सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (13 अक्टूबर 2025) को एक महत्वपूर्ण फैसले में कोलकाता हाईकोर्ट का आदेश रद्द करते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि मजिस्ट्रेट किसी व्यक्ति से आपराधिक जांच के दौरान वॉइस सैंपल (आवाज़ का नमूना) देने का निर्देश दे सकते हैं। जस्टिस के. विनोद चंद्रन और जस्टिस बी. आर. गवई की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने “एक अकादमिक और पहले से तय मुद्दे को अनावश्यक रूप से छेड़ा” और सुप्रीम कोर्ट के बंधनकारी फैसले की अनदेखी की।
पीठ ने टिप्पणी की- “हाईकोर्ट ने इस कोर्ट के बाध्यकारी निर्णय का पालन करने से इनकार कर दिया,” और जोड़ा कि जिस ‘लार्जर बेंच रेफरेंस’ का हवाला दिया गया था, वह “डिफ़ॉल्ट में पहले ही समाप्त हो चुका था।”
पृष्ठभूमि
यह मामला फरवरी 2021 में एक 25 वर्षीय विवाहित महिला की मृत्यु से जुड़ा है। उसके परिवार ने ससुराल पक्ष पर प्रताड़ना का आरोप लगाया, जबकि पति के परिवार ने मृतका और उसके माता-पिता पर पैसे और गहनों की हेराफेरी का आरोप लगाया। जांच के दौरान पुलिस को जानकारी मिली कि मृतका के पिता के एजेंट के रूप में कार्य कर रहे द्वितीय प्रतिवादी (Respondent No. 2) ने एक गवाह को धमकाया था।
इन आरोपों की पुष्टि के लिए जांच अधिकारी ने अदालत से उक्त व्यक्ति का वॉइस सैंपल लेने की अनुमति मांगी। मजिस्ट्रेट ने याचिका स्वीकार कर ली, लेकिन हाईकोर्ट ने इस आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि पुराने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) में ऐसी कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं है और मामला सुप्रीम कोर्ट की लार्जर बेंच के समक्ष लंबित है।
न्यायालय का अवलोकन
शिकायतकर्ता राहुल अग्रवाल की अपील पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के तर्क को पूरी तरह अस्वीकार्य बताया। पीठ ने कहा, “यह प्रश्न पहले ही रीतेश सिन्हा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2019) मामले में तय हो चुका है,” और दोहराया कि मजिस्ट्रेट किसी भी व्यक्ति - केवल आरोपी ही नहीं - को जांच के लिए वॉइस सैंपल देने का निर्देश दे सकते हैं।
जस्टिस चंद्रन ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 20(3) में आत्म-दोषारोपण (Self-Incrimination) से सुरक्षा केवल तब लागू होती है जब किसी व्यक्ति को स्वयं के खिलाफ गवाही देने के लिए मजबूर किया जाए। आवाज का नमूना देना, उन्होंने कहा, “गवाही नहीं बल्कि एक भौतिक साक्ष्य” है - ठीक वैसे ही जैसे फिंगरप्रिंट या हस्ताक्षर का नमूना देना।
कोर्ट ने पूर्ववर्ती निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि “हस्ताक्षर या अंगुली के निशान का नमूना अपने आप में हानिरहित होता है,” और यही तर्क वॉइस सैंपल पर भी लागू होता है।
पीठ ने यह भी कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 के लागू होने के बाद अब धारा 349 के तहत ऐसी जांच के लिए स्पष्ट कानूनी प्रावधान मौजूद है, जिससे यह विवाद और भी निरर्थक हो गया है।
निर्णय
मामले का निपटारा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और मजिस्ट्रेट का निर्णय बहाल किया, जिससे पुलिस अब संबंधित व्यक्ति का वॉइस सैंपल ले सकेगी।
पीठ ने कहा, “हम हाईकोर्ट के आदेश को सही नहीं ठहरा सकते,” यह जोड़ते हुए कि निचली अदालत का दृष्टिकोण स्थापित कानून के विपरीत था।
अंततः अपील स्वीकार की गई, और अदालत ने निर्देश दिया कि प्रतिवादी को मजिस्ट्रेट के आदेश का तुरंत पालन करना होगा।
Case Title: Rahul Agarwal v. State of West Bengal & Anr.
Citation: 2025 INSC 1223
Case Type: Criminal Appeal arising out of SLP (Crl.) No. 5518 of 2025
Date of Judgment: October 13, 2025