सरकारी विभागों को स्पष्ट संदेश देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि सेवा में दिए गए छोटे-छोटे “तकनीकी ब्रेक” का सहारा लेकर महिला कर्मचारियों को मातृत्व अवकाश के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता। यह मामला कोल्हापुर के एक सरकारी मेडिकल कॉलेज में कार्यरत एक युवा असिस्टेंट प्रोफेसर से जुड़ा था, जिसे वर्षों तक लगातार काम करने के बावजूद मातृत्व अवधि में बिना वेतन के रखा गया।
पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता डॉ. वृषाली वसंत यादव, कोल्हापुर के राजर्षि छत्रपति शाहू महाराज सरकारी मेडिकल कॉलेज के प्रसूति एवं स्त्री रोग विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। वे सितंबर 2018 से अस्थायी आधार पर सेवा में थीं और बार-बार अल्पकालिक विस्तार के जरिए उनकी नियुक्ति जारी रही।
मई 2021 में, जब वे साढ़े आठ महीने की गर्भवती थीं, तब उन्होंने 8 मई से 16 सितंबर 2021 तक मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन किया। विभाग ने उनका आवेदन उच्च अधिकारियों को अग्रेषित किया, लेकिन अवकाश स्वीकृत नहीं किया गया। इसके बजाय पूरे 131 दिनों की अवधि को बिना वेतन अवकाश मान लिया गया, जिससे उन्हें लगभग 4.3 लाख रुपये से अधिक का आर्थिक नुकसान हुआ।
राज्य के अधिकारियों का आंतरिक तर्क यह था कि 120 या 360 दिनों के लिए अस्थायी रूप से नियुक्त महिला डॉक्टरों को, जिन्हें विस्तार के बीच एक-दो दिन का ब्रेक दिया जाता है, मातृत्व लाभ नहीं दिया जा सकता।
अदालत की टिप्पणियाँ
जब मामला जस्टिस एम. एस. कर्णिक और जस्टिस अजीत बी. कडेतकर की पीठ के समक्ष कोल्हापुर खंडपीठ में आया, तो अदालत ने सबसे पहले यह नोट किया कि राज्य सरकार ने कई अवसर मिलने के बावजूद जवाब दाखिल नहीं किया। पीठ ने रिकॉर्ड किया कि याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत तथ्यों के आधार पर ही सुनवाई करने के अलावा उसके पास कोई विकल्प नहीं बचा।
मामले के गुण-दोष पर अदालत ने साफ शब्दों में कहा कि सेवा में एक-दो दिन के “तकनीकी ब्रेक” के आधार पर मातृत्व अवकाश से इनकार करना “पूरी तरह मनमाना और अन्यायपूर्ण” है। अदालत ने कहा कि व्यवहारिक रूप से याचिकाकर्ता 2018 से लगातार सेवा दे रही थीं।
मातृत्व लाभ अधिनियम की धारा 5 का हवाला देते हुए पीठ ने साधारण शब्दों में स्पष्ट किया कि जो महिला पिछले एक वर्ष में कम से कम 80 दिन काम कर चुकी हो, वह सवेतन मातृत्व अवकाश की हकदार है। पीठ ने टिप्पणी की, “भले ही महिला अस्थायी आधार पर या दैनिक वेतन पर कार्यरत हो, उसे मातृत्व लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता।” अदालत ने जोड़ा कि ऐसा करना कानून के कल्याणकारी उद्देश्य के विपरीत होगा।
न्यायाधीशों ने म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ऑफ दिल्ली बनाम फीमेल वर्कर्स (मस्टर रोल) सहित सुप्रीम कोर्ट के पूर्व निर्णयों का भी उल्लेख किया, जिनमें गैर-नियमित कर्मचारियों तक मातृत्व लाभ का विस्तार किया गया था।
फैसला
रिट याचिका स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और मेडिकल कॉलेज प्रशासन को निर्देश दिया कि डॉ. यादव को उनके 2021 के आवेदन के अनुसार पूरा मातृत्व अवकाश लाभ दिया जाए। अदालत ने आदेश दिया कि बकाया राशि चार सप्ताह के भीतर अदा की जाए, अन्यथा वास्तविक भुगतान तक उस पर नौ प्रतिशत वार्षिक ब्याज लगेगा। याचिका का निपटारा करते हुए मामले को केवल अनुपालन की रिपोर्ट के लिए आगे सूचीबद्ध किया गया।
Case Title: Dr. Vrushali Vasant Yadav vs State of Maharashtra & Others
Case No.: Writ Petition No. 15521 of 2024
Case Type: Civil Writ Petition (Service / Maternity Leave Benefits)
Decision Date: 16 December 2025