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सुप्रीम कोर्ट ने कर्नल एस.के. जैन की अपील खारिज की, कहा – गोला-बारूद नियमों की लापरवाही पर अनिवार्य सेवानिवृत्ति 'न्यायसंगत और उचित'

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने कर्नल एस.के. जैन की अपील खारिज की, कहा कि ट्रिब्यूनल ने कानून के तहत निष्पक्ष व उचित तरीके से निर्णय दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने कर्नल एस.के. जैन की अपील खारिज की, कहा – गोला-बारूद नियमों की लापरवाही पर अनिवार्य सेवानिवृत्ति 'न्यायसंगत और उचित'

10 अक्टूबर 2025 को सुनाए गए एक विस्तृत फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने सेवानिवृत्त सेना अधिकारी कर्नल एस.के. जैन की अपील खारिज कर दी, और सशस्त्र बल अधिकरण (एएफटी) के 2012 के आदेश को बरकरार रखा जिसमें उनकी बर्खास्तगी को अनिवार्य सेवानिवृत्ति में बदल दिया गया था। न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आलोक अराध्य की पीठ ने कहा कि ट्रिब्यूनल ने “सशस्त्र बल अधिकरण अधिनियम, 2007” के तहत अपने विवेकाधिकार का उपयोग “कानूनी ढांचे के भीतर रहकर किया है।”

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पृष्ठभूमि

कर्नल एस.के. जैन, जो आर्मी ऑर्डनेंस कॉर्प्स के अधिकारी थे, उधमपुर स्थित नॉर्दर्न कमांड व्हीकल डिपो के कमांडेंट के रूप में कार्यरत थे। वर्ष 2008 में उन पर एक ठेकेदार से ₹10,000 की रिश्वत मांगने और अपने कार्यालय में थोड़ी मात्रा में गोला-बारूद तथा बिना हिसाब की नकदी मिलने का आरोप लगा। जनरल कोर्ट मार्शल (जीसीएम) ने उन्हें भ्रष्टाचार और अवैध गोला-बारूद रखने का दोषी पाया और सेवा से बर्खास्त कर दिया।

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हालांकि, ट्रिब्यूनल ने बाद में पाया कि रिश्वत लेने का कोई सबूत नहीं था और बरामद गोला-बारूद पुराना था, जिसका किसी गैरकानूनी उद्देश्य से उपयोग नहीं हुआ था। ट्रिब्यूनल ने आरोप को “आर्म्स एक्ट के तहत अवैध कब्जा” से बदलकर “सेना के अनुशासन के विपरीत आचरण” (सेक्शन 63, आर्मी एक्ट) में परिवर्तित किया, और कर्नल जैन को पेंशन सहित अनिवार्य सेवानिवृत्ति दी।

न्यायालय के अवलोकन

सुप्रीम कोर्ट ने साक्ष्यों और ट्रिब्यूनल के तर्कों का अवलोकन करने के बाद माना कि एएफटी ने धारा 15(6) के तहत अपने अधिकारों का सही उपयोग किया, जो परिस्थितियों में हल्के या संबंधित अपराध के लिए दोष सिद्ध करने की अनुमति देता है।

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न्यायमूर्ति आलोक अराध्य ने पीठ की ओर से कहा, “ट्रिब्यूनल ने अपना विवेक इस प्रकार प्रयोग किया जो न्यायसंगत और अनुपातिक है - जिसमें सेवा अनुशासन की आवश्यकता और व्यक्ति के प्रति निष्पक्षता का संतुलन बना रहा।”

अदालत ने माना कि कर्नल जैन के कार्यालय से बरामद गोला-बारूद पुराना और अनुपयोगी था, जो किसी आपराधिक इरादे के बजाय लापरवाही को दर्शाता है। “यह बरामदगी पुराने गोला-बारूद के निस्तारण से जुड़ी प्रक्रियाओं का पालन न करने का संकेत देती है,” पीठ ने कहा। कोर्ट ने माना कि यह गलती अनुशासनहीनता तो थी, पर अपराध नहीं।

अदालत ने आगे कहा कि ट्रिब्यूनल का नरम रुख - बर्खास्तगी को अनिवार्य सेवानिवृत्ति में बदलना - उचित था, खासकर तब जब जैन पहले ही अपनी पेंशनरी सुविधाएँ “विरोध के तहत” स्वीकार कर चुके थे। “ट्रिब्यूनल ने पूर्णतः कानूनी ढांचे के भीतर रहकर कार्य किया है,” निर्णय में उल्लेख किया गया।

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निर्णय

अंत में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ट्रिब्यूनल का आदेश न तो मनमाना है और न ही अनुचित। अदालत ने अपील को पूरी तरह खारिज करते हुए कहा, “हम इस अपील में कोई मेरिट नहीं पाते। यह अपील विफल होती है और इसे खारिज किया जाता है।”

इस प्रकार, एक दशक से अधिक समय से चल रहे कानूनी विवाद का अंत हो गया।

Case: Colonel S.K. Jain vs Union of India & Anr.

Case Type: Criminal Appeal No. 628 of 2016

Date of Judgment: October 10, 2025

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