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बॉम्बे हाईकोर्ट ने अकोला नाबालिग विवाह मामले में एफआईआर रद्द करने से इनकार किया, POCSO अधिनियम के तहत नाबालिग की सहमति को अमान्य करार दिया

Shivam Y.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने अकोला नाबालिग विवाह मामले में एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया, POCSO के तहत नाबालिग की सहमति को अमान्य ठहराया। - मिर्ज़ा असलम बेग रशीद बेग और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने अकोला नाबालिग विवाह मामले में एफआईआर रद्द करने से इनकार किया, POCSO अधिनियम के तहत नाबालिग की सहमति को अमान्य करार दिया

बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने शुक्रवार को तीन आरोपियों की याचिका खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। यह मामला पॉक्सो कानून (POCSO) और बाल विवाह निषेध अधिनियम से जुड़ा था। न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी-फाल्के और नंदेश एस. देशपांडे की पीठ ने स्पष्ट कहा कि नाबालिग की सहमति कानूनन मान्य नहीं हो सकती, इसलिए कोई असाधारण राहत नहीं दी जा सकती।

पृष्ठभूमि

यह मामला अकोला जिले के तेल्हारा पुलिस स्टेशन से शुरू हुआ। पुलिस के अनुसार, पीड़िता जो उस समय 17 वर्ष की थी ने मई 2025 में एक बेटे को जन्म दिया। उसका विवाह आरोपी मिर्ज़ा असलम बेग से एक वर्ष पहले हुआ था, जब वह अभी 18 वर्ष की नहीं हुई थी। इस आधार पर पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता, पॉक्सो अधिनियम और बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज की।

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आवेदकों (पति और परिजन) ने तर्क दिया कि यह रिश्ता प्रेम संबंध का नतीजा था और इसमें कोई ज़बरदस्ती नहीं हुई। उनके वकील ने कहा, "यह मामला प्रेम का है, अपराध का नहीं।" परिवारों की सहमति के बाद विवाह मुस्लिम रीति-रिवाज़ से हुआ और लड़की के बालिग होने पर पंजीकृत भी किया गया। पीड़िता ने भी अपने वकील के माध्यम से अदालत को बताया कि उसे एफआईआर रद्द होने पर कोई आपत्ति नहीं है और उसने कभी भी इसे जबरन संबंध नहीं माना।

अदालत की टिप्पणियाँ

राज्य की ओर से अतिरिक्त लोक अभियोजक ने इस दलील का विरोध किया। उन्होंने कहा कि आरोपी की उम्र 29 साल थी और उसे पूरी जानकारी थी कि लड़की नाबालिग है।

"ऐसी स्थिति में उसकी सहमति, अगर दी भी हो, कानून के मुताबिक मान्य नहीं है," उन्होंने ज़ोर देकर कहा।

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पीठ ने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की हाल की कार्यवाही का उल्लेख किया। सर्वोच्च न्यायालय ने ‘किशोरों की निजता के अधिकार’ मामले में यह चिंता जताई थी कि सहमति वाले किशोर संबंधों को अपराध मानना विवादास्पद है, लेकिन अभी कानून में कोई बदलाव नहीं हुआ है। वहीं केंद्र सरकार ने साफ कहा था कि सहमति की उम्र घटाना खतरनाक होगा और बच्चों को शोषण से बचाने वाला कानून कमजोर हो जाएगा।

हाईकोर्ट ने याद दिलाया कि पॉक्सो का मुख्य उद्देश्य बच्चों को यौन उत्पीड़न और शोषण से बचाना है। अदालत ने किशोरावस्था में गर्भधारण के खतरों और समाज में अब भी प्रचलित बाल विवाह जैसी समस्याओं का ज़िक्र किया। न्यायाधीशों ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा -

"सिर्फ इस वजह से कि लड़की अब बच्चे की मां बन चुकी है, आरोपियों के कृत्यों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।"

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अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले का हवाला देते हुए कहा कि नाबालिग का अपहरण या विवाह उसकी सहमति से भी अपराध ही माना जाएगा। "किशोर प्रेम या आकर्षण अपराध को खत्म नहीं करता," पीठ ने कहा।

फैसला

अंत में पीठ ने कहा कि यह मामला उन असाधारण परिस्थितियों में नहीं आता, जहाँ अदालत अपने विशेष अधिकारों का उपयोग करके एफआईआर रद्द कर सके। अदालत ने टिप्पणी की -

"क्योंकि विवाह और शारीरिक संबंध दोनों समय पीड़िता नाबालिग थी और उसकी सहमति कानूनन अप्रासंगिक है, यह मामला रद्दीकरण के योग्य नहीं है।"

इस प्रकार, आपराधिक आवेदन खारिज कर दिया गया और एफआईआर यथावत बनी रही।

Case Title:- Mirza Aslam Beigh Rashid Beigh & Ors. vs. State of Maharashtra & Ors.

Case Number:- Criminal Application (APL) No. 1128 of 2025

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