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कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक्स कॉर्प की याचिका खारिज की, सरकार की नियामक शक्ति को बरकरार रखा

Shivam Y.

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने टेकडाउन आदेशों के खिलाफ एक्स कॉर्प की याचिका खारिज कर दी, सत्तारूढ़ विदेशी कंपनियों को भारतीय डिजिटल कानूनों का पालन करना होगा। - एक्स कार्पोरेशन बनाम भारत संघ एवं अन्य।

कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक्स कॉर्प की याचिका खारिज की, सरकार की नियामक शक्ति को बरकरार रखा

24 सितंबर 2025 को कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाते हुए एक्स कॉर्प (पूर्व में ट्विटर) द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें कई सरकारी टेकेडाउन और ब्लॉकिंग आदेशों को चुनौती दी गई थी। न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना ने अपने निर्णय में साफ किया कि विदेशी कंपनियां उन मौलिक अधिकारों का दावा नहीं कर सकतीं जो विशेष रूप से भारतीय नागरिकों के लिए हैं।

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पृष्ठभूमि

एक्स कॉर्प ने हाईकोर्ट का रुख करते हुए सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 और इंटरमीडियरी गाइडलाइंस तथा डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड नियम, 2021 के तहत जारी कई ब्लॉकिंग आदेशों की वैधता पर सवाल उठाया था। कंपनी का कहना था कि केवल आईटी अधिनियम की धारा 69A ही सरकार को कंटेंट ब्लॉक करने का अधिकार देती है और 2021 के नियमों की धारा 3(1)(d) असंवैधानिक है। कंपनी ने विभिन्न मंत्रालयों की अधिसूचनाओं को भी चुनौती दी, यह दावा करते हुए कि उन्होंने अपनी कानूनी सीमाएं पार कर ली हैं।

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वहीं, भारत सरकार ने डिजिटल प्लेटफार्मों को नियंत्रित करने के अपने अधिकार का बचाव किया और एक्स कॉर्प की बार-बार की गई अनुपालना विफलताओं की ओर इशारा किया। सरकार ने यह भी रेखांकित किया कि कई हानिकारक सामग्री आदेशों के बावजूद ऑनलाइन बनी रही।

न्यायालय की टिप्पणियां

न्यायालय ने विदेशी कंपनियों के सीमित अधिकारों पर सख्त रुख अपनाया। न्यायमूर्ति नागप्रसन्ना ने कहा:

"एक विदेशी कंपनी, जो अनुच्छेद 14 के तहत खड़ी है, ऐसा चुनौती नहीं दे सकती जिससे अनुच्छेद 19 की व्याख्या करनी पड़े। अगर वह देश में काम करना चाहती है, तो उसे कानून का पालन करना ही होगा, बस इतना ही।"

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न्यायालय ने वैश्विक उदाहरणों का भी हवाला दिया और नोट किया कि एक्स कॉर्प को ब्राज़ील, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय संघ के डिजिटल सर्विसेज अधिनियम के तहत भी इसी तरह की कार्रवाइयों का सामना करना पड़ा है। जज ने टिप्पणी की:

"याचिकाकर्ता ने अनुपालना में देरी करने के लिए जानबूझकर एक रणनीतिक दृष्टिकोण अपनाया है… देरी का कोई ठोस कारण प्रस्तुत नहीं किया गया।"

न्यायालय ने इस बात पर भी जोर दिया कि आपत्तिजनक सामग्री को अनियंत्रित छोड़ना खतरनाक हो सकता है। अदालत ने एक्स कॉर्प की अपनी पारदर्शिता रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें बाल यौन शोषण से संबंधित लंबित मामलों के निपटान को "बेहद कम" बताया गया।

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फैसला

मामले का निष्कर्ष निकालते हुए न्यायमूर्ति नागप्रसन्ना ने पूरी तरह से याचिका को खारिज कर दिया। आदेश में कहा गया:

"उपरोक्त कारणों से, याचिका में कोई मेरिट नहीं है और इसे खारिज किया जाता है। याचिका खारिज होने के कारण हस्तक्षेपकर्ताओं का आवेदन भी खारिज किया जाता है।"

न्यायालय ने यह चेतावनी भी दी कि जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आवश्यक है, वहीं यह सार्वजनिक व्यवस्था और गरिमा की कीमत पर नहीं हो सकती:

"स्वतंत्रता जिम्मेदारी से जुड़ी है, और पहुंच का विशेषाधिकार जवाबदेही के गंभीर कर्तव्य के साथ आता है।"

Case Title:- X Corp. v. Union of India & Ors.

Case Number:- W.P. No.7405 of 2025 (GM-RES)

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