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दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्रांसजेंडर अधिकारों के लागू होने में देरी पर केंद्र को फटकार लगाई, चार हफ्तों का समय दिया जवाब के लिए

Vivek G.

दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्रांसजेंडर अधिकारों के लागू होने में देरी पर केंद्र को फटकार लगाई, चार हफ्तों का समय दिया जवाब के लिए

दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार की उस देरी पर कड़ी नाराज़गी जताई, जिसमें ट्रांसजेंडर व्यक्तियों द्वारा दाखिल याचिकाओं का जवाब नहीं दिया गया। इन याचिकाओं में 2019 के ट्रांसजेंडर पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) एक्ट के तहत अधिकारों के प्रवर्तन की मांग की गई थी। न्यायमूर्ति नितिन वासुदेव सांबरे और न्यायमूर्ति अनीश दयाल की खंडपीठ ने स्पष्ट कहा कि इतने संवेदनशील मामलों में केंद्र अनिश्चित काल तक अपनी जिम्मेदारी टाल नहीं सकता।

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पृष्ठभूमि

यहां तीन अलग-अलग याचिकाएँ एक साथ सुनी गईं-रिया शर्मा, आरव सिंह और राघव पी.आर. द्वारा दायर। सभी ने या तो लिंग परिवर्तन करवाया है या स्वयं को ट्रांसजेंडर के रूप में पहचानते हैं और चाहते हैं कि उनके आधिकारिक दस्तावेज़ उनकी वास्तविक पहचान को दर्शाएँ। उनका कहना था कि ट्रांसजेंडर पर्सन्स एक्ट और 2020 के नियम साफ-साफ प्रक्रिया बताते हैं कि शिक्षा और सरकारी अभिलेखों में नाम, लिंग और फ़ोटोग्राफ बदले जा सकते हैं।

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याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने अदालत को बताया कि कानूनी प्रावधान होने के बावजूद सीबीएसई और दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों ने अब तक अभिलेखों में बदलाव नहीं किया। वकील ने दलील दी, “यह एक बुनियादी अधिकार है कि आपकी पहचान आपके दस्तावेज़ों में मान्य हो,” और अदालत से तुरंत अनुपालन का निर्देश देने की मांग की।

अदालत की टिप्पणियाँ

पीठ ने गौर किया कि याचिकाकर्ताओं ने नियम 7(6) का हवाला दिया है, जिसमें यह प्रावधान है कि लिंग या नाम में बदलाव वही दस्तावेज़ों में दर्ज होगा और उनका संदर्भ क्रमांक वही रहेगा। उन्होंने 2023 में जारी नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल डिफेन्स की गाइडलाइंस का भी हवाला दिया, जिसमें बदलाव सम्मिलित करके प्रमाणपत्र फिर से जारी करने की बात कही गई है।

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न्यायाधीशों ने कहा कि ट्रांसजेंडर पर्सन्स की नेशनल काउंसिल, जो धारा 16 के तहत बनी है, नीति और क्रियान्वयन में केंद्रीय भूमिका निभाती है। लेकिन यह साफ नहीं है कि 2023 की गाइडलाइंस को काउंसिल ने औपचारिक मंज़ूरी दी है या नहीं और क्या केंद्र ने उन्हें स्वीकार किया है।

सबसे अहम बात यह रही कि कोर्ट ने केंद्र की चुप्पी पर नाराज़गी जताई। पीठ ने कहा, “कम से कम यह उम्मीद थी कि केंद्र सरकार अपना जवाब दाखिल करेगी।” न्यायाधीशों ने यहां तक इशारा किया कि संबंधित मंत्रालय के सचिव पर जुर्माना लगाया जा सकता था।

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निर्णय

आखिरकार अदालत ने जुर्माना लगाए बिना केंद्र को आखिरी मौका दिया। उसे चार हफ्तों में तीनों याचिकाओं पर जवाब दाखिल करने का आदेश दिया गया, चाहे वह हर याचिका में औपचारिक पक्षकार हो या नहीं। अदालत ने यह भी कहा कि जवाब की अग्रिम प्रति याचिकाकर्ताओं के वकीलों को दी जाए ताकि वे दो हफ्तों में उस पर अपना प्रत्युत्तर दाखिल कर सकें।

अब यह मामला 20 नवंबर 2025 को सूचीबद्ध किया गया है।

Case: Riya Sharma vs Union of India & Ors. (along with connected petitions Aarav Singh vs Union of India & Anr. and Raghav P.R. vs Union of India & Ors.)

Case Numbers:

  • W.P.(C) 6595/2017 & CM APPL. 27314/2017, CM APPL. 5527/2023 (Riya Sharma)
  • W.P.(C) 2425/2019 & CM APPL. 11308/2019, CM APPL. 28379/2020 (Aarav Singh)
  • W.P.(C) 2432/2019 & CM APPL. 11318/2019 (Raghav P.R.)

Date of Order: 17 September 2025

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