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बॉम्बे हाईकोर्ट ने पत्नी की सेरेब्रल पाल्सी बीमारी छिपाने के कारण विवाह को शून्य और अवैध घोषित किया

Shivam Y.

बॉम्बे हाईकोर्ट ने पत्नी की बीमारी छिपाने पर विवाह को रद्द किया कहा सेरेब्रल पाल्सी तथ्य छिपाना हिंदू विवाह अधिनियम के तहत धोखाधड़ी है।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने पत्नी की सेरेब्रल पाल्सी बीमारी छिपाने के कारण विवाह को शून्य और अवैध घोषित किया

एक अहम फैसले में, बॉम्बे हाईकोर्ट (औरंगाबाद पीठ) ने पारिवारिक न्यायालय का आदेश निरस्त करते हुए विवाह को शून्य और अवैध घोषित किया। अदालत ने पाया कि विवाह के समय पत्नी के परिवार ने उसकी बीमारी सेरेब्रल पाल्सी की जानकारी छिपाई थी। न्यायमूर्ति नितिन बी. सुर्यवंशी और न्यायमूर्ति संदीपकुमार सी. मोरे की खंडपीठ ने 22 सितंबर 2025 को यह फैसला सुनाया और पति की अपील स्वीकार की।

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पृष्ठभूमि

अपीलकर्ता-पति और प्रतिवादी-पत्नी का विवाह 28 अप्रैल 2018 को जलगांव जिले के चालीसगांव में हुआ था। विवाहोपरांत पति का कहना है कि उसने पत्नी में असामान्य व्यवहार देखा-लंबे समय तक सोना, बिस्तर गीला करना और बार-बार बेहोश होना। चिंतित होकर उसने चिकित्सीय जांच कराई, जिसमें पता चला कि पत्नी जन्म से ही सेरेब्रल पाल्सी नामक न्यूरोलॉजिकल बीमारी से पीड़ित है।

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पति ने इसे धोखा मानते हुए 2018 में पारिवारिक न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और आरोप लगाया कि विवाह से पूर्व पत्नी का परिवार यह तथ्य जानबूझकर छिपा गया। वहीं पत्नी ने इन आरोपों को खारिज किया, केवल एक हाथ में जन्मजात कमजोरी स्वीकार की, लेकिन खुद को वैवाहिक दायित्वों के लिए सक्षम बताया। अगस्त 2023 में पारिवारिक न्यायालय ने पति की याचिका खारिज कर दी, जिसके बाद यह अपील दायर की गई।

अदालत के अवलोकन

हाईकोर्ट ने औरंगाबाद सरकारी मेडिकल कॉलेज के मेडिकल बोर्ड द्वारा जारी प्रमाणपत्र सहित चिकित्सा साक्ष्यों की बारीकी से जांच की। बोर्ड की सदस्य डॉ. मीनाक्षी भट्टाचार्य ने गवाही दी कि पत्नी लेफ्ट पेरिसिस (सेरेब्रल पाल्सी) और हल्की बौद्धिक कमी से पीड़ित है, और यह बीमारी असाध्य है।

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न्यायाधीशों ने पारिवारिक न्यायालय की पूर्व टिप्पणियों में विरोधाभास पाया। पीठ ने कहा—

"हम यह समझने में असमर्थ हैं कि सेरेब्रल पाल्सी को मानसिक विकार नहीं माना गया और केवल शरीर की गति से जोड़ा गया।" अदालत ने स्पष्ट किया कि वास्तविक मुद्दा केवल बीमारी ही नहीं, बल्कि विवाह के समय इस तथ्य का दमन करना है।

अदालत ने पूजा बनाम श्रीकांत काले सहित पहले के उदाहरणों पर भरोसा किया, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया था कि विवाह से पहले असाध्य स्थितियों की जानकारी को रोकना हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 12(1)(C) के तहत धोखाधड़ी के बराबर है।

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न्यायाधीशों ने टिप्पणी की-

"यदि यह तथ्य विवाह से पहले बताया जाता, तो अपीलकर्ता-पति विवाह के लिए सहमत होने पर पुनर्विचार कर सकता था।"

निर्णय

अपील स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने पारिवारिक न्यायालय का आदेश पलट दिया और विवाह को शून्य और अवैध घोषित किया। खंडपीठ ने आदेश दिया-

  1. 28 अप्रैल 2018 को संपन्न हुआ विवाह इस निर्णय की तारीख से अवैध माना जाएगा।
  2. प्रतिवादी-पत्नी स्थायी भरण-पोषण (permanent alimony) का अधिकार कानून के तहत अलग कार्यवाही के माध्यम से अभी भी प्राप्त कर सकती है।

इस प्रकार, लंबे समय से चल रहे विवाद में पति को राहत मिली, जबकि अदालत ने पत्नी के लिए आर्थिक अधिकार सुरक्षित रखने की गुंजाइश भी छोड़ी।

केस संख्या:- पारिवारिक न्यायालय अपील संख्या 92/2023

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