सुप्रीम कोर्ट ने गॉडविन कंस्ट्रक्शन के बंधक दस्तावेज़ पर स्टांप ड्यूटी वसूली को बरकरार रखा

By Vivek G. • October 10, 2025

सुप्रीम कोर्ट ने गॉडविन कंस्ट्रक्शन की अपील खारिज की, कहा-“सिक्योरिटी बॉन्ड-कम-मॉर्गेज डीड” बंधक विलेख है, अनुच्छेद 40 लागू होगा।

स्टांप ड्यूटी के वर्गीकरण को स्पष्ट करते हुए एक महत्वपूर्ण फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने गॉडविन कंस्ट्रक्शन प्रा. लि. द्वारा दायर अपीलों को खारिज कर दिया है और यह माना है कि मेरठ विकास प्राधिकरण के पक्ष में निष्पादित “सिक्योरिटी बॉन्ड-कम-मॉर्गेज डीड” को एक साधारण सुरक्षा बॉन्ड नहीं, बल्कि एक बंधक विलेख (Mortgage Deed) के रूप में माना जाएगा। न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने यह फैसला 8 अक्टूबर 2025 को सुनाया।

Read in English

पृष्ठभूमि

यह विवाद तब शुरू हुआ जब गॉडविन कंस्ट्रक्शन ने मेरठ के अब्दुल्लापुर में ग्लोबल सिटी नामक एक आवासीय कॉलोनी विकसित की। विकास अनुबंध के हिस्से के रूप में, कंपनी ने 2006 में “सिक्योरिटी बॉन्ड-कम-मॉर्गेज डीड” निष्पादित की, जिसके तहत बाहरी विकास शुल्कों के भुगतान और सुविधाओं के निर्माण की बाध्यता सुनिश्चित करने के लिए कई भूखंडों को बंधक रखा गया। कंपनी ने भारतीय स्टांप अधिनियम की अनुसूची 1-बी के अनुच्छेद 57 के अंतर्गत ₹100 का स्टांप शुल्क जमा किया, यह दावा करते हुए कि यह मात्र एक सुरक्षा बॉन्ड है।

हालांकि, स्टांप प्राधिकरणों ने पाया कि यह दस्तावेज़ वास्तव में अनुच्छेद 40 के अंतर्गत एक बंधक विलेख है, जिस पर कहीं अधिक स्टांप शुल्क देना आवश्यक है। इसके परिणामस्वरूप, गॉडविन कंस्ट्रक्शन को ₹4,61,760 की कमी वाली स्टांप ड्यूटी, ₹100 का जुर्माना और ब्याज सहित भुगतान करने का आदेश दिया गया। कंपनी की अपीलें-पहले स्टांप आयुक्त और फिर इलाहाबाद हाईकोर्ट में-दोनों जगह खारिज कर दी गईं, जिसके बाद कंपनी सुप्रीम कोर्ट पहुंची।

अदालत के अवलोकन

पीठ के समक्ष मुख्य प्रश्न यह था कि क्या “सिक्योरिटी बॉन्ड-कम-मॉर्गेज डीड” अनुच्छेद 40 (बंधक विलेख) के अंतर्गत आती है या अनुच्छेद 57 (सुरक्षा बॉन्ड) के अंतर्गत। न्यायमूर्ति मिश्रा ने कहा, “दस्तावेज़ का नाम नहीं, बल्कि उसमें निहित अधिकार और दायित्व यह तय करते हैं कि उस पर कौन-सा प्रावधान लागू होगा।”

कोर्ट ने पाया कि गॉडविन कंस्ट्रक्शन ने विकास कार्यों और बाहरी शुल्कों के भुगतान को सुरक्षित करने के लिए मेरठ विकास प्राधिकरण के पक्ष में अपनी संपत्तियों का स्वामित्व स्थानांतरित कर दिया था। दस्तावेज़ में यह भी प्रावधान था कि यदि दायित्वों का पालन नहीं हुआ, तो प्राधिकरण को बंधक संपत्ति बेचने का अधिकार होगा। इस प्रकार, दस्तावेज़ में स्पष्ट रूप से बंधक के सभी गुण मौजूद थे।

महत्वपूर्ण रूप से, पीठ ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 57 केवल तभी लागू होता है जब कोई तीसरा पक्ष यानी “श्योरिटी” किसी अन्य व्यक्ति के दायित्वों की गारंटी देता है। अदालत ने कहा, “कोई कंपनी अपने ही दायित्व की श्योरिटी नहीं हो सकती।” इसलिए, अपीलकर्ता का यह दावा अस्वीकार कर दिया गया कि यह दस्तावेज़ “सिक्योरिटी बॉन्ड” के रूप में मान्य है।

कोर्ट ने एक अन्य मामले पर भी ध्यान दिया, जिसमें व्यवसायिक ऋण के लिए इसी तरह का दस्तावेज़ निष्पादित किया गया था। वहां भी उधारकर्ता ने स्वयं अपनी संपत्ति बंधक रखी थी और कोई अलग श्योरिटी नहीं थी। इसलिए, अदालत ने माना कि उस स्थिति में भी अनुच्छेद 40 के तहत उच्च स्टांप ड्यूटी देय थी।

निर्णय

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गॉडविन कंस्ट्रक्शन द्वारा निष्पादित “सिक्योरिटी बॉन्ड-कम-मॉर्गेज डीड” का सही आकलन अनुच्छेद 40 (अनुसूची 1-बी) के अंतर्गत किया गया था। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट और स्टांप अधिकारियों के आदेशों में कोई कानूनी त्रुटि नहीं है।

कोर्ट ने निष्कर्ष में कहा: “श्योरिटी की अनुपस्थिति में, अपीलकर्ता द्वारा निष्पादित दस्तावेज़ को सुरक्षा बॉन्ड नहीं कहा जा सकता। यह बंधक विलेख की सभी आवश्यकताओं को पूरा करता है और इसलिए अनुच्छेद 40 के अंतर्गत आता है।”

अदालत ने दोनों अपीलों को खारिज कर दिया।

Case: M/s Godwin Construction Pvt. Ltd. vs Commissioner, Meerut Division & Anr.

Citation: 2025 INSC 1207

Case Numbers: Civil Appeal No. 7661 of 2014 & Civil Appeal No. 12552 of 2025 (arising out of SLP (Civil) No. 36434 of 2014)

Date of Judgment: October 8, 2025

Recommended