एक अहम आदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अभिषेक यादव की पुनरीक्षण याचिका आंशिक रूप से स्वीकार कर ली, जिसमें उन्होंने बरेली फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उन पर पत्नी और बेटी को हर महीने ₹9,000 देने का निर्देश दिया गया था।
मामले में ट्विस्ट असामान्य था: यादव केवल 16 साल के थे जब उनकी पत्नी ने पहली बार 2019 में धारा 125 सीआरपीसी के तहत अदालत का दरवाज़ा खटखटाया। उनके वकील का तर्क था कि किसी नाबालिग लड़के पर ऐसा दावा नहीं चल सकता, जो खुद कमाता भी नहीं और पूरी तरह अपने माता-पिता पर निर्भर है।
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अदालत ने उनके स्कूल रिकॉर्ड को ध्यान से देखने के बाद माना कि 18 साल से पहले उन पर किसी का भरण–पोषण करने की बाध्यता नहीं थी। लेकिन जस्टिस मदन पाल सिंह ने साफ कहा कि जनवरी 2021 को जैसे ही वे बालिग हुए, उनकी कानूनी पत्नी और नाबालिग बेटी का खर्च उठाने की जिम्मेदारी पूरी तरह उन पर आ गई।
युवक की संभावित कमाई का व्यावहारिक आकलन करते हुए अदालत ने उसकी मासिक आय ₹18,000 मानी और उसी का 25% भरण–पोषण तय किया - यानी पत्नी के लिए ₹2,500 और बेटी के लिए ₹2,000। यह रकम उसी तारीख से देय होगी, जब वह बालिग हुआ।
इसके साथ ही नवंबर 2023 के फैमिली कोर्ट के आदेश में संशोधन किया गया और आपराधिक पुनरीक्षण आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया गया।
Case: Abhishek Yadav v. State of UP & Others
Criminal Revision No. 55 of 2024
Order date: 25 Sept 2025