इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिया बड़ा फैसला, कहा- सिर्फ FIR दर्ज होने से नहीं रद्द की जा सकती उचित दर की दुकान का लाइसेंस

By Vivek G. • October 14, 2025

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मेरठ डीलर जल सिंह का राशन दुकान लाइसेंस बहाल किया, कहा- केवल एफआईआर से लाइसेंस रद्द करना गैरकानूनी है।

मेरठ के एक राशन डीलर को राहत देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि केवल आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज होना ही उचित दर की दुकान का लाइसेंस रद्द करने का वैध आधार नहीं हो सकता। न्यायमूर्ति प्रकाश पडिया की एकलपीठ ने यह फैसला 13 अक्टूबर 2025 को सुनाया और अधिकारियों को आदेश दिया कि याचिकाकर्ता जल सिंह का छह साल पहले रद्द किया गया लाइसेंस तुरंत बहाल किया जाए।

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पृष्ठभूमि

यह मामला 2019 का है, जब जिला पूर्ति अधिकारी, मेरठ ने जल सिंह का उचित दर की दुकान का लाइसेंस यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि उनके खिलाफ आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 की धारा 3/7 के तहत एफआईआर दर्ज हुई है। सिंह की अपील संयुक्त आयुक्त (खाद्य), मेरठ मंडल के पास भी खारिज कर दी गई, जिसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता संतोष कुमार त्रिपाठी ने दलील दी कि यह कार्रवाई 5 अगस्त 2019 के सरकारी आदेश का उल्लंघन है, जिसमें लाइसेंस रद्द करने से पहले प्रारंभिक जांच को अनिवार्य बताया गया है। उन्होंने कहा, “सिर्फ एफआईआर दर्ज हो जाना किसी की गलती साबित नहीं करता। महज आरोप के आधार पर किसी की आजीविका छीनना अन्याय होगा।” उन्होंने इसका समर्थन करते हुए फुल बेंच के फैसले बजरंगी तिवारी बनाम कमिश्नर देवीपाटन मंडल गोंडा (2017) का हवाला दिया, जिसमें यही सिद्धांत स्थापित किया गया था।

अदालत की टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति पडिया ने कहा कि अधिकारियों ने 2019 के सरकारी आदेश के तहत आवश्यक प्रारंभिक जांच की प्रक्रिया का पालन नहीं किया। अदालत ने टिप्पणी की, “सिर्फ आपराधिक मामला दर्ज होने के आधार पर उचित दर की दुकान का लाइसेंस रद्द नहीं किया जा सकता।”

अदालत ने अपने पूर्व के फैसले अमित कुमार बनाम राज्य बनाम उत्तर प्रदेश (2024) का भी उल्लेख किया, जिसमें इसी आधार पर लाइसेंस बहाल किया गया था। न्यायाधीश ने यह भी कहा कि इस रुख की पुष्टि स्वयं सुप्रीम कोर्ट ने की थी, जिसने संबंधित विशेष अनुमति याचिकाएं (Mohd. Amir v. State of U.P., 2025) खारिज कर दी थीं।

“अब कानून स्पष्ट है,” न्यायमूर्ति पडिया ने लिखा, यह बताते हुए कि रद्दीकरण की कार्रवाई उचित प्रक्रिया के तहत ही होनी चाहिए, केवल संदेह के आधार पर नहीं। उन्होंने 2025 के एक और निर्णय एम/एस साजिद बनाम राज्य उत्तर प्रदेश और उसमें सुप्रीम कोर्ट के निर्णय फरहाना बनाम राज्य उत्तर प्रदेश (2025) का उल्लेख करते हुए यह दिखाया कि अदालतें इस विषय पर लगातार एक समान दृष्टिकोण रख रही हैं।

फैसला

अदालत ने कहा कि अधिकारियों की कार्रवाई न तो विधिक प्रक्रिया के अनुरूप थी और न ही न्यायिक नज़ीरों के। इसलिए अदालत ने 16 जनवरी 2019 और 25 नवंबर 2019 को पारित रद्दीकरण आदेशों को रद्द कर दिया और निर्देश दिया कि जल सिंह का उचित दर की दुकान का लाइसेंस तत्काल बहाल किया जाए।

इस आदेश के साथ, न्यायमूर्ति पडिया ने एक बार फिर यह सिद्धांत दोहराया कि केवल एफआईआर दर्ज होना किसी व्यक्ति की आजीविका छीनने का आधार नहीं हो सकता।

Case Title: Jal Singh vs State of Uttar Pradesh & Others

Case Type: Writ - C No. 43233 of 2019

Judgment Reserved On: September 4, 2025

Judgment Delivered On: October 13, 2025

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