असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (ART) के जरिए माता-पिता बनने की उम्मीद लगाए एक दंपति को गुवाहाटी हाईकोर्ट से राहत नहीं मिली। कोर्ट ने साफ कहा कि कानून में तय की गई आयु-सीमा मनमानी नहीं है और इसे असंवैधानिक नहीं ठहराया जा सकता।
यह मामला उन दंपतियों के लिए अहम माना जा रहा है जो मेडिकल रूप से फिट होने के बावजूद उम्र की वजह से ART सेवाओं से वंचित रह जाते हैं। अदालत में सुनवाई के दौरान भावनात्मक दलीलें भी रखी गईं, लेकिन पीठ ने कानून के दायरे में रहकर फैसला सुनाया।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता एक विवाहित दंपति हैं, जो लंबे समय से प्राकृतिक तरीके से संतान प्राप्त नहीं कर सके। वर्ष 2020 में उन्होंने ART प्रक्रिया के लिए इलाज शुरू किया था, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण उपचार बीच में ही रुक गया।
इसके बाद उन्होंने एक निजी अस्पताल में ART प्रक्रिया करवाई, जो सफल नहीं रही। मार्च 2024 में जब दंपति ने दोबारा एक IVF सेंटर से संपर्क किया, तो अस्पताल ने असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी (रेगुलेशन) एक्ट, 2021 की धारा 21(g) का हवाला देते हुए इलाज से इनकार कर दिया।
इस प्रावधान के तहत महिला की अधिकतम आयु 50 वर्ष और पुरुष की 55 वर्ष तय की गई है। दंपति का कहना था कि वे मेडिकल रूप से सक्षम हैं, फिर भी केवल उम्र के आधार पर उन्हें इलाज से वंचित किया गया।
दंपति की ओर से अदालत में कहा गया कि संतान उत्पत्ति का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा है।
उनका तर्क था कि एक तय आयु-सीमा सभी मामलों पर समान रूप से लागू करना अनुचित है। “हर व्यक्ति की शारीरिक और चिकित्सकीय स्थिति अलग होती है, ऐसे में केवल उम्र के आधार पर रोक लगाना मनमाना है,” याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी गई।
यह भी कहा गया कि चूंकि इलाज की प्रक्रिया उन्होंने कानून लागू होने से पहले शुरू की थी, इसलिए नए कानून की पाबंदी उन पर नहीं लगाई जानी चाहिए।
केंद्र और अन्य प्रतिवादियों ने अदालत को बताया कि ART कानून एक व्यापक नियामक ढांचा है, जिसे महिला के स्वास्थ्य, बच्चे के भविष्य और नैतिक मानकों को ध्यान में रखकर बनाया गया है।
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सरकारी वकीलों ने दलील दी कि उम्र से जुड़ी सीमाएं मेडिकल साइंस और सामाजिक हितों पर आधारित हैं। ऐसे मामलों में नीति निर्धारण का अधिकार विधायिका का है, न कि अदालत का।
कोर्ट की टिप्पणियां
मुख्य न्यायाधीश और न्यायमूर्ति की खंडपीठ ने माना कि प्रजनन से जुड़े फैसले व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा हैं, लेकिन यह अधिकार पूरी तरह से निरंकुश नहीं है।
पीठ ने टिप्पणी की, “अनुच्छेद 21 के तहत मिलने वाला संरक्षण हर व्यक्तिगत विकल्प को बिना किसी नियंत्रण के स्वीकार नहीं करता। सार्वजनिक स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण के मामलों में उचित नियमन संभव है।”
अदालत ने कहा कि आयु-सीमा “टोपी से नाम निकालने” जैसी मनमानी नहीं है, बल्कि यह मां और बच्चे के हितों से जुड़ी वैज्ञानिक और नैतिक सोच पर आधारित है।
अदालत का निर्णय
सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद गुवाहाटी हाईकोर्ट ने माना कि ART कानून की धारा 21(g) संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन नहीं करती।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि व्यक्तिगत छूट देना न्यायिक विवेक से कानून बनाने जैसा होगा, जो अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
अंततः, याचिका को निराधार बताते हुए खारिज कर दिया गया और किसी प्रकार की लागत (cost) नहीं लगाई गई।
Case Title: X vs Union of India & Others
Case No.: WP(C)/2344/2024
Case Type: Writ Petition (Constitutional Validity)
Decision Date: 18 December 2025













