औरंगाबाद पीठ ने शुक्रवार को एक अहम आदेश सुनाते हुए महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया कि मृत सरकारी मेडिकल कॉलेज प्रोफेसर की विधवा और बच्चों को पारिवारिक पेंशन व अन्य लाभ तुरंत जारी किए जाएं। अदालत ने मां और भाई के दावों को खारिज कर दिया और 2018 से 2023 तक जारी सरकारी ठरावों की व्याख्या को स्पष्ट किया।
पृष्ठभूमि
प्रोफेसर की नियुक्ति 2009 में अंबाजोगाई के स्वामी रामानंद तीर्थ ग्रामीण मेडिकल कॉलेज में हुई थी। सितंबर 2018 में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। चूंकि उन्होंने नवंबर 2005 के बाद नौकरी ज्वाइन की थी, इसलिए उन पर पुरानी पेंशन योजना के बजाय परिभाषित अंशदायी पेंशन योजना (DCPS) लागू होती थी। DCPS में पारिवारिक पेंशन की सुविधा नहीं होती, केवल नामांकित व्यक्तियों को एकमुश्त रकम दी जाती है।
मगर मामला उलझ गया। मृत्यु से कुछ वर्ष पहले प्रोफेसर ने नामांकन बदल दिया था उन्होंने अपनी पत्नी का नाम हटाकर भाई को नामित किया, जबकि दोनों बेटों के नाम बनाए रखे। उसी समय पति-पत्नी के बीच तलाक का केस भी चल रहा था, जो अधूरा ही रह गया।
2018 में राज्य ने एक ठराव जारी किया जिसमें कहा गया कि यदि कर्मचारी की सेवा 10 साल पूरी होने से पहले मृत्यु हो जाए तो लाभ केवल उन्हीं नामांकित व्यक्तियों को मिलेंगे, और अगर नामांकन नहीं है तो कानूनी वारिसों को। बाद में मार्च 2023 में सरकार ने नया ठराव लाकर नीति बदली और केंद्र सरकार की तर्ज पर DCPS वाले कर्मचारियों के परिवारों को भी महाराष्ट्र सिविल सर्विस (पेंशन) नियम, 1982 के तहत पारिवारिक पेंशन देने का प्रावधान किया।
Read also:- Supreme Court Dismisses Plea Seeking Fresh Ban on Salman Rushdie’s ‘The Satanic Verses’
अदालत की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति मनीष पिटाले और न्यायमूर्ति वाय. जी. खोब्रागड़े की खंडपीठ ने इन सरकारी ठरावों की व्याख्या करते हुए कहा कि 2014 में भाई को नामांकित करने का फॉर्म गलत पेंशन नियमों के तहत भरा गया था।
"चूंकि नियुक्ति नवंबर 2005 के बाद हुई थी, MCSR 1982 लागू नहीं होता था। इसलिए किया गया नामांकन DCPS के अंतर्गत वैध नहीं माना जा सकता," अदालत ने कहा।
इस दलील पर कि पत्नी को व्यभिचार के आरोप के चलते लाभ नहीं मिलना चाहिए, खंडपीठ ने सख्त रुख दिखाया -
"सिर्फ आरोप पर्याप्त नहीं है। लाभ तभी रोके जा सकते हैं जब न्यायिक तौर पर तलाक व्यभिचार के आधार पर हुआ हो या पत्नी को दोषी ठहराया गया हो। यहां ऐसा कुछ नहीं है।"
Read also:- Supreme Court Upholds High Court’s Dismissal of Compensation Plea in Alleged Road Accident Case
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि MCSR 1982 की परिभाषा के अनुसार "परिवार" में पत्नी और अवयस्क बच्चे शामिल होते हैं, लेकिन माता-पिता और भाई-बहन तब तक शामिल नहीं माने जाते जब तक विशेष परिस्थितियाँ न हों। इसलिए मां और भाई का दावा टिकता नहीं है।
निर्णय
याचिका स्वीकार करते हुए अदालत ने राज्य और चिकित्सा शिक्षा विभाग को निर्देश दिया कि विधवा और उसके दोनों बेटों को MCSR 1982 के तहत पारिवारिक पेंशन दी जाए। बेटों को यह लाभ 21 वर्ष की आयु तक मिलेगा जबकि पत्नी को जीवनभर पेंशन जारी रहेगी।
न्यायालय ने यह भी आदेश दिया कि 26 सितंबर 2018 (मृत्यु की तारीख) से लंबित बकाया की गणना कर आठ सप्ताह के भीतर भुगतान किया जाए। अगर समयसीमा का पालन नहीं हुआ तो बकाया पर 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज लगेगा।
"याचिकाकर्ताओं ने स्पष्ट रूप से MCSR 1982 के तहत पारिवारिक पेंशन का विकल्प चुना है और वे राहत पाने के हकदार हैं," न्यायाधीशों ने निष्कर्ष में कहा और नियम को निरपेक्ष बना दिया।
Case Title: VVB vs State of Maharashtra
Case Number:- Writ Petition 11613 of 2019