मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै खंडपीठ ने दो अलग-अलग हैबियस कॉर्पस याचिकाओं को सुनते हुए परिवार के सदस्यों द्वारा अपने गुमशुदा रिश्तेदारों की तलाश के लिए दायर प्रार्थनाओं को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। अदालत ने साफ किया कि हैबियस कॉर्पस का असाधारण उपाय केवल अवैध हिरासत के मामलों में ही उपलब्ध है, न कि सामान्य गुमशुदगी के मामलों में। न्यायमूर्ति ए.डी. जगदीश चंदीरा और न्यायमूर्ति आर. पूर्निमा की खंडपीठ ने 29 अगस्त 2025 को एच.सी.पी. संख्या 793 और 658/2025 में यह साझा आदेश सुनाया।
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याचिकाओं की पृष्ठभूमि
पहली याचिका राजा लक्ष्मी द्वारा दायर की गई थी, जिसमें उन्होंने अपने पति सेल्वराज की रिहाई की मांग की थी। 45 वर्षीय सेल्वराज पेशे से ऑटो चालक हैं और उनके लापता होने की बात कही गई। याचिका में यह इशारा भी किया गया कि उनके खिलाफ दर्ज शराब पीकर गाड़ी चलाने के मामले से इसका संबंध हो सकता है। हालांकि, उनके हलफनामे में खुद यह स्वीकार किया गया कि सेल्वराज शराब के आदी हैं, परिवार से झगड़ा करते रहते थे और उन्होंने अपनी बेटी से कहा था कि वह कभी वापस घर नहीं आएंगे।
दूसरी याचिका एस. खदीजा बेगम ने दायर की थी, जिन्होंने अपनी 18 वर्षीय बेटी रबियम्मा को पेश करने की प्रार्थना की। तंजावुर जिले की रहने वाली रबियम्मा कॉलेज छात्रा है और उसके गुमशुदा होने की सूचना दी गई। पुलिस की स्थिति रिपोर्ट से पता चला कि उसने अपने शिक्षक मुरुगेसन के साथ स्वेच्छा से घर छोड़ा था। बाद में मुरुगेसन ने इस्लाम धर्म अपनाकर अपना नाम मोहम्मद रख लिया और नौकरी भी छोड़ दी।
अदालत की टिप्पणियाँ
न्यायाधीशों ने कहा कि दोनों ही मामलों में न तो अवैध हिरासत का आरोप लगाया गया और न ही किसी प्रकार का प्रथमदृष्टया सबूत मौजूद है। यही शर्त हैबियस कॉर्पस याचिका दायर करने के लिए अनिवार्य है।
पीठ ने साफ कहा:
"हैबियस कॉर्पस एक त्वरित उपाय है जिसे केवल अवैध हिरासत के मामलों में ही लागू किया जा सकता है। स्वेच्छा से गुम हो जाने वाले व्यक्ति के लिए यह लागू नहीं होता।"
अदालत ने पहले दिए गए कई फैसलों का हवाला दिया, जिनमें मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का यह मत शामिल था कि अवैध हिरासत हैबियस कॉर्पस की बुनियादी शर्त है। इसके अलावा, 2018 में कलैयारसी बनाम राज्य मामले में मद्रास हाईकोर्ट ने चेतावनी दी थी कि “गुमशुदा व्यक्ति के मामलों को हैबियस कॉर्पस में बदलने” की प्रवृत्ति सही नहीं है।
न्यायमूर्ति चंदीरा और पूर्निमा ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर भी नाराज़गी जताई। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु पुलिस के लिए पहले से स्पष्ट दिशा-निर्देश मौजूद हैं लेकिन अक्सर पुलिस बिना पूरी कोशिश किए “अज्ञात” बताते हुए जांच बंद कर देती है। अदालत ने याद दिलाया कि सभी गुमशुदगी मामलों में डेटाबेस बनाए रखना, वायरलेस अलर्ट भेजना और अज्ञात शवों को गुमशुदा रिपोर्ट से मिलाना अनिवार्य है।
निर्णय
अंत में अदालत ने दोनों याचिकाओं को अमान्य मानते हुए खारिज कर दिया। हालांकि, अदालत ने संबंधित जांच अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे गुमशुदा व्यक्तियों को खोजने की कार्रवाई जारी रखें और इसकी निगरानी सहायक पुलिस आयुक्त करेंगे।
याचिकाएँ खारिज करते हुए पीठ ने पुलिस को चेताया कि वे दिशानिर्देशों का कड़ाई से पालन करें और लापरवाही से जांच न करें। आदेश के अंत में अदालत ने स्पष्ट किया कि हैबियस कॉर्पस को हर गुमशुदगी मामले में “सर्वसुलभ उपाय” के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।