हाल ही के एक आदेश में, दिल्ली हाई कोर्ट ने पुलिस अधिकारियों को महिलाओं के प्रति सम्मानजनक व्यवहार करने के लिए नई गाइडलाइन जारी करने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि ऐसे सिद्धांत पहले से ही मौजूदा कानूनों में शामिल हैं। न्यायमूर्ति संजीव नरूला की एकल पीठ ठोप्पानी संजीव राव द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) द्वारा दिए गए निर्देशों पर कार्रवाई न होने की शिकायत की थी।
पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता ने सबसे पहले 23 जनवरी 2025 को NHRC और अन्य अधिकारियों को एक आवेदन भेजा था, जिसमें उन्होंने पुलिस अधिकारियों द्वारा कथित दुर्व्यवहार की शिकायत की थी। NHRC ने इस शिकायत पर संज्ञान लेते हुए इसे मामला संख्या 243/1/40/2025 के रूप में दर्ज किया और 27 मार्च 2025 को संबंधित पक्ष को “चार सप्ताह के भीतर आवश्यक कार्रवाई” करने का निर्देश दिया था।
हालाँकि, राव ने अदालत में दावा किया कि आयोग के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की गई। इस स्थिति से असंतुष्ट होकर, उन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट में W.P. (CRL) 1987/2025 के तहत याचिका दायर की, जिसमें उन्होंने NHRC या पुलिस अधिकारियों को उनकी शिकायत पर कार्रवाई करने और पुलिस कर्मियों के लिए महिलाओं के प्रति सम्मानजनक भाषा और व्यवहार सुनिश्चित करने हेतु बाध्यकारी गाइडलाइन बनाने का निर्देश देने की मांग की।
अदालत का अवलोकन
न्यायमूर्ति नरूला ने कहा कि NHRC के पास पहले से ही स्वप्रेरणा (suo motu) से कार्रवाई करने की शक्ति है, और यदि पूर्व आदेशों का पालन नहीं हुआ है, तो याचिकाकर्ता आयोग में दोबारा आवेदन कर सकते हैं। अदालत ने कहा “यदि पहले दिए गए निर्देशों का पालन नहीं हुआ है, तो याचिकाकर्ता आयोग के अधिकार क्षेत्र का उपयोग कर सकते हैं।”
याचिकाकर्ता की दूसरी मांग- यानी महिलाओं के प्रति पुलिस के व्यवहार को लेकर नई गाइडलाइन बनाने- पर अदालत ने स्पष्ट रुख अपनाया। न्यायमूर्ति नरूला ने कहा, “यह विवाद से परे है कि पुलिस अधिकारियों से अपेक्षा की जाती है कि वे महिलाओं के साथ गरिमा के साथ पेश आएं और अनुचित या असंसदीय भाषा का प्रयोग न करें।”
उन्होंने आगे कहा कि ऐसा नैतिक आचरण पहले से ही कानूनी और संवैधानिक अपेक्षा के रूप में स्थापित है, इसलिए “मांगी गई प्रार्थना अनुचित है।” आदेश के लहजे से स्पष्ट था कि अदालत महिलाओं की गरिमा के प्रति याचिकाकर्ता की चिंता को समझती है, लेकिन वह उन दायित्वों को दोहराने के पक्ष में नहीं है जो पहले से ही संविधान के अनुच्छेद 21 और पुलिस आचार संहिता में स्पष्ट रूप से निहित हैं।
निर्णय
इन टिप्पणियों के साथ, हाई कोर्ट ने याचिका का निपटारा कर दिया और याचिकाकर्ता को निर्देश दिया कि यदि वे अपनी शिकायत आगे बढ़ाना चाहते हैं तो NHRC से संपर्क करें। अदालत ने कोई अतिरिक्त राहत प्रदान नहीं की।
यह मामला इस बात को रेखांकित करता है कि न्यायपालिका का रुख स्पष्ट है , महिलाओं के प्रति सम्मान और गरिमा कानून प्रवर्तन में अपरिहार्य है, लेकिन अदालतें उन बातों को दोहराएंगी नहीं जो पहले से ही संवैधानिक और वैधानिक प्रावधानों में स्पष्ट रूप से निहित हैं।
Case:Thoppani Sanjeev Rao vs National Human Rights Commission & Ors.
Court: Delhi High Court
Case Number: W.P. (CRL) 1987/2025
Bench: Justice Sanjeev Narula
Petitioner’s Counsel: Ms. Kanika Saini, Ms. Puneet Kumari, Mr. Prem Latha, Ms. Divya Mathur
Respondents’ Counsel: Mr. Anupam S. Sharma, Special Public Prosecutor for CBI
Date of Order: 14 October 2025










