29 सितम्बर 2025 को केरल हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में 74 वर्षीय विधवा की अपील खारिज कर दी, जिसमें उसने अपने दिवंगत पति की संपत्ति में हिस्सेदारी मांगी थी। न्यायमूर्ति सी. प्रथीप कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने निचली अदालत के उस फैसले को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया था कि मृतक प्रभाकरा पनिक्कर ने अपनी इकलौती बेटी के पक्ष में वैध वसीयत लिखी थी और दूसरी पत्नी को केवल एक मामूली मासिक भत्ता दिया गया था।
विवाद की पृष्ठभूमि
यह मामला लगभग दो दशक पुराना है। अपनी पहली पत्नी की प्रसव के कुछ ही दिनों बाद मृत्यु हो जाने के बाद पनिक्कर ने 1972 में दूसरी शादी की। पहली पत्नी से हुई बेटी जनकीकुट्टी इस अपील में प्रतिवादी बनीं, जबकि दूसरी पत्नी रमणी अपीलकर्ता थीं।
रमणी ने तर्क दिया कि पनिक्कर ने बिना वसीयत बनाए (इंटेस्टेट) मृत्यु पाई थी और इस कारण से वह संपत्ति में आधे हिस्से की हकदार हैं। उनका कहना था कि बेटी द्वारा पेश की गई वसीयत “झूठी” है और संदेहास्पद परिस्थितियों में तैयार की गई थी।
दूसरी ओर, बेटी ने दावा किया कि उसके पिता ने 2000 में विधिवत पंजीकृत वसीयत तैयार की थी, जिसमें सभी अचल संपत्तियाँ उसे दी गईं। इस दस्तावेज़, जिसे एक्सहिबिट बी1 के रूप में चिह्नित किया गया, में यहाँ तक प्रावधान था कि बेटी अपनी सौतेली माँ को हर महीने ₹300 देगी।
अदालत की टिप्पणियाँ
हाईकोर्ट ने सबूतों को बारीकी से देखा। एलीट मिशन अस्पताल के डॉक्टरों को गवाही के लिए बुलाया गया ताकि यह साबित किया जा सके कि पनिक्कर वसीयत के समय स्वस्थ मानसिक स्थिति में नहीं थे। लेकिन न्यायमूर्ति कुमार ने कहा कि मेडिकल रिकॉर्ड केवल हृदय संबंधी समस्या दर्शाते हैं, न कि किसी मानसिक अक्षमता का।
"सर्जरी 2000 में सुझाई गई थी, लेकिन नहीं हुई। वे 2004 तक जीवित रहे और 2002 में एक और संपत्ति हस्तांतरण भी किया, जिस पर वादी ने कोई सवाल नहीं उठाया," अदालत ने कहा। इससे साबित हुआ कि वह कानूनी दस्तावेज़ बनाने की स्थिति में थे।
वसीयत के एक गवाह की गवाही ने बेटी का पक्ष और मजबूत कर दिया। गवाह ने याद किया कि कैसे वह पनिक्कर के साथ रजिस्ट्रार कार्यालय गए, जहाँ वसीयत पढ़कर सुनाई गई और उन्होंने स्वेच्छा से हस्ताक्षर किए। न्यायाधीश ने टिप्पणी की-
"डीडब्ल्यू2 की गवाही को कमजोर करने लायक कुछ भी सामने नहीं आया।"
अदालत ने रिश्तों के पहलुओं पर भी गौर किया। बेटी कई साल पहले पिता के साथ रहने लगी थी, जबकि सौतेली माँ नौकरी के कारण अलग रहती थीं और केवल कभी-कभार मिलने आती थीं। न्यायाधीश ने यह भी इंगित किया कि रमणी ने खुद स्वीकार किया कि उनका नाम पनिक्कर के राशन कार्ड में नहीं था और मतदाता पहचान पत्र में अलग पता दर्ज था। इससे यह साबित हुआ कि वह घर की देखभाल करने वाली नहीं थीं।
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अदालत का फैसला
सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद, केरल हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि वसीयत पर कोई संदेहास्पद परिस्थिति नहीं है। न्यायमूर्ति कुमार ने कहा:
“यह स्वाभाविक है कि एक पिता अपनी इकलौती बेटी, जिसने जन्म के तुरंत बाद माँ को खो दिया था, पर अधिक स्नेह दिखाए। अपनी दूसरी पत्नी के लिए मासिक प्रावधान रखते हुए पूरी संपत्ति बेटी को सौंपना असामान्य नहीं माना जा सकता।”
इस प्रकार, हाईकोर्ट ने अपील खारिज कर दी और निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा। संवेदनशील पारिवारिक संबंधों को देखते हुए अदालत ने किसी भी पक्ष पर लागत नहीं लगाई।
अपील से जुड़ी सभी लंबित याचिकाएँ भी खारिज कर दी गईं।
Case Title: Ramani vs Janakikutty
Case Number: RFA No. 339 of 2014
Judgment Date: 29 September 2025
Counsel for Appellant: Sri. Dinesh R. Shenoy
Counsel for Respondent: Sri. K.G. Balasubramanian