इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सोमवार को भदोही की एक महिला पर नाबालिग घरेलू सहायक लड़कियों के कथित शोषण और तस्करी के आरोपों पर चल रही आपराधिक कार्यवाही को समाप्त कर दिया। न्यायमूर्ति समीेर जैन ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि रिकॉर्ड पर उपलब्ध साक्ष्य जबरन श्रम या दबाव को साबित नहीं करते।
पृष्ठभूमि
यह मामला सितंबर 2024 में शुरू हुआ जब पुलिस ने सीमा बेग और उनके पति जाहिद जमाल बेग के घर में 15 वर्षीय लड़की को घरेलू काम करते पाया। इससे कुछ दिन पहले उसी घर में काम करने वाली एक और नाबालिग लड़की की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी, जिसे आत्महत्या बताया गया। एफआईआर में आरोप लगाया गया कि दोनों लड़कियों को बहुत कम भुगतान किया जाता था, उन्हें फटकार लगाई जाती थी और कभी-कभी पीटा भी जाता था, और यह शोषण व जबरन श्रम की श्रेणी में आता है।
बाद में पुलिस ने भारतीय न्याय संहिता के तहत मानव तस्करी, किशोर न्याय अधिनियम के उल्लंघन तथा बंधुआ मजदूरी प्रणाली (उन्मूलन) अधिनियम के तहत आरोपपत्र दाखिल किया। सीमा बेग ने इन कार्यवाहियों को रद्द करने के लिए हाई कोर्ट का रुख किया।
अदालत की टिप्पणियाँ
सुनवाई के दौरान, आवेदक की ओर से कहा गया कि लड़कियाँ अपने परिवारों की सहमति से काम कर रही थीं और उन्हें भर्ती करते समय न तो बल, धोखे, धमकी या जबरदस्ती का इस्तेमाल किया गया-जो कि तस्करी के अपराध को स्थापित करने के लिए आवश्यक तत्व हैं। वकीलों ने यह भी कहा कि भुगतान भले ही कम रहा हो, लेकिन एक लड़की के परिवार ने इसे स्वीकार किया था और वेतन रोकने या बंधन में रखने का कोई प्रमाण नहीं था।
दूसरी ओर, राज्य की ओर से दलील दी गई कि नाबालिगों से ऐसे हालात में काम कराना स्वयं में शोषण है और संविधान जबरन श्रम पर रोक लगाता है। अतिरिक्त महाधिवक्ता ने अदालत से कहा, “यह केवल रोजगार का मामला नहीं है, बल्कि आर्थिक और सामाजिक दबाव भी स्पष्ट है।”
न्यायालय ने जांच के दौरान दर्ज बयानों का विस्तार से परीक्षण किया। न्यायमूर्ति जैन ने कहा कि हालांकि लड़कियाँ नाबालिग थीं और आर्थिक रूप से कमजोर भी, लेकिन रिकॉर्ड यह नहीं दिखाता कि उन्हें शोषण के उद्देश्य से रखा गया था। न्यायालय ने टिप्पणी की, “रिकॉर्ड में ऐसा कोई संकेत नहीं है कि सहमति प्राप्त करने के लिए धमकी, दबाव, धोखा या लालच का प्रयोग किया गया।”
अदालत ने यह भी कहा कि न तो कमाई रोकने का कोई आरोप है और न ही लड़कियों को बंधन में रखने का, इसलिए किशोर न्याय और बंधुआ मजदूरी के प्रावधान भी लागू नहीं होते।
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फैसला
न्यायालय ने निष्कर्ष दिया कि भारतीय न्याय संहिता की धारा 143 (मानव तस्करी), किशोर न्याय अधिनियम की धारा 79 और बंधुआ मजदूरी कानून की धारा 4/16 के तहत अपराध प्रथमदृष्टया साबित नहीं होता। इसलिए आरोपपत्र और लंबित सत्र परीक्षण को ख़ारिज कर दिया गया।
अदालत ने कहा, “जब शोषण या दबाव का प्रथमदृष्टया प्रमाण नहीं है, तो कार्यवाही जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।”
आवेदन को स्वीकार करते हुए पूरे आपराधिक मामले को समाप्त कर दिया गया।
Case Title: Seema Beg vs. State of Uttar Pradesh & Another
Court: High Court of Judicature at Allahabad
Case Number: Application U/S 528 BNSS No. 35862 of 2025
Bench: Justice Sameer Jain
Trial Court Case: Sessions Trial No. 496 of 2025, arising out of Case Crime No. 185 of 2024, P.S. Bhadohi, Gyanpur
Date of Judgment: 07 October 2025










