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पटना हाईकोर्ट ने एनर्जी ड्रिंक कंपनी पर दर्ज FIR रद्द की, कहा पेय BIS गैर-मादक मानक में है

Vivek G.

पटना हाईकोर्ट ने एनर्जी ड्रिंक विक्रेताओं पर दर्ज एफआईआर खारिज की, कहा पेय बीआईएस गैर-मादक मानक में है, बिहार शराबबंदी लागू।

पटना हाईकोर्ट ने एनर्जी ड्रिंक कंपनी पर दर्ज FIR रद्द की, कहा पेय BIS गैर-मादक मानक में है

बीयर को एनर्जी ड्रिंक बताकर बेचने के आरोप झेल रहे तीन पटना निवासियों को बड़ी राहत देते हुए पटना हाईकोर्ट ने आठ साल पुरानी FIR खारिज कर दी। जस्टिस आलोक कुमार पांडेय ने फैसला सुनाया कि जब्त किए गए पेय पदार्थ भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) की गैर-मादक परिभाषा में आते हैं और बिहार के सख्त शराबबंदी कानून का उल्लंघन नहीं करते।

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पृष्ठभूमि

मामला फरवरी 2017 में शुरू हुआ, जब दैनिक भास्कर में खबर छपी कि पटना में बीयर को एनर्जी ड्रिंक के नाम पर बेचा जा रहा है। सूचना पर कार्रवाई करते हुए उत्पाद विभाग ने एम/एस सिद्धि एंटरप्राइजेज के गोदाम पर छापा मारा और “डब्ल्यूएफएम सुपर स्ट्रॉन्ग”, “थाउजेंड बोल्ट” और “किंगफरमर” लेबल वाली बोतलें जब्त कीं-जिनके नाम मशहूर बीयर ब्रांड से मिलते-जुलते थे। दो कर्मचारियों को हिरासत में लिया गया और धोखाधड़ी तथा बिहार निषेध अधिनियम के प्रावधानों के तहत एफआईआर दर्ज हुई।

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याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने दलील दी कि ये पेय लाइसेंसशुदा खाद्य उत्पाद हैं, जिनकी कई बार सरकारी लैब में जांच हुई और हर बार इनमें केवल 0.2%–0.4% एथिल अल्कोहल पाया गया, जो भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) द्वारा गैर-मादक बीयर के लिए तय 0.5% की सीमा से काफी कम है।

अदालत की टिप्पणियां

“कानून का लक्ष्य नशे वाले पेय हैं, बीआईएस मानकों के भीतर आने वाले पेय नहीं,” पीठ ने कहा। जस्टिस पांडेय ने बताया कि “अल्कोहलिक बेवरेज” की परिभाषा साफ तौर पर उन पेयों को बाहर रखती है जिनमें बीआईएस सीमा से कम अल्कोहल हो। उन्होंने यह भी कहा कि शुरुआती सरकारी जांच में बिल्कुल अल्कोहल नहीं मिला था और बाद में पाई गई थोड़ी मात्रा संभवतः भंडारण के दौरान प्राकृतिक किण्वन (फरमेंटेशन) से बनी होगी।

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राज्य पक्ष ने तर्क दिया कि बाद की फॉरेंसिक जांच में 2.58% तक अल्कोहल पाया गया, जो लेगर बीयर के बराबर है। उनका कहना था कि बीयर जैसे नामों से ऐसे पेय बेचना बिहार की पूर्ण शराबबंदी नीति को कमजोर करता है। लेकिन न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि आपराधिक कानून “जब्ती की तारीख” पर लागू होगा और अभियोजन उन नमूनों पर भरोसा नहीं कर सकता जिनकी उत्पत्ति संदिग्ध हो या जिन्हें देर से जांचा गया हो।

फैसला

कोर्ट ने माना कि कोई “संज्ञेय अपराध” नहीं बनता और रामकृष्णा नगर थाना कांड संख्या 34/2017 की एफआईआर रद्द कर दी। इसके साथ ही कुमारी पुनम और उनके सहकर्मियों पर धोखाधड़ी और अवैध शराब व्यापार के सभी लंबित आरोप खत्म हो गए।

Case: Kumari Punam & Others vs. State of Bihar & Others

Case No.: Criminal Writ Jurisdiction Case No. 1405 of 2017

Judgment Date: 9 September 2025

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