दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार (14 अक्टूबर 2025) को 55 वर्षीय मोतीलाल की अपील खारिज करते हुए निचली अदालत द्वारा सुनाई गई 10 साल की सजा को बरकरार रखा। न्यायमूर्ति मनोज कुमार ओहरी की एकल पीठ ने कहा कि एक सात वर्षीय बच्ची के बयान और चिकित्सीय साक्ष्य इतने स्पष्ट और विश्वसनीय हैं कि तकनीकी खामियों का हवाला देकर दोषी को राहत नहीं दी जा सकती।
अदालत ने सख्त शब्दों में कहा-
“तकनीकी खामियां या त्रुटिपूर्ण जांच एक बाल पीड़िता की विश्वसनीय गवाही को कमजोर नहीं कर सकती।”
पृष्ठभूमि
यह मामला 2 अक्टूबर 2014 का है। उस दिन सात वर्षीय बच्ची अपने घर के बाहर झुग्गी इलाके में खेल रही थी। कुछ देर बाद वह रोते हुए घर लौटी और अपने पिता से बताया कि पड़ोसी मोतीलाल ने ₹20 देने का झांसा देकर उसे घर बुलाया और “गलत काम” किया।
पिता ने तुरंत पुलिस को फोन किया। मेडिकल जांच में बच्ची के गुदा क्षेत्र में चोट पाई गई और फॉरेंसिक रिपोर्ट में उसकी पोशाक और अंडरवियर पर खून के निशान पाए गए।
तिस हजारी सेशन कोर्ट ने 2018 में मोतीलाल को POCSO अधिनियम की धारा 6 के तहत दोषी ठहराया और 10 साल की कठोर कैद व ₹10,000 जुर्माना की सजा सुनाई थी।
अदालत की टिप्पणियाँ
अपील में, आरोपी के वकील ने कहा कि माता-पिता के बयानों में विरोधाभास हैं — कोई कहता है बेटी ने बताया, कोई कहता है बेटे ने बताया। बचाव पक्ष ने यह भी तर्क दिया कि बच्ची ने अपने कपड़ों की पहचान नहीं की और आरोपी की पत्नी घर पर मौजूद थी, इसलिए घटना असंभव है।
लेकिन हाईकोर्ट ने इन सभी दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि “गवाहों के बयानों में मामूली अंतर स्वाभाविक है, परंतु यह मुख्य घटना की सच्चाई को प्रभावित नहीं करता।”
न्यायमूर्ति ओहरी ने कहा-
“POCSO कानून के तहत प्रवेश (penetration) का अर्थ केवल वीर्यस्खलन नहीं है। अतः वीर्य न मिलने से अपराध समाप्त नहीं होता।”
उन्होंने आगे कहा कि जांच में हुई खामियों को आधार बनाकर दोषी को लाभ नहीं दिया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय अशोक कुमार सिंह चंदेल बनाम उत्तर प्रदेश राज्य का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा— “त्रुटिपूर्ण जांच से अभियोजन का मामला निरस्त नहीं होता यदि साक्ष्य विश्वसनीय हों।”
अदालत का फैसला
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि बच्ची का बयान, भले ही घटना के तीन साल बाद दर्ज हुआ, फिर भी एकदम स्पष्ट और विश्वसनीय है। अदालत ने लिखा-
“सात वर्षीय बच्ची का बयान, जिसे चिकित्सीय और वैज्ञानिक साक्ष्यों का समर्थन प्राप्त है, दोष सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है।”
न्यायालय ने निचली अदालत के निर्णय को सही ठहराते हुए कहा कि “इस मामले में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।” मोतीलाल की जमानत रद्द कर दी गई और उसके जमानती को मुक्त कर दिया गया।
यह निर्णय एक बार फिर अदालतों के उस रुख को मजबूत करता है कि बाल अपराधों में अदालतें किसी भी तकनीकी त्रुटि से ऊपर उठकर पीड़िता की आवाज़ को प्राथमिकता देंगी।
Case Title: Moti Lal vs State (NCT of Delhi)
Case Number: Criminal Appeal No. 169/2019
Appellant's Counsel: Mr. S.B. Dandapani, Advocate
Respondent (State) Counsel: Ms. Shubhi Gupta, APP for State with SI Urvashi