एक महत्वपूर्ण फैसले में, जो नाबालिग पीड़िताओं की सुरक्षा को और मज़बूत करता है, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (14 अक्टूबर 2025) को छत्तीसगढ़ के शिवकुमार उर्फ बालेश्वर यादव की अपील खारिज करते हुए उसकी सजा और दोषसिद्धि को बरकरार रखा। आरोपी को एक नाबालिग के अपहरण और दुष्कर्म के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।
न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन और न्यायमूर्ति बी.वी. नागरथना की पीठ ने कहा-
“पीड़िता की गवाही सुसंगत, विश्वसनीय और चिकित्सीय व दस्तावेजी साक्ष्यों से पुष्ट है।”
पृष्ठभूमि
यह मामला मई 2018 का है, जब सुरजपुर जिले के प्रतापपुर थाना क्षेत्र में एक व्यक्ति ने शिकायत दर्ज कराई कि उसकी 14 वर्षीय बेटी रात के भोजन के बाद लापता हो गई। पुलिस जांच में सामने आया कि आरोपी, जो उसी इलाके का मजदूर था और परिवार को अच्छी तरह जानता था, उसने शादी का झांसा देकर लड़की को बहला-फुसलाकर ले गया और जबरन दुष्कर्म किया।
ट्रायल कोर्ट ने उसे भारतीय दंड संहिता की धाराओं 363 (अपहरण), 366 (अपहरण कर विवाह हेतु प्रेरित करना), 376 (दुष्कर्म) और 506 (आपराधिक डराने-धमकाने), साथ ही POCSO अधिनियम की धारा 4 तथा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3(2)(v) के तहत दोषी पाया।
विशेष न्यायाधीश ने उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, जिसे छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने 2023 में बरकरार रखा।
न्यायालय के अवलोकन
सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने न केवल तथ्यों की समीक्षा की बल्कि अभियोजन द्वारा गवाहों के साथ व्यवहार पर भी सख्त टिप्पणी की। अदालत ने नाराजगी जताई कि पीड़िता के पिता (PW-1) को बिना किसी ठोस कारण के शत्रुतापूर्ण घोषित कर दिया गया।
पीठ ने कहा-“हम समझ नहीं पा रहे कि गवाह को पहली बार में ही शत्रुतापूर्ण क्यों घोषित किया गया? अपने ही गवाह से जिरह करने की अनुमति असाधारण कदम है, जिसे सामान्य रूप से नहीं उठाया जाना चाहिए।”
अदालत ने श्री रवीन्द्र कुमार डे बनाम उड़ीसा राज्य (1976) और गुरा सिंह बनाम राजस्थान राज्य (2001) जैसे पुराने फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि छोटे-मोटे विरोधाभासों या भूलों के आधार पर गवाह को शत्रुतापूर्ण नहीं ठहराया जा सकता।
पीठ ने यह भी कहा कि स्कूल रिकॉर्ड नाबालिग की उम्र तय करने का विश्वसनीय सबूत है। स्कूल शिक्षक (PW-9) के बयान और प्रवेश रजिस्टर के अनुसार, पीड़िता की जन्मतिथि 15 सितंबर 2004 थी, जिससे साबित हुआ कि वारदात के समय वह नाबालिग थी।
चिकित्सीय रिपोर्ट में भी पीड़िता की गवाही का समर्थन मिला-हाइमन पर ताजा चोट और शुक्राणु की उपस्थिति पाई गई, जिससे जबरन यौन संबंध की पुष्टि हुई।
जातिगत पहलू पर अदालत ने कहा कि संशोधित धारा 3(2)(v) (एससी/एसटी अधिनियम) के अनुसार, अब यह जरूरी नहीं कि अपराध जातीय द्वेष से प्रेरित हो; केवल यह सिद्ध होना पर्याप्त है कि आरोपी को पीड़ित की जाति की जानकारी थी।
न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने कहा-“साक्ष्यों से स्पष्ट है कि आरोपी पीड़िता और उसके परिवार को जानता था तथा उनकी जाति से भलीभांति परिचित था।”
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने माना कि पीड़िता की गवाही “सच्ची और अडिग” है तथा अभियोजन ने सभी आरोप पर्याप्त रूप से साबित किए हैं।
पीठ ने कहा-“सबूतों में कोई संदेह की गुंजाइश नहीं बचती-पीड़िता का अपहरण हुआ, धमकाया गया, और उसकी जाति जानते हुए उसके साथ बलात्कार किया गया।”
इस प्रकार, शिवकुमार उर्फ बालेश्वर यादव की अपील खारिज कर दी गई और निचली अदालतों का फैसला बरकरार रखा गया।
लगभग सात साल बाद यह मामला आखिरकार न्यायिक रूप से समाप्त हुआ।
Case: Shivkumar @ Baleshwar Yadav vs. State of Chhattisgarh
Citation: Criminal Appeal No. 4502 of 2025 (@ SLP (Crl) No. 14625 of 2024)
Date of Judgment: 14 October 2025