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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कृष्ण जन्मभूमि–ईदगाह विवाद मामले में देवता के “नेक्स्ट फ्रेंड” से कौशल किशोर को हटाने की याचिका खारिज की

Shivam Y.

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मथुरा कृष्ण जन्मभूमि ईदगाह मामले में कौशल किशोर को देवता के अगले मित्र के रूप में हटाने की याचिका को सबूतों के अभाव का हवाला देते हुए खारिज कर दिया। - श्री भगवान श्रीकृष्ण लाला विराजमान एवं अन्य बनाम उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड एवं अन्य

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कृष्ण जन्मभूमि–ईदगाह विवाद मामले में देवता के “नेक्स्ट फ्रेंड” से कौशल किशोर को हटाने की याचिका खारिज की

मथुरा भूमि विवाद में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम के तहत इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 26 सितंबर 2025 को चार वादकारियों द्वारा दाखिल उस प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया जिसमें भगवान श्रीकृष्ण लाला विराजमान के "नेक्स्ट फ्रेंड" के रूप में श्री कौशल किशोर ठाकुर को हटाने की मांग की गई थी। न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा ने कहा कि आवेदकों द्वारा दिए गए आधार इतने पर्याप्त नहीं हैं कि इतनी गंभीर कार्रवाई की जा सके।

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पृष्ठभूमि

मामला, जो मूल वाद संख्या 7 सन् 2023 के रूप में दर्ज है, उस विवादित संपत्ति के स्वामित्व और कब्ज़े से जुड़ा है जहाँ शाही ईदगाह मस्जिद श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर के बिल्कुल समीप स्थित है। वादी पक्ष ने अदालत से मांग की थी कि उन्हें स्थल का वास्तविक स्वामी घोषित किया जाए और मस्जिद प्रबंधन के विरुद्ध स्थायी निषेधाज्ञा दी जाए।

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लेकिन बीच में खुद वादकारियों के बीच मतभेद उभरकर सामने आ गए। वादी संख्या 2 से 5 ने सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 151 के तहत प्रार्थना पत्र दाखिल कर ठाकुर का नाम वाद से हटाने की मांग की। आरोप लगाया गया कि उन्होंने समान विषय पर कई मुकदमे दायर कर दिए, अपने पद का दुरुपयोग किया और देवता के हितों के विपरीत कार्य किया।

वादियों का कहना था कि ठाकुर कभी योगेश्वर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ ट्रस्ट से जुड़े थे, पर बाद में उन्हें ट्रस्ट से निकाल दिया गया। यह भी आरोप लगाया गया कि उन्होंने न्यायालय के अभिलेखों में हुई लिपिकीय त्रुटियों का लाभ उठाने की कोशिश की और मीडिया में सुर्खियां बटोरने के लिए ग़लत सूचनाएँ फैलाईं।

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अदालत की टिप्पणियाँ

पीठ ने सिविल प्रक्रिया संहिता की आदेश 32 की धाराओं का विश्लेषण किया, जिसमें नाबालिगों और देवताओं का प्रतिनिधित्व शामिल है (कानून में देवता को स्थायी नाबालिग माना जाता है)। न्यायाधीश ने कहा कि यदि "नेक्स्ट फ्रेंड" नाबालिग के हितों के विपरीत कार्य करे तभी उसे हटाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए पुख़्ता कारण होने चाहिए।

न्यायमूर्ति मिश्रा ने टिप्पणी की -

“अदालत को कारण की पर्याप्तता पर संतुष्ट होना चाहिए। केवल कई मुकदमे दायर करने से यह स्वतः सिद्ध नहीं हो जाता कि नेक्स्ट फ्रेंड के हित देवता के हितों के विरुद्ध हैं।”

सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए अदालत ने दोहराया कि कोई भी व्यक्ति तब तक नेक्स्ट फ्रेंड बन सकता है जब तक उसके हित नाबालिग के हितों से विपरीत न हों। जज ने यह भी कहा कि

“आवेदक पर्याप्त कारण दिखाने में असफल रहे हैं। प्रस्तुत कारण इतने पर्याप्त प्रतीत नहीं होते कि नेक्स्ट फ्रेंड को हटाया जाए।”

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साथ ही अदालत ने यह भी माना कि समान विषय पर एकाधिक मुकदमे निश्चित रूप से मुश्किलें पैदा करते हैं, लेकिन यह अकेला कारण नेक्स्ट फ्रेंड को हटाने के लिए पर्याप्त नहीं है।

निर्णय

सभी दलीलों पर विचार करने के बाद न्यायमूर्ति मिश्रा ने आवेदन खारिज कर दिया और कहा कि कौशल किशोर ठाकुर के विरुद्ध लगाए गए आरोप कानूनी मानदंडों पर खरे नहीं उतरते।

आदेश में कहा गया -

“नेक्स्ट फ्रेंड को हटाना एक कठोर कदम है और तभी संभव है जब यह सिद्ध हो जाए कि वह देवता के हितों के विरुद्ध कार्य कर रहा है। इस मामले में ऐसा कोई पर्याप्त आधार नहीं है।”

अब इस मामले की अगली सुनवाई 9 अक्टूबर 2025 को अन्य संबंधित वादों के साथ होगी।

Case Title: Shri Bhagwan Shrikrishna Lala Virajman and Others vs. U.P. Sunni Central Waqf Board and Others

Case Number: Original Suit No. 7 of 2023 (OSUT No. 7 of 2023)

Date of Decision: September 26, 2025

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