents: Union of India, Ministry of Civil Aviation, Directorate General of Civil Aviation (DGCA)