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बॉम्बे हाईकोर्ट ने पंजीकृत गिफ्ट डीड विवाद के बावजूद भाई के बंटवारे के मुकदमे को जारी रखने के आदेश को बरकरार रखा

Vivek G.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने भाई की अपील खारिज की, पंजीकृत गिफ्ट डीड के बावजूद औरंगाबाद संपत्ति विवाद पर मुकदमे की पूरी सुनवाई की अनुमति।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने पंजीकृत गिफ्ट डीड विवाद के बावजूद भाई के बंटवारे के मुकदमे को जारी रखने के आदेश को बरकरार रखा

4 अक्टूबर 2025 को बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद खंडपीठ में हुई सुनवाई के दौरान जस्टिस शैलेश पी. ब्रह्मे ने दिलीपकुमार सगरमल साबू द्वारा अपने छोटे भाई रामअवतार के खिलाफ दायर अपील को खारिज कर दिया। औरंगाबाद में संयुक्त रूप से खरीदी गई संपत्ति को लेकर यह विवाद वर्षों से चल रहा है। अदालत के इस फैसले से अब ट्रायल कोर्ट रामअवतार के बंटवारे, कब्जे और निषेधाज्ञा के मुकदमे की पूरी तरह सुनवाई करेगा, भले ही दिलीपकुमार का यह तर्क रहा हो कि पंजीकृत गिफ्ट डीड से संपत्ति पहले ही उनके नाम हो चुकी है।

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पृष्ठभूमि

दोनों भाइयों ने 2008 में औरंगाबाद के तिलक पेठ इलाके में एक मकान संयुक्त रूप से खरीदा था। 2014 में रामअवतार ने एक पंजीकृत दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करके संपत्ति दिलीपकुमार को हस्तांतरित कर दी। बाद में 2015 में एक करेक्शन डीड भी बनाई गई। रामअवतार का कहना है कि उसने यह सब केवल इसलिए किया क्योंकि दिलीपकुमार ने उसे बताया था कि यह “औपचारिक” है और बैंक से ऋण लेने के लिए आवश्यक है। जब कोई ऋण नहीं लिया गया और दिलीपकुमार ने मकान वापस ट्रांसफर करने से मना कर दिया, तो रामअवतार ने अपने बड़े भाई पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया।

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2019 तक, रामअवतार ने बंटवारे, कब्जे और निषेधाज्ञा के लिए दीवानी वाद दायर कर दिया। मूल प्रतिवादी दिलीपकुमार ने सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 7 नियम 11 के तहत वादपत्र खारिज करने की अर्जी दी - यानी मुकदमे को शुरुआत में ही खत्म करने की मांग की। ट्रायल कोर्ट ने शुरू में वादपत्र खारिज कर दिया, लेकिन अपीलीय अदालत ने 2021 में यह फैसला पलट दिया। दिलीपकुमार की वर्तमान अपील इसी उलटफेर को चुनौती दे रही थी।

अदालत की टिप्पणियाँ

जस्टिस ब्रह्मे ने दलीलों को विस्तार से परखा। “वादपत्र को सार्थक रूप से पढ़ने पर कारण-ए-कार्रवाई स्पष्ट होता है,” पीठ ने कहा। भले ही रामअवतार शिक्षित हैं और उन्होंने पंजीकृत दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए, अदालत ने कहा कि इस स्तर पर यह तय नहीं किया जा सकता कि उन्होंने वास्तव में हस्तांतरण की प्रकृति को समझा था या नहीं।
अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि रामअवतार ने गलतबयानी और धोखाधड़ी का आरोप लगाया है।

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अगर ये दावे मुकदमे में साबित होते हैं तो गिफ्ट डीड रद्द हो सकती है। जज ने जोर देकर कहा कि “केवल इसलिए कि पंजीकृत दस्तावेज़ निष्पादित हुए हैं, इस स्तर पर वादी की संभावित थ्योरी को खारिज नहीं किया जा सकता।”

सीमा अवधि (मुकदमा दायर करने की समयसीमा) पर अदालत ने कहा कि यह तथ्य और कानून का मिश्रित प्रश्न है। सीमा अधिनियम की धारा 59 तभी लागू होगी जब पीड़ित पक्ष को धोखाधड़ी का पता चले। 2017 में भाइयों के बीच हुआ समझौता ज्ञापन, जिसमें संपत्ति वापस करने का आश्वासन था, रामअवतार के पक्ष को विश्वसनीय बनाता है।

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निर्णय

30 पन्नों के निर्णय को समाप्त करते हुए जस्टिस ब्रह्मे ने माना कि इस मुकदमे को सुनने में कोई कानूनी बाधा नहीं है और न ही निचली अपीलीय अदालत के आदेश में कोई “विकृति या गैरकानूनीपन” है। अदालत ने दिलीपकुमार की अपील खारिज कर दी, जिससे ट्रायल कोर्ट अब यह तय करने के लिए पूरी सुनवाई करेगा कि 2014 की गिफ्ट डीड असली थी या धोखाधड़ी से ली गई थी। लंबित दीवानी अर्जी भी निपटा दी गई।

Case: Deelipkumar Sagarmal Saboo vs. Ramavtar Sagarmal Saboo

Case Numbers: Appeal from Order No. 40 of 2021 with Civil Application No. 2529 of 2023

Appellant: Deelipkumar Sagarmal Saboo, Age 60, Businessman, Aurangabad

Respondent: Ramavtar Sagarmal Saboo, Age 54, Businessman, Aurangabad

Date of Judgment: Pronounced on 4 October 2025 (Reserved on 25 September 2025)

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