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जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत जाफ़र हुसैन बट की गिरफ्तारी को रद्द किया

Vivek G.

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने जाफ़र हुसैन बट की पीएसए गिरफ्तारी रद्द की, कॉपी-पेस्ट आधार और संवैधानिक उल्लंघन पर टिप्पणी की।

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत जाफ़र हुसैन बट की गिरफ्तारी को रद्द किया

एक अहम फैसले में, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट ने मंगलवार (30 सितम्बर 2025) को जाफ़र हुसैन बट की पब्लिक सेफ्टी एक्ट (पीएसए) के तहत की गई गिरफ्तारी को रद्द कर दिया। जस्टिस विनोद चटर्जी कौल ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद कहा कि यह हिरासत आदेश “अस्थिर” है और आदेश दिया कि उन्हें किसी और मामले में जरुरी न हो तो तुरंत रिहा किया जाए।

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पृष्ठभूमि

किश्तवाड़ निवासी जाफ़र हुसैन बट को 24 दिसम्बर 2024 को जिला मजिस्ट्रेट ने पीएसए के तहत गिरफ्तार किया था। सरकार ने दावा किया कि उनके कार्य “राज्य की सुरक्षा के लिए हानिकारक” थे और 2019 के दो एफआईआर तथा कई डायरियों में दर्ज कथित आतंकियों से संबंध का हवाला दिया।

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हालांकि, बट के पिता मोहम्मद अशरफ बट ने गिरफ्तारी को चुनौती दी और कहा कि यह आदेश पुलिस डोज़ियर की हूबहू नकल है और इसमें स्वतंत्र दलीलें नहीं दी गईं। याचिका में यह भी कहा गया कि जिन घटनाओं का हवाला दिया गया वे पुरानी हैं और बट 2021 से जमानत पर शांति से रह रहे हैं। उनके वकील ने तर्क दिया कि गिरफ्तारी के आधार और अन्य दस्तावेज़ उन्हें नहीं दिए गए, जिससे उनके संवैधानिक अधिकारों का हनन हुआ।

कोर्ट के अवलोकन

जस्टिस कौल ने हिरासत की प्रक्रिया पर कड़ी टिप्पणी की। उन्होंने कहा, “इस मामले में गिरफ्तारी के आधार वास्तव में डोज़ियर की नकल हैं, सिर्फ कुछ शब्द इधर-उधर किए गए हैं। यह दिमाग न लगाने को दर्शाता है।” जज ने 1985 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला भी दिया, जिसमें इसी तरह की कॉपी-पेस्ट प्रक्रिया को खारिज किया गया था।

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बेंच ने यह भी नोट किया कि बट की गिरफ्तारी के खिलाफ दी गई अर्जी अब तक नहीं निपटाई गई, जो अनुच्छेद 22(5) के तहत उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। 2021 के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का जिक्र करते हुए जज ने कहा कि रोकथाम हिरासत मामलों में अर्जी को तुरंत निपटाना जरूरी है।

सरकार के इस तर्क पर कि बट जमानत के बाद फिर “राष्ट्रविरोधी गतिविधियों” में शामिल हो सकते हैं, कोर्ट ने 1986 के एक सुप्रीम कोर्ट निर्णय को याद किया। उसमें कहा गया था कि अगर ऐसा डर है तो अधिकारी जमानत का विरोध करें या उसे चुनौती दें, न कि रोकथाम हिरासत का इस्तेमाल शॉर्टकट के रूप में करें।

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फैसला

याचिकाकर्ता की दलीलों को सही पाते हुए जस्टिस कौल ने याचिका स्वीकार कर ली और 24 दिसम्बर 2024 के गिरफ्तारी आदेश को रद्द कर दिया। फैसले में कहा गया, “हिरासत में लिया गया जाफ़र हुसैन बट, यदि किसी अन्य मामले में जरूरी नहीं है, तो उसे तुरंत रिहा किया जाए।” इस तरह कोर्ट ने साफ संदेश दिया कि संवेदनशील मामलों में भी संविधान के तहत दी गई प्रक्रियागत सुरक्षा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

Case: Jaffer Hussain Butt vs. Union Territory of Jammu & Kashmir & Others

Case Number: HCP No. 41/2025

Reserved On: 25 September 2025

Pronounced On: 30 September 2025

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