अहमदाबाद स्थित गुजरात हाईकोर्ट ने गुरुवार को एक युवा बलात्कार पीड़िता को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया, जिसे बार-बार बाहर जाने की गुहार लगाने के बावजूद सरकारी शेल्टर होम में महीनों तक रखा गया था। पीठ ने साफ कहा कि किसी भी वयस्क नागरिक को उसकी इच्छा के विरुद्ध बंद नहीं किया जा सकता, निचली अदालत के फैसले को “अनुचित और असंवैधानिक” करार दिया।
पृष्ठभूमि
महिला ने 10 जनवरी 2025 को बलात्कार की शिकायत दर्ज कराई थी। पारिवारिक सहारे के अभाव और देर रात की कार्यवाही को देखते हुए, मजिस्ट्रेट ने 30 मार्च को उसे महिला शेल्टर होम भेजने का आदेश दिया। बाद में उसने स्वतंत्र रूप से रहने की इच्छा जताते हुए बाहर जाने का आवेदन दिया, लेकिन मजिस्ट्रेट ने उसे खारिज कर दिया। इसके बाद उसने हैबियस कॉर्पस याचिका दायर कर अवैध हिरासत का आरोप लगाया।
अदालत की टिप्पणियाँ
सुनवाई के दौरान राज्य ने याचिकाकर्ता और शेल्टर होम की अधीक्षिका दोनों को पेश किया। न्यायाधीशों ने धैर्य से सुना और पूछा कि वयस्क होने के बावजूद उसे जबरन क्यों रखा गया। न्यायमूर्ति एन.एस. संजय गौड़ा ने कहा, “सुरक्षा के लिए मजिस्ट्रेट सुरक्षात्मक हिरासत का आदेश दे सकते हैं, लेकिन ऐसी हिरासत अनिश्चितकाल तक और निश्चित रूप से उसकी इच्छा के विरुद्ध नहीं हो सकती।” पीठ ने यह भी नोट किया कि मजिस्ट्रेट की टिप्पणियाँ मामले के दायरे से बाहर थीं, खासकर जब पीड़िता न तो आरोपी थी और न ही किसी जांच के लिए आवश्यक।
फैसला
महिला के स्वतंत्र जीवन जीने के मौलिक अधिकार के उल्लंघन को बताते हुए अदालत ने मजिस्ट्रेट के आदेश को “नॉन एस्ट” यानी कानूनी रूप से शून्य घोषित किया। अदालत ने शेल्टर होम को तुरंत उसे रिहा करने और उसका सामान लौटाने का निर्देश दिया। इसके साथ ही रिट याचिका स्वीकार कर ली गई और महिला अदालत से एक स्वतंत्र नागरिक के रूप में बाहर निकली।
Case Title: Gujarat High Court Orders Immediate Release of Rape Survivor Confined in Shelter Home
Case No.: R/Special Criminal Application (Habeas Corpus) No. 12581 of 2025
Date of Order: 19 September 2025