एक अहम फैसले में, जिसने उत्तराधिकार अधिकारों और पेंशन कानून दोनों पर रोशनी डाली, गुवाहाटी हाईकोर्ट ने 22 अक्टूबर 2025 को एक लंबे समय से चल रहे विवाद का निपटारा किया। न्यायमूर्ति रॉबिन फुकन, Intest. Case No. 4/2024 में सुनवाई करते हुए, मृत असम सरकारी कर्मचारी की संपत्ति को लेकर पारिवारिक विवाद में यह आदेश दिया कि संयुक्त उत्तराधिकार प्रमाणपत्र (Joint Succession Certificate) पत्नी, माँ और बेटियों के नाम पर जारी रहेगा - लेकिन एक स्पष्ट अपवाद के साथ: पारिवारिक पेंशन को इसमें शामिल नहीं किया जाएगा।
मामला, स्म्ट. ज्योति कलिता बनाम स्म्ट. गुणेश्वरी बोराह व अन्य, नगाon जिले के धिंग अथागाँव गाँव की एक ही परिवार के बीच चला विवाद था, जिसमें दूसरी पत्नी की मान्यता और सरकारी सेवा लाभों के बँटवारे को लेकर कानूनी जंग छिड़ी थी।
पृष्ठभूमि
स्वर्गीय सुबल बोराह, जो असम स्पेशल रिज़र्व फ़ोर्स में नायक (Nayak) के रूप में कार्यरत थे, जुलाई 2018 में निधन हो गया। उनकी माँ स्म्ट. गुणेश्वरी बोराह और दो बेटियों लिपिका व दीपशिखा ने लगभग ₹14.34 लाख की राशि - जिसमें ग्रेच्युटी, अवकाश नकदीकरण, जीपीएफ और पारिवारिक पेंशन शामिल थे - के लिए उत्तराधिकार प्रमाणपत्र की माँग की।
विवाद तब बढ़ा जब स्म्ट. ज्योति कलिता, जिन्होंने स्वयं को सुबल बोराह की दूसरी पत्नी बताया, ने आपत्ति दर्ज कराई। उन्होंने दावा किया कि 2007 में सुबल बोराह से उन्होंने हिंदू रीति-रिवाज से विवाह किया था और मृत्यु तक उनके साथ रहीं। दूसरी ओर, प्रतिवादी पक्ष ने उन पर झूठे दस्तावेज़ बनाकर “पत्नी” के रूप में नाम दर्ज कराने का आरोप लगाया।
मुकदमे की सुनवाई के बाद, ट्रायल कोर्ट ने साक्ष्यों को देखते हुए यह निष्कर्ष निकाला कि ज्योति कलिता वास्तव में वैध पत्नी हैं, और सभी दावेदारों के पक्ष में संयुक्त उत्तराधिकार प्रमाणपत्र जारी करने का आदेश दिया। इस आदेश से असंतुष्ट होकर कलिता ने हाईकोर्ट में अपील दायर की, यह कहते हुए कि ट्रायल कोर्ट ने भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम और पेंशन नियमों की अवहेलना की है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति फुकन ने तीन मुख्य मुद्दों पर गहराई से विचार किया - क्या संयुक्त प्रमाणपत्र जारी किया जा सकता है, क्या विवाहित बेटी को हिस्सा मिल सकता है, और क्या पारिवारिक पेंशन को “ऋण या सुरक्षा” (debts and securities) के रूप में गिना जा सकता है।
संयुक्त प्रमाणपत्र के सवाल पर न्यायालय ने माना कि इस विषय पर देशभर में विरोधाभासी निर्णय हैं। सक्ति गुप्ता बनाम शांतनु गुप्ता (2010 GLT 645) और विद्याधरी बनाम सुखराना बाई (2008) 2 SCC 238 जैसे मामलों का हवाला देते हुए, न्यायालय ने कहा कि जब सभी दावेदार वैध उत्तराधिकारी हैं, तब संयुक्त उत्तराधिकार प्रमाणपत्र देना अवैध नहीं है।
न्यायमूर्ति फुकन ने कहा -
“संयुक्त उत्तराधिकार प्रमाणपत्र देने में कोई बाधा नहीं है। अदालत समानता के सिद्धांत पर न्याय करते हुए एक ही आदेश में सभी के अधिकार सुनिश्चित कर सकती है।”
विवाहित बेटियों के अधिकारों पर, अदालत ने अपीलकर्ता की दलील को पूरी तरह खारिज कर दिया। विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा (2020) के ऐतिहासिक निर्णय का हवाला देते हुए, न्यायालय ने कहा-
“2005 के हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम ने बेटियों को, चाहे वे विवाहित हों या अविवाहित, पुत्रों के समान अधिकार दिया है। उनका अधिकार जन्म से उत्पन्न होता है, विवाह से नहीं।”
पारिवारिक पेंशन के प्रश्न पर न्यायालय ने स्पष्टता दी कि यह उत्तराधिकार की संपत्ति का हिस्सा नहीं है। नितु बनाम शीला रानी (2016) और वायलेट इसाक बनाम भारत संघ (1991) जैसे फैसलों का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा -
“पारिवारिक पेंशन मृत कर्मचारी की संपत्ति का हिस्सा नहीं है और इसके लिए उत्तराधिकार प्रमाणपत्र जारी नहीं किया जा सकता। यह केवल संबंधित पेंशन नियमों द्वारा नियंत्रित होती है।”
न्यायालय का निर्णय
सभी पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद, गुवाहाटी हाईकोर्ट ने ज्योति कलिता की अपील खारिज कर दी, लेकिन ट्रायल कोर्ट के आदेश में एक संशोधन किया। अदालत ने ऋण और सुरक्षा से जुड़ी राशि के लिए संयुक्त उत्तराधिकार प्रमाणपत्र को बरकरार रखा, लेकिन पारिवारिक पेंशन को उसके दायरे से बाहर कर दिया।
अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि ज्योति कलिता, जो सेवा अभिलेखों में नामांकित (nominee) हैं, को प्रमाणपत्र तो मिलेगा, लेकिन उन्हें प्राप्त राशि का एक-चौथाई हिस्सा प्रत्येक उत्तराधिकारी - माँ गुणेश्वरी बोराह, बेटी लिपिका बोराह और बेटी दीपशिखा बोराह - के लिए ट्रस्ट के रूप में रखना होगा। साथ ही उन्हें अदालत में सुरक्षा बांड (security bond) प्रस्तुत करना होगा ताकि निष्पक्ष वितरण सुनिश्चित किया जा सके।
फैसले के अंत में न्यायालय ने कहा -
“चूंकि पारिवारिक पेंशन असम सेवा (पेंशन) नियम, 1969 द्वारा नियंत्रित है और यह संपत्ति का हिस्सा नहीं है, इसलिए पक्षकार इस विषय में संबंधित पेंशन प्राधिकरण से संपर्क कर सकते हैं।”
यह निर्णय न केवल एक पारिवारिक विवाद का अंत था, बल्कि इसने एक महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत को भी मजबूत किया -
"विवाहित या अविवाहित, दोनों ही बेटियाँ समान उत्तराधिकार अधिकार रखती हैं, जबकि पारिवारिक पेंशन उत्तराधिकार में शामिल नहीं होती।"
Case Title: Smt. Jyoti Kalita vs. Smt. Guneswari Borah & Others
Case Number: Intest. Case No. 4 of 2024
Date of Judgment: 22 October 2025
Advocates:
- For the Appellant: Mr. A. Biswas, Advocate
- For the Respondents: Mr. S. Borthakur and Mr. R. Sensua, Advocates










