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दिल्ली हाईकोर्ट ने वकील के खिलाफ एनडीएमसी मामला रद्द किया, कहा वकालत दफ्तर चलाना बेसमेंट का वाणिज्यिक दुरुपयोग नहीं

Shivam Y.

दिल्ली उच्च न्यायालय ने वकील बी.के. सूद के खिलाफ एनडीएमसी के आपराधिक मामले को खारिज करते हुए कहा कि वकील का कार्यालय व्यावसायिक गतिविधि नहीं है। - बी.के. सूद बनाम उत्तरी दिल्ली नगर निगम

दिल्ली हाईकोर्ट ने वकील के खिलाफ एनडीएमसी मामला रद्द किया, कहा वकालत दफ्तर चलाना बेसमेंट का वाणिज्यिक दुरुपयोग नहीं

नई दिल्ली, 8 अक्टूबर 2025: दिल्ली में वकीलों द्वारा आवासीय क्षेत्रों में दफ्तर चलाने से जुड़ा एक अहम फैसला देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने नॉर्थ दिल्ली म्यूनिसिपल कॉर्पोरेशन (एनडीएमसी) द्वारा वरिष्ठ अधिवक्ता बी.के. सूद के खिलाफ शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि वकील का दफ्तर चलाना वाणिज्यिक गतिविधि नहीं है।

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जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने अपने 15 पन्नों के फैसले में कहा कि "विधि व्यवसाय की तुलना व्यापार या बिज़नेस से करना बिल्कुल गलत और अनुचित है।" अदालत ने माना कि वकालत जैसी पेशेवर सेवाएं बौद्धिक प्रकृति की होती हैं, जिन्हें वाणिज्यिक उद्यम नहीं कहा जा सकता।

यह मामला 2003 का है, जब एनडीएमसी के निरीक्षकों ने आरोप लगाया कि सूद अपने गोल्फ अपार्टमेंट्स, सुजान सिंह पार्क स्थित मकान के बेसमेंट का उपयोग वकालत दफ्तर के रूप में कर रहे थे। निगम ने इसे बिना अनुमति “उपयोग में बदलाव” बताते हुए एनडीएमसी अधिनियम की धारा 252 और 369(1) के तहत मामला दर्ज किया था।

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सूद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ए.एस. चांढिओक ने दलील दी कि यह शिकायत “मनमानी और तर्कहीन” है क्योंकि वकील का दफ्तर मास्टर डेवलपमेंट प्लान (एमडीपी) 2001 के तहत अनुमन्य पेशेवर उपयोग की श्रेणी में आता है। उन्होंने यह भी कहा कि एनडीएमसी ने कोई वास्तविक निरीक्षण नहीं किया और उनका दफ्तर सभी निर्माण उपविधियों के अनुरूप है — जिसमें एयर-कंडीशनर होना भी शामिल है, जो दिल्ली बिल्डिंग उपविधियाँ 1983 की धारा 14.12.1(vii) के अनुसार बेसमेंट कार्यालयों के लिए अनिवार्य है।

एनडीएमसी के वकील ने तर्क दिया कि बेसमेंट को केवल भंडारण (स्टोरेज) के लिए स्वीकृत किया गया था और उसे कार्यालय के रूप में उपयोग करना कानून का उल्लंघन है। मगर जस्टिस कृष्णा ने इससे असहमति जताई और कहा कि एमडीपी 2001 व उपविधियाँ स्पष्ट रूप से 25% क्षेत्र तक पेशेवर गतिविधि - जैसे वकालत - की अनुमति देती हैं।

सुप्रीम कोर्ट के एम.पी. इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड बनाम नारायण (2005) फैसले का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि “विधिक कार्य में न तो व्यापार जैसी खरीद-बिक्री होती है और न ही लाभ-हानि का जोखिम।” उन्होंने वी. ससीधरन बनाम पीटर एंड करुणाकर (1984) निर्णय का भी उल्लेख किया, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि “वकील का दफ्तर कोई वाणिज्यिक प्रतिष्ठान नहीं है।”

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अदालत ने यह भी पाया कि एनडीएमसी की निरीक्षण रिपोर्ट में न तो वेंटिलेशन, छत की ऊँचाई या एयर-कंडीशनिंग से संबंधित कोई उल्लंघन दर्ज है। अदालत ने कहा -

"ऐसा कोई साक्ष्य नहीं कि परिसर उपविधियों में निर्धारित शर्तों का उल्लंघन कर रहा था।"

दो दशक पुराने इस मामले को “न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग” करार देते हुए अदालत ने कहा कि अब इसे जारी रखना सार्वजनिक हित में नहीं होगा।

"यह मामला पिछले 22 वर्षों से लंबित है, और इसे जारी रखना न्याय व्यवस्था पर बोझ बनेगा," न्यायमूर्ति कृष्णा ने टिप्पणी की और शिकायत सहित सभी संबंधित कार्यवाहियों को रद्द करने का आदेश दिया।

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यह निर्णय उन पेशेवरों - विशेषकर वकीलों, आर्किटेक्ट्स और चार्टर्ड अकाउंटेंट्स - के लिए राहत लेकर आया है, जो दिल्ली में आवासीय परिसरों से काम करते हैं। फैसले ने यह स्पष्ट किया कि यदि पेशेवर उपयोग निर्माण नियमों के अनुरूप है, तो उसे दुकान या फैक्ट्री जैसे वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता।

अदालत ने अपने आदेश के अंत में कहा:

"याचिकाकर्ता द्वारा परिसर का उपयोग एमडीपी 2001 और दिल्ली बिल्डिंग उपविधियाँ 1983 के अनुरूप था। अभियोजन पक्ष कोई भी उल्लंघन साबित नहीं कर सका।"

इस तरह, दिल्ली हाईकोर्ट ने न केवल एक वकील को 22 साल पुरानी कानूनी उलझन से मुक्त किया बल्कि यह भी दोहराया कि पेशेवर अभ्यास और वाणिज्यिक उद्यम के बीच की रेखा "विधि व्यवसाय की गरिमा बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है।"

Case Title: B.K. Sood v. North Delhi Municipal Corporation

Case Numbers: CRL.M.C. 4881/2005 and CRL.M.A. 9803/2005

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