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नवी मुंबई रेलवे स्टेशनों पर कार्यरत सीआईडीको सफाईकर्मियों के नियमितीकरण आदेश को बॉम्बे हाईकोर्ट ने रद्द किया

Vivek G.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने नवी मुंबई रेलवे सफाईकर्मियों के नियमितीकरण आदेश को रद्द किया, कहा वे सीआईडीको के कर्मचारी हैं, रेलवे के नहीं।

नवी मुंबई रेलवे स्टेशनों पर कार्यरत सीआईडीको सफाईकर्मियों के नियमितीकरण आदेश को बॉम्बे हाईकोर्ट ने रद्द किया

17 अक्टूबर 2025 को सुनाए गए एक विस्तृत फैसले में बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति संदीप वी. मर्ने ने सेंट्रल रेलवे की याचिका को स्वीकार करते हुए 2006 में औद्योगिक न्यायाधिकरण द्वारा दिए गए उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें नवी मुंबई के रेलवे स्टेशनों पर कार्यरत 37 सफाईकर्मियों को रेलवे कर्मचारी मानकर नियमित करने का निर्देश दिया गया था। अदालत ने साफ कहा कि ये कर्मचारी रेलवे के नहीं, बल्कि सीआईडीको या उसके ठेकेदार के कर्मचारी हैं।

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पृष्ठभूमि

यह मामला एक असामान्य व्यवस्था से जुड़ा था, जो सिटी एंड इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन ऑफ महाराष्ट्र लिमिटेड (सीआईडीको) और सेंट्रल रेलवे के बीच हुई थी। नवी मुंबई के नियोजित विकास के तहत सीआईडीको ने वाशी, नेरुल और बेलापुर जैसे आधुनिक रेलवे स्टेशन बनाए और उनकी देखरेख का कार्य भी संभाला। बदले में रेलवे ने सीआईडीको को विज्ञापन अधिकार दिए ताकि वह रखरखाव का खर्च निकाल सके।

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1999 में रेल मजदूर यूनियन ने 37 सफाई और झाड़ू लगाने वाले कर्मचारियों के नियमितीकरण की मांग की, जो लगातार 240 दिनों से अधिक समय से काम कर रहे थे। 2006 में केंद्रीय औद्योगिक न्यायाधिकरण (सीजीआईटी) ने यूनियन के पक्ष में फैसला देते हुए इन्हें रेलवे का कर्मचारी माना। इसी आदेश को चुनौती देते हुए सेंट्रल रेलवे ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की।

अदालत के अवलोकन

सुनवाई के दौरान सेंट्रल रेलवे की ओर से अधिवक्ता स्मिता ठाकुर ने तर्क दिया कि न्यायाधिकरण ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर फैसला दिया। उन्होंने कहा कि “इन कर्मचारियों की नियुक्ति और वेतन भुगतान सीआईडीको या उसके एजेंट मैन पावर सर्विसेज ने किया था। रेलवे न तो इनके काम की निगरानी करता था और न ही वेतन देता था।”

उन्होंने उमादेवी और बलवंत राय सलूजा जैसे कई सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि बिना स्वीकृत पदों और चयन प्रक्रिया के नियमितीकरण असंवैधानिक है।

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वहीं, रेल मजदूर यूनियन के वकील रमेश राममूर्ति ने तर्क दिया कि कम से कम छह कर्मचारी 30 वर्षों से सेवा दे रहे हैं, इसलिए मानवीय दृष्टिकोण से उन्हें नियमित किया जाना चाहिए।

लेकिन अदालत ने यह तर्क अस्वीकार कर दिया। न्यायमूर्ति मर्ने ने कहा कि सीआईडीको रेलवे का ठेकेदार नहीं, बल्कि एक स्वतंत्र संस्था है जिसने खुद स्टेशन बनाए और उनकी मालिक है। “सीआईडीको अपने ही रेलवे स्टेशनों का रखरखाव कर रही है,” उन्होंने कहा, यह जोड़ते हुए कि “सिर्फ स्टेशन प्रबंधक की अनुमति से प्रवेश मिलना किसी कर्मचारी को रेलवे का कर्मचारी नहीं बना देता।”

सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित नियोक्ता-कर्मचारी संबंध की छह कसौटियों का उल्लेख करते हुए न्यायालय ने पाया कि इनमें से कोई भी शर्त इस मामले में पूरी नहीं होती। रेलवे ने न तो इन कर्मचारियों की नियुक्ति की, न वेतन दिया, न ही उन पर नियंत्रण रखा।

निर्णय

न्यायमूर्ति मर्ने ने कहा कि दूसरे संगठन के कर्मचारियों को रेलवे में शामिल करना संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन होगा। उन्होंने कहा कि रेलवे में नियुक्तियाँ केवल वैधानिक प्रक्रिया और स्वीकृत रिक्तियों के आधार पर ही हो सकती हैं।

अदालत ने यह भी नोट किया कि आज भी नवी मुंबई के रेलवे स्टेशनों का रखरखाव सीआईडीको ही करती है और वही कर्मचारियों को वेतन देती है। “सिर्फ विज्ञापन अधिकार देने से यह नहीं माना जा सकता कि रेलवे अप्रत्यक्ष रूप से वेतन दे रही है,” अदालत ने कहा।

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फैसले में न्यायमूर्ति मर्ने ने लिखा:

“सीजीआईटी द्वारा पारित आदेश टिकाऊ नहीं है और उसे रद्द किया जाता है। याचिका स्वीकार की जाती है।”

इस प्रकार बॉम्बे हाईकोर्ट ने औद्योगिक न्यायाधिकरण के 2006 के आदेश को रद्द करते हुए यूनियन की नियमितीकरण की मांग खारिज कर दी।

Case Title: General Manager, Central Railway vs The Secretary, Rail Mazdoor Union

Case Type: Writ Petition No. 576 of 2007

Petitioner: General Manager, Central Railway

Respondent: The Secretary, Rail Mazdoor Union

Date of Judgment: October 17, 2025

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