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सुप्रीम कोर्ट ने एमएलसी चुनाव रिश्वत मामले में विधायक के खिलाफ दर्ज केस रद्द करने के तेलंगाना हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा

Vivek G.

सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना की याचिका खारिज कर विधायक के खिलाफ दर्ज रिश्वतखोरी केस रद्द करने का हाईकोर्ट का आदेश बरकरार रखा।

सुप्रीम कोर्ट ने एमएलसी चुनाव रिश्वत मामले में विधायक के खिलाफ दर्ज केस रद्द करने के तेलंगाना हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा
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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को तेलंगाना सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने एक विधायक के खिलाफ दर्ज रिश्वतखोरी के मामले को रद्द कर दिया था, जिसे 2015 की विधान परिषद चुनाव से जुड़े सनसनीखेज मामले में आरोपी बनाया गया था। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने साफ कहा कि चार्जशीट में A4 के रूप में पहचाने गए आरोपी के खिलाफ कोई ठोस सबूत मौजूद नहीं है।

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पृष्ठभूमि

मामला मई 2015 का है, ठीक विधान परिषद चुनाव से पहले। एक विधायक ने शिकायत दर्ज कराई थी कि उसे पहले ₹2 करोड़ और विदेश यात्रा की पेशकश की गई थी, ताकि वह एक खास राजनीतिक दल के पक्ष में मतदान करे। बाद में, उसके अनुसार, यह पेशकश बढ़ाकर ₹5 करोड़ कर दी गई और यह कहा गया कि लेनदेन किसी और के जरिए होगा।

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शिकायत हैदराबाद की एंटी करप्शन ब्यूरो (ACB) तक पहुंची, जिसने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज की। लेकिन गंभीर विसंगतियाँ सामने आईं। लिखित शिकायत 28 मई 2015 को दी गई थी, जबकि एफआईआर औपचारिक रूप से 31 मई 2015 को दर्ज हुई, यानी चुनाव से कुछ घंटे पहले। शिकायतकर्ता के दोस्त के घर पर ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिंग की व्यवस्था की गई थी और कथित तौर पर धन का आदान-प्रदान हुआ, लेकिन A4 की भूमिका अस्पष्ट रही।

अदालत की टिप्पणियाँ

बहस के दौरान राज्य की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. मेनका गुरुस्वामी ने जोर देकर कहा कि हाईकोर्ट ने क्वैशिंग (कार्रवाई रद्द करने) के समय “मिनी ट्रायल” कर दिया, जो गंभीर गलती है। उन्होंने कहा, “रिकॉर्डिंग मौजूद थीं, पैसा बरामद हुआ था, और ऐसे सबूत थे जिनसे संज्ञेय अपराध साबित होता है।”

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वहीं बचाव पक्ष ने यह दलील दी कि A4 के खिलाफ “बिलकुल भी सामग्री नहीं” है और हाईकोर्ट ने सही आधार पर कार्रवाई रद्द की।

न्यायमूर्ति चंद्रन ने आदेश लिखते हुए कहा कि भले ही हाईकोर्ट का फैसला लंबा था और कई नजीरें उद्धृत की गईं, लेकिन इसकी दलीलें ठोस थीं। पीठ ने कहा, “हम इस बात से सहमत नहीं हैं कि कोई मिनी ट्रायल हुआ था या शिकायत को रद्द करने का कोई उचित कारण नहीं था।”

सबसे अहम बात यह रही कि अदालत ने माना कि जिस वक्त कथित लेनदेन हुआ, उस समय A4 मौजूद नहीं था। शिकायतकर्ता ने केवल एक फोन कॉल का जिक्र किया था, जिसमें न तो समय बताया गया और न कोई ठोस संदर्भ।

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फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि हाईकोर्ट के निष्कर्षों में दखल देने का कोई आधार नहीं है। पीठ ने कहा, “हम हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं पाते और विशेष अनुमति याचिकाओं को खारिज करते हैं।”

इस फैसले के साथ ही, कथित कैश-फॉर-वोट घोटाले में A4 की भूमिका पर लंबी चली कानूनी लड़ाई अब खत्म हो गई है, कम से कम इस आरोपी के लिए। अदालत ने इस मामले से जुड़ी सभी लंबित याचिकाओं का भी निपटारा कर दिया।

मामला: तेलंगाना राज्य बनाम जेरूसलम मथाई एवं अन्य

उद्धरण: 2025 आईएनएससी 1173

मामला संख्या: विशेष अनुमति याचिका (सीआरएल) संख्या 5248/2016 और विशेष अनुमति याचिका (सीआरएल) संख्या 9333/2016

निर्णय की तिथि: 26 सितंबर 2025

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