Logo
Court Book - India Code App - Play Store

दिल्ली हाईकोर्ट ने सौतेले पिता की 20 साल की POCSO सज़ा बरकरार रखी; DNA सबूत ने पलटी गवाही और आरोपों को मात दी

Shivam Y.

दिल्ली उच्च न्यायालय ने सौतेले पिता को दी गई 20 साल की POCSO सजा को बरकरार रखा; डीएनए साक्ष्य पीड़िता के परस्पर विरोधी बयान और बयान वापस लेने के पीछे वित्तीय दबाव पर भारी पड़ा। - जाहिद बनाम दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की राज्य सरकार

दिल्ली हाईकोर्ट ने सौतेले पिता की 20 साल की POCSO सज़ा बरकरार रखी; DNA सबूत ने पलटी गवाही और आरोपों को मात दी
Join Telegram

दिल्ली हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान कोर्ट रूम में एक भारी-सी चुप्पी थी। जस्टिस अमित महाजन ने स्पष्ट शब्दों में बताया कि निचली अदालत द्वारा सुनाई गई 20 साल की कैद की सज़ा में दखल देने का कोई आधार नहीं है। अभियुक्त जाहिद ने अपने खिलाफ दिए गए फैसले और सज़ा को चुनौती दी थी, लेकिन अपील खारिज कर दी गई।

Read in English

कोर्ट के अनुसार, शुरुआती बयानों, मेडिकल रिपोर्ट और DNA रिपोर्ट ने मिलकर इतना मजबूत आधार बना दिया कि बाद में बदल दी गई गवाही को स्वीकार करना संभव नहीं था।

मामले की पृष्ठभूमि

घटना साल 2016 की है। आधी रात (करीब 2:30–3 बजे) एक नाबालिग बच्ची ने आरोप लगाया कि उसके सौतेले पिता ने उसके साथ दुष्कर्म किया। पीड़िता ने शुरू में पुलिस और मजिस्ट्रेट के सामने विस्तृत बयान दिया, लेकिन बाद में कोर्ट में पहुँचकर उसने कहानी बदल दी और एक नए व्यक्ति-“विक्की”-का नाम लिया।

Read also:- अरावली की नई परिभाषा पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई सख्त चिंता: खनन और पर्यावरण खतरे पर 29 दिसंबर को होगी अहम सुनवाई

दिलचस्प बात यह रही कि रिकॉर्ड में “विक्की” नामक किसी भी व्यक्ति की पहचान, पता या उपस्थिति का कोई सबूत नहीं मिला।

कोर्ट की मुख्य टिप्पणियाँ

जस्टिस महाजन ने साफ कहा कि सिर्फ इसलिए सच को नहीं छोड़ा जा सकता कि परिस्थितियों के चलते एक बच्ची और उसका परिवार गवाही बदल दे। गरीबी, घर चलने का डर और परिवार बिखरने का भय-इन सबने गवाही पर असर डाला।

Read also:- जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट ने चेक बाउंस समझौते के बाद जारी वारंट पर उठाए सवाल: ट्रायल कोर्ट को प्रक्रिया सुधारने का निर्देश

“सिर्फ इसलिए सच्चाई नहीं त्यागी जा सकती कि एक बच्ची अपने घर के सहारे के लिए बयान पलट दे,” - दिल्ली हाईकोर्ट की टिप्पणी

AIIMS की मेडिकल रिपोर्ट में “फ्रेश टियर” (ताज़ा चोट) दर्ज थी और ये भी लिखा था कि पीड़िता ने कपड़े तो बदले, लेकिन अंडरगार्मेंट नहीं बदला था। बाद में उसी अंडरगार्मेंट पर अभियुक्त का DNA मिला। चेन ऑफ कस्टडी (यानी सबूत को संभालने की निरंतरता) भी एकदम सुरक्षित थी।

बचाव पक्ष इस DNA को समझा नहीं पाया सिर्फ इतना कहा कि पुलिस ने सब गड़बड़ की, लेकिन रिकॉर्ड इसका उल्टा बताता है।

Read also:- मद्रास हाईकोर्ट में ‘परसक्ति’ फिल्म विवाद: रिलीज पर रोक की मांग पर अदालत ने Writers Association से रिपोर्ट तलब की

अंतिम फैसला

कोर्ट ने माना कि प्रारम्भिक बयान, मेडिकल साक्ष्य और DNA रिपोर्ट मिलकर “आधारभूत तथ्य” स्थापित करते हैं। और जैसे ही ये तथ्य सिद्ध हुए, POCSO कानून में मौजूद धारणाएँ (Presumptions) लागू हो गईं, जिन्हें अभियुक्त नकार नहीं पाया।

“वैज्ञानिक साक्ष्य ने पलटी हुई गवाही से बने खालीपन को भर दिया,” -अदालत का निष्कर्ष

नतीजतन, अपील खारिज। 20 साल की सज़ा और जुर्माना - दोनों बरकरार।

Case Title: Jahid vs State Govt. of NCT of Delhi

Recommended Posts