6 नवंबर को सुनाए गए एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अलकेमिस्ट हॉस्पिटल्स लिमिटेड और आईसीटी हेल्थ टेक्नोलॉजी सर्विसेज के बीच हुए सॉफ्टवेयर समझौते में इस्तेमाल किया गया “अरबिट्रेशन” शब्द असल में बाध्यकारी मध्यस्थता का संकेत नहीं देता। कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि विवाद को अब सिविल कोर्ट में सुलझाया जाएगा, न कि किसी मध्यस्थ ट्रिब्यूनल में।
पृष्ठभूमि
पंचकूला स्थित अलकेमिस्ट हॉस्पिटल ने नवंबर 2018 में आईसीटी की अस्पताल प्रबंधन सॉफ्टवेयर प्रणाली “HINAI Web” को लागू करने के लिए एक समझौता किया था। यह सॉफ्टवेयर बिलिंग, डायग्नॉस्टिक्स और मरीजों के रिकॉर्ड को सरल बनाने के लिए बनाया गया था।
लेकिन अस्पताल का कहना था कि सिस्टम बार-बार खराब होता रहा।
सॉफ्टवेयर पहले 2018 के अंत में लागू किया गया, फिर हटाया गया, फिर जनवरी 2020 में दोबारा चालू किया गया और अप्रैल 2020 में फिर से समस्याओं के कारण बंद करना पड़ा।
इसके बाद अलकेमिस्ट ने कहा कि समझौते की क्लॉज 8.28 में मध्यस्थता का प्रावधान है, और एक स्वतंत्र मध्यस्थ (arbitrator) नियुक्त किए जाने की मांग की।
वहीं, आईसीटी ने जवाब दिया कि यह क्लॉज असल में सिर्फ आपसी चर्चा और बातचीत का तरीका बताता है, न कि कानूनी रूप से बाध्यकारी मध्यस्थता की प्रक्रिया।
कोर्ट के अवलोकन
जस्टिस दीपंकर दत्ता की अध्यक्षता वाली पीठ ने क्लॉज 8.28 का बारीकी से अध्ययन किया।
क्लॉज में पहले वरिष्ठ अधिकारियों के बीच बातचीत, फिर दोनों कंपनियों के चेयरमैन के बीच “मध्यस्थता” का ज़िक्र था। लेकिन ये चेयरमैन विवाद के निष्पक्ष तीसरे पक्ष नहीं, बल्कि स्वयं संबंधित पक्षों के प्रतिनिधि थे।
पीठ ने कहा, “सिर्फ ‘arbitration’ शब्द के उपयोग से वास्तविक मध्यस्थता नहीं मानी जा सकती। इसके लिए विवाद को बाध्यकारी निर्णय हेतु सौंपने का साफ इरादा आवश्यक है।”
कोर्ट ने कहा कि असली मध्यस्थता में फैसला अंतिम और बाध्यकारी होता है।
जबकि इस क्लॉज में साफ तौर पर लिखा था कि यदि 15 दिनों में विवाद नहीं सुलझा, तो पक्ष अदालत का रुख कर सकते हैं।
इससे स्पष्ट हुआ कि यह “मध्यस्थता” वास्तव में सिर्फ आंतरिक बातचीत का एक चरण था, न कि वैधानिक मध्यस्थता प्रक्रिया।
कोर्ट ने यह तर्क भी खारिज कर दिया कि पत्राचार (ईमेल) में आईसीटी ने मध्यस्थता से इंकार नहीं किया था। कोर्ट ने कहा कि जब मूलतः मध्यस्थता समझौता मौजूद ही नहीं, तो बाद की ईमेल इसे पैदा नहीं कर सकतीं।
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के निर्णय को सही ठहराते हुए कहा कि क्लॉज 8.28 भारतीय मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 7 के अनुसार वैध अरबीट्रेशन एग्रीमेंट नहीं है।
अपील खारिज कर दी गई।
अलकेमिस्ट हॉस्पिटल्स अब चाहे तो सिविल कोर्ट में मामला दायर कर सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अस्पताल चाहे तो लिमिटेशन अधिनियम की धारा 14 के तहत समय की छूट की मांग कर सकता है।
दोनों पक्ष अपने-अपने खर्च खुद वहन करेंगे।
Case Title: M/s Alchemist Hospitals Ltd. vs. M/s ICT Health Technology Services India Pvt. Ltd.
Case Type: Civil Appeal (arising out of SLP (Civil) No. 19647/2024)
Court: Supreme Court of India
Bench: Justice Dipankar Datta & Justice Augustine George Masih
Decision Date: 6 November 2025










