किरलोस्कर समूह के भीतर लंबे समय से चल रहे ट्रेडमार्क विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बॉम्बे हाईकोर्ट के उस संशोधित आदेश पर रोक लगा दी, जिसने किर्लोस्कर प्रॉपर्टरी लिमिटेड (KPL) को अपने समूह की अन्य कंपनियों को “किरलोस्कर” ट्रेडमार्क लाइसेंस देने से रोक दिया था। जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस उज्जल भूयान की खंडपीठ ने कहा कि ऐसा व्यापक निषेध “जब मुख्य अपील लंबित थी, तब पारित नहीं किया जाना चाहिए था।”
पृष्ठभूमि
यह विवाद “किरलोस्कर” ब्रांड के उपयोग और लाइसेंसिंग को लेकर है- जो भारत के सबसे पहचानने योग्य औद्योगिक नामों में से एक है। किर्लोस्कर प्रॉपर्टरी लिमिटेड (KPL), जो इस ट्रेडमार्क की मालिक कंपनी है, के खिलाफ किर्लोस्कर ब्रदर्स लिमिटेड (KBL) ने मुकदमा दायर किया था। KBL का आरोप था कि KPL द्वारा समूह की अन्य कंपनियों को यह ट्रेडमार्क लाइसेंस देना व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा और हितों के टकराव को जन्म देगा।
इस साल 9 जनवरी 2025 को ट्रायल कोर्ट ने KBL की याचिका स्वीकार करते हुए KPL को किसी भी तीसरे पक्ष को ट्रेडमार्क असाइन या लाइसेंस देने से अस्थायी रूप से रोक दिया था। हालांकि, बॉम्बे हाईकोर्ट ने 25 जुलाई 2025 को उस आदेश में आंशिक राहत दी और KPL को अपने सदस्य समूहों को लाइसेंस देने की अनुमति दी - बशर्ते वे समान या ओवरलैपिंग व्यापार में न हों।
लेकिन मामला यहीं खत्म नहीं हुआ। 10 अक्टूबर 2025 को हाईकोर्ट ने अपने ही आदेश में संशोधन करते हुए निषेध का दायरा बढ़ा दिया और समूह की कंपनियों को भी लाइसेंस देने पर रोक लगा दी - यानी KPL को अपने ही सहयोगी संस्थानों को भी ट्रेडमार्क देने से मना कर दिया गया।
न्यायालय की टिप्पणियां
शुक्रवार की सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और बलबीर सिंह ने KPL की ओर से पेशी दी, जबकि डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी और सी. आर्यमा सुंदरम ने KBL का पक्ष रखा।
रोहतगी ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट का संशोधित आदेश “अपने दायरे से बहुत आगे चला गया” और इससे कंपनी की कार्यक्षमता लगभग ठप हो गई। उन्होंने कहा कि जब हाईकोर्ट ने खुद माना कि KPL “किरलोस्कर” ट्रेडमार्क का निर्विवाद मालिक है, तो उसे लाइसेंस देने से रोकना अनुचित है। “असाइनमेंट का अर्थ स्वामित्व का हस्तांतरण होता है, लेकिन लाइसेंस सिर्फ उपयोग की अनुमति है - दोनों में फर्क है,” उन्होंने कहा।
दूसरी ओर, डॉ. सिंघवी ने तर्क दिया कि किर्लोस्कर समूह में हमेशा से यह परंपरा रही है कि समूह के भीतर प्रतिस्पर्धा न बनाई जाए, और 10 अक्टूबर के आदेश ने उसी नीति को स्पष्ट किया है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि हाईकोर्ट में मामला लंबित रहने तक हस्तक्षेप न किया जाए।
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद पीठ ने टिप्पणी की, “हम prima facie इस मत के हैं कि 10 अक्टूबर 2025 का आदेश, जिसने पहले के निषेध का दायरा बढ़ाया, वह तब नहीं दिया जाना चाहिए था जब अपील विचाराधीन थी।” न्यायाधीशों ने यह भी कहा कि समूह कंपनियों में पहले से दी गई लाइसेंसिंग से जुड़ी पूरी जानकारी अभी सामने नहीं आई है।
निर्णय
इसके अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने KBL को 4 नवंबर 2025 के लिए नोटिस जारी किया और 10 अक्टूबर 2025 के आदेश के प्रभाव और संचालन पर अगली सुनवाई तक रोक लगा दी। यह रोक प्रभावी रूप से हाईकोर्ट के 25 जुलाई 2025 के आदेश को पुनः लागू करती है, जिसमें सीमित लाइसेंसिंग की अनुमति दी गई थी।
पीठ ने स्पष्ट किया कि वह इस चरण में मामले के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त नहीं कर रही है। अब दोनों पक्षों को अपने हलफनामे और लिखित प्रस्तुतियाँ दाखिल करने के बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में फिर सुना जाएगा।
फिलहाल, किर्लोस्कर ट्रेडमार्क लाइसेंसिंग की जंग जारी है - अगली निर्णायक सुनवाई नवंबर की शुरुआत में होगी।
Case: Kirloskar Proprietary Limited vs Kirloskar Brothers Limited
Court: Supreme Court of India
Bench: Justice Manoj Misra and Justice Ujjal Bhuyan
Case Type: Special Leave Petition (Civil) Nos. 29662–29663 of 2025
Date of Order: October 17, 2025










