पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक गंभीर सड़क दुर्घटना में अपना पैर खो देने वाली महिला पिंकी के पक्ष में अहम फैसला सुनाया। अदालत ने ट्रिब्यूनल द्वारा तय किए गए मुआवज़े को बढ़ाकर ₹26,10,945 से ₹39,50,599 कर दिया। यह फैसला जस्टिस हरकेश मनूजा ने 24 दिसंबर 2025 को सुनाया।
मामले की पृष्ठभूमि
08 दिसंबर 2016 को हुए हादसे में पिंकी को गंभीर चोटें आईं और उनका बायां पैर जांघ से ऊपर तक काटना पड़ा। दाहिने पैर में भी फ्रैक्चर हुआ और लंबे समय तक इलाज व पुनर्वास चला। पिंकी ने दावा किया कि दुर्घटना प्रतिवादी ड्राइवर की लापरवाही से हुई और वह दर्जी का काम व घरेलू कार्य कर परिवार को सहयोग करती थीं।
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पहले ट्रिब्यूनल ने उनकी आय ₹6,000 प्रति माह मानकर मुआवज़ा तय किया था, जिसके खिलाफ उन्होंने हाईकोर्ट में अपील की। वहीं बीमा कंपनी ने कहा कि मुआवज़ा पहले से ही ज़्यादा है।
अदालत की टिप्पणियाँ
हाईकोर्ट ने माना कि ट्रिब्यूनल ने आय और भविष्य के नुकसान का कम आकलन किया। अदालत ने पिंकी की मासिक आय को ₹10,000 मानते हुए कहा कि घरेलू काम और सिलाई के आधार पर अधिक आय स्वाभाविक थी।
“₹6,000 मासिक आय कम आँकी गई प्रतीत होती है; परिस्थितियों को देखते हुए उचित आकलन ₹10,000 प्रतिमाह है,” अदालत ने कहा।
अदालत ने कृत्रिम पैर (प्रोस्थेटिक) और उसके रख-रखाव के ख़र्च को भी मान्यता दी, जिसमें विशेषज्ञ गवाह ने लगभग ₹7 लाख की लागत और हर साल रख-रखाव का खर्च बताया।
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मुआवज़े का संशोधित विवरण
| मुआवज़े का आधार | राशि |
|---|---|
| आय व भविष्य की कमाई का नुकसान | ₹19,50,599 |
| इलाज व कृत्रिम पैर की लागत | ₹16,00,000 |
| विशेष आहार, केयर व यात्रा व्यय | ₹1,00,000 |
| दर्द और मानसिक पीड़ा | ₹3,00,000 |
| कुल संशोधित मुआवज़ा | ₹39,50,599 |
साथ ही मुआवज़े पर 9% वार्षिक ब्याज का आदेश दिया गया है, और तीन महीने में भुगतान न होने पर 12% ब्याज लागू होगा।
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अंतिम फैसला
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि पीड़िता स्थायी विकलांगता, इलाज और आय नुकसान के आधार पर अधिक मुआवज़े की हकदार है।
“स्थायी विकलांगता और जीवनभर की चिकित्सा आवश्यकताओं को देखते हुए बढ़ा हुआ मुआवज़ा उचित है।”
बीमा कंपनी की अपील खारिज कर दी गई, जबकि पिंकी की अपील आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए मुआवज़ा बढ़ाया गया। मामला निर्णय के साथ समाप्त हुआ।
Case Title:- Pinki vs Harpreet Singh & Ors
Case Numbers:
- FAO No. 4560 of 2018 (O&M)
- FAO No. 2853 of 2018 (O&M)
Judgment Pronounced On: 24 December 2025















